एंटरटेनमेंट डेस्क। हाल ही में मुंबई में रजनीगंधा प्रस्तुत जागरण फिल्म फेस्टिवल का 13वां संस्करण (Rajnigandha presents Jagran Film Festival 13th Edition) पूरा हुआ। महत्वपूर्ण बातचीत और सिनेमा को सेलिब्रेट करता जागरण फिल्म फेस्टिवल (JFF) दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज और वाराणसी में हुआ, जहां फिल्म जगत के कई सितारे पहुंचे और कई अहम मुद्दों पर बातचीत हुई।
इस दौरान सितारों ने स्टोरीटेलिंग और क्रिएटिविटी के साथ साथ मानसिक स्वास्थय (Mental Health) और भावनात्मक संतुलन (Emotional well-being) जैसे अहम मुद्दे पर भी खुलकर बात की और अपना पक्ष रखा।
विश्व मानसिक स्वास्थय दिवस यानि वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे के खास मौके पर जानी मानी एक्ट्रेस काजोल, डायरेक्टर आर. बाल्की, इनायत वर्मा, मुकेश छाबड़ा और अनूप सोनी ने इस विषय पर बात ही नहीं बल्कि बताया कि मानसिक रूप से स्वस्थ रहना सिर्फ फिल्म इंड्स्ट्री में ही नहीं बल्कि हर किसी की जिम्मेदारी है। आइए जानते हैं सितारों ने इस विषय पर क्या कहा।
काजोल-
'जागरण फिल्म फेस्टिवल (JFF) के साथ बातचीत करते हुए काजोल ने कहा कि, मुझे लगता है कि हर इंसान को अपने करियर में कम से कम एक फिल्म तो करनी ही चाहिए, जो एक तरह की थैरेपी होती है। अपने बच्चों को भी ये करने के लिए कहिए, ताकि वो भी इस थैरेपी को महसूस कर सकें और ये वाकई में अच्छा होता है। यहां तक कि मैंने तो एक सीन के लिए मुंबई की टैक्सी के ऊपर खड़े होकर गाना भी गाया। जब आप कैमरे के सामने रोते हैं तो लोग आप पर हंसते नहीं बल्कि उन्हें लगता है कि आप वाकई में बहादुर हैं कि ये आप कर पा रहे हैं और आप ये सच में तब अच्छे से महसूस कर पाते हैं, जब आप सच में रो रहे होते हैं।'
मुकेश छाबड़ा-
'आजकल युवा इतनी सी कम उम्र में डिप्रेशन शब्द को बड़ी आसानी से इस्तेमाल कर लेते हैं। मेरी मां के निधन के बाद मेरे पिता डिप्रेशन का शिकार थे। मैं जानना चाहता हूं कि इन युवाओं ने 18-19 साल की उम्र में ऐसा क्या झेला है जो ये डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं? डिप्रेशन एक गंभीर मानसिक समस्या है और जब आपको अगर ये हो जाए तो सच में बहुत मुश्किल होती है।'
सिद्धांत चतुर्वेदी-
'मैंने सच में जिंदगी को देखा है, कुछ मेरी है और कुछ आपकी है। कुछ हवा में उड़ गई तो कुछ जमीन पर ही रह गई। कुछ धूल में सिमट गई तो कुछ आंसुओं के साथ बह गई। कुछ उठ गईं तो कुछ उठ न सकीं। सच कहूं तो जो कमी है वो जेब में नहीं, वो कमी नाम में नहीं है। हम वहीं है जो कल्पना करते हैं और फिर आने वाले कल के सफर को तय करके आगे बढ़ते हैं। हम वही हैं जो मिट्टी के कठपुतलियों से रंगमंच को भी बनाते हैं।'
अनूप सोनी-
'मुझे लगता है कि ये समझना बहुत जरूरी है कि तनान जैसी स्थित में इसका सामना कैसे किया जाए। ये मेरा मानना है कि इस स्थित में आपको अपने दोस्तों और परिवारवालों से इसके बारे में बात करनी चाहिए। अगर हम इसके बारे में किसी से बात नहीं करेंगे तो ये सच में और बड़ी समस्या बन जाएगा। इसके बारे में आपको सच में बहुत अच्छे से बात करनी चाहिए और उससे करनी चाहिए जिस पर आपको पूरा भरोसा हो।'
जागरण फिल्म फेस्टिवल का 13वां संस्करण सिर्फ फिल्मों का ही नहीं बल्कि लोगों का, कहानियों का और हम सबकी भावनाओं का सेलिब्रेशन था। मानिसक स्वास्थय पर बातचीत शुरू कर JFF ने ऐसा मंच बनाया जहां ना सिर्फ कलाकारों ने, बल्कि आम लोगों ने भी अपनी कहानियों को सभी के साथ साझा किया है। दिल छू लेने वाली कहानियों से लेकर मजेदार बातचीत तक, JFF ने हमें याद दिलाया है कि अपने दिल और दिमाग का ध्यान रखना उतना ही जरूरी है जितना हम क्रिएटिविटी का जश्न मनाते हैं, क्योंकि सिनेमा सिर्फ एक कला तक सीमित नहीं है बल्कि ये बल्कि इंसानों और उनकी भावनाओं को जोड़ता है।
जागरण फिल्म फेस्टिवल महज एक त्योहार नहीं है, JFF एक सफर है सिनेमा से लेकर लोगों के बीच तक पहुंचता है। अलग-अलग शहरों में होने वाली स्क्रीनिंग, वर्कशॉप्स और बातचीत के माध्यम से ये एक ऐसा मंच बनाता है, जहां दर्शक फिल्म खत्म होने के बाद उसकी कहानी से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं और उसे हमेशा याद रखते हैं।