
एंटरटेनमेंट डेस्क। हिंदी सिनेमा का 60-70 का दशक आज भी सुनहरे दौर के तौर पर याद किया जाता है। इसी दौर में एक ऐसी अदाकारा आईं, जिनके अंदाज, हेयरस्टाइल और मासूमियत ने लाखों दिलों को दीवाना बना दिया।
‘बरेली के बाजार में झुमका’ से पहचान बनाने वाली यह अभिनेत्री थीं साधना शिवदसानी। फिल्मों में उन्हें शोहरत, नाम और काम तो खूब मिला, लेकिन निजी जिंदगी में उन्होंने ऐसे दर्द झेले, जिनकी कल्पना भी मुश्किल है।

साधना का जन्म 2 सितंबर 1941 को कराची में एक सिंधी परिवार में हुआ था। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद उनका परिवार मुंबई आकर बस गया। उनका रिश्ता फिल्मी दुनिया से पहले से ही जुड़ा था वह अभिनेत्री बबीता की बुआ थीं, जो आगे चलकर करीना और करिश्मा कपूर की मां बनीं।

साधना को बचपन से ही अभिनय का शौक था। महज 14 साल की उम्र में उन्हें राज कपूर की फिल्म श्री 420 में छोटा सा मौका मिला। वह मशहूर गाने ‘मुड़ मुड़ के ना देख’ में बैकग्राउंड डांसर के रूप में नजर आईं। हालांकि इसके बाद लंबे समय तक उन्हें कोई बड़ा काम नहीं मिला और आर्थिक हालात भी बिगड़ते चले गए।

1958 में साधना को पहली बार लीड रोल मिला भारत की पहली सिंधी फिल्म अबाना में। कहा जाता है कि मेकर्स ने प्रतीकात्मक रूप से उनके हाथ में सिर्फ 1 रुपये का सिक्का रख दिया और वही उनकी फीस थी। यहीं से उनके संघर्ष और सफलता की असली कहानी शुरू हुई।

साधना की किस्मत तब बदली जब फिल्ममेकर शशधर मुखर्जी की नजर उनकी एक तस्वीर पर पड़ी। उन्होंने अपने बेटे जॉय मुखर्जी के अपोजिट उन्हें फिल्म लव इन शिमला में कास्ट किया। यह फिल्म सुपरहिट रही और साधना रातों-रात स्टार बन गईं।

इस फिल्म में साधना का फ्रिंज हेयरस्टाइल इतना लोकप्रिय हुआ कि वह ‘साधना कट’ के नाम से मशहूर हो गया। यह ट्रेंड सालों तक बॉलीवुड और आम लोगों के बीच छाया रहा। चूड़ीदार सलवार-सूट को भी लोकप्रिय बनाने का श्रेय काफी हद तक साधना को ही जाता है।
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लव इन शिमला के डायरेक्टर आर.के. नय्यर से साधना को प्यार हो गया और 1966 में दोनों ने शादी कर ली। शादी के बाद भी साधना ने फिल्मों में काम जारी रखा और कई हिट फिल्में दीं। हालांकि उनके जीवन में एक कमी हमेशा रही उन्हें कभी मां बनने का सुख नहीं मिला।
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परिवार में एक किस्सा बहुत चर्चित रहा। कहा जाता है कि जब बबीता रणधीर कपूर से शादी करना चाहती थीं, तब राज कपूर ने साधना से उन्हें समझाने को कहा। इसी बात पर बहनों के बीच कहासुनी हुई और गुस्से में बबीता ने कथित तौर पर ऐसा कह दिया कि साधना कभी मां नहीं बनेंगी। संयोगवश, साधना जीवनभर निसंतान रहीं, जिससे यह कहानी और गहरी होती चली गई।

1995 में पति आर.के. नय्यर के निधन के बाद साधना बिल्कुल अकेली पड़ गईं। जिस घर में वह रहती थीं, उस पर कानूनी विवाद खड़ा हो गया। सालों तक कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने पड़े। आर्थिक तंगी इस कदर बढ़ी कि उन्हें किराए के मकान में रहना पड़ा।
बढ़ती उम्र के साथ साधना की सेहत भी बिगड़ने लगी। आंखों की गंभीर समस्या, थायरॉयड और अन्य बीमारियों ने उन्हें घर तक सीमित कर दिया। इलाज पर खर्च बढ़ता गया और आमदनी का कोई साधन नहीं रहा। 1978 के बाद उन्होंने फिल्मों से पूरी तरह दूरी बना ली थी।
आखिरकार 2015 में, लंबी बीमारी और अकेलेपन के बीच साधना ने दुनिया को अलविदा कह दिया। एक समय की सुपरस्टार, जिसने करीब 30 से ज्यादा फिल्मों में काम किया, अपनी जिंदगी के आखिरी साल गुमनामी और संघर्ष में गुजार गईं।
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हालांकि उन्हें करियर के दौरान ज्यादा सम्मान नहीं मिला, लेकिन 2002 में आईफा अवॉर्ड्स में उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाजा गया। आज भी साधना को उनके स्टाइल, मासूमियत और दर्द से भरी जिंदगी के लिए याद किया जाता है एक ऐसी स्टार, जिसकी चमक पर निजी जिंदगी के साए भारी पड़ गए।