
एंटरटेनमेंट डेस्क। फिल्मों में अगर विलेन न हो तो उनका स्वाद अधूरा लगता है, क्योंकि जब तक कहानी में खलनायक नहीं होगा, तब तक हीरो का जलवा भी फीका पड़ जाएगा। आज के दौर में भले ही फिल्मों में हीरो का बोलबाला है, लेकिन 70 से 90 के दशक में विलेन ही पर्दे पर राज करते थे।
अमरीश पुरी, डैनी डेन्जोंगपा, मुकेश तिवारी, रंजीत और प्राण जैसे कलाकारों ने अपने खलनायक किरदारों से ऐसी छाप छोड़ी कि लोग उन्हें असल जिंदगी में भी विलेन समझ बैठते थे।
लेकिन इन सभी पर भारी पड़ा था फिल्म शोले का ‘गब्बर सिंह’। इस किरदार के नाम से सिर्फ गांव के बच्चे ही नहीं, बल्कि फिल्मी हीरो तक कांप उठते थे।
इस किरदार को हिंदी सिनेमा के इतिहास में अमर बनाने वाले थे अमजद खान, जिन्हें बॉलीवुड का सबसे डरावना विलेन कहा गया। आज उनकी जयंती के मौके पर जानते हैं कि कैसे एक किताब ने उन्हें गब्बर बनने की प्रेरणा दी।

12 नवंबर 1940 को मुंबई में जन्मे अमजद खान असल जिंदगी में बेहद सरल और मिलनसार स्वभाव के व्यक्ति थे। वे अपने दोस्तों में ‘यारों के यार’ कहे जाते थे। उन्होंने ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘सत्ते पे सत्ता’ और ‘शतरंज के खिलाड़ी’ जैसी कई फिल्मों में खलनायक की भूमिका निभाई, लेकिन दर्शक आज भी उन्हें ‘गब्बर सिंह’ के रूप में ही याद करते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि ‘गब्बर’ का रोल पहले डैनी डेन्जोंगपा को ऑफर किया गया था, लेकिन वे उस समय फिल्म धर्मात्मा की शूटिंग में व्यस्त थे और इस कारण उन्होंने यह फिल्म ठुकरा दी।

शोले से पहले अमजद खान का करियर कुछ खास नहीं चल रहा था, इसलिए ‘गब्बर’ का किरदार उनके लिए बड़ा मौका और चुनौती दोनों था। इस भूमिका में पूरी तरह डूबने के लिए उन्होंने चंबल के डाकुओं के जीवन पर आधारित किताब अभिशप्त चंबल पढ़ी।
इस किताब ने उन्हें गब्बर के किरदार की असली गहराई समझने में मदद की। उन्होंने डाकुओं की भाषा, हावभाव और स्वभाव को इतनी बारीकी से अपनाया कि दर्शक उनके अभिनय से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके।
आज भी अमजद खान के बोले गए डायलॉग्स और उनका अंदाज लोगों के बीच अमर है। इस फिल्म ने उन्हें बॉलीवुड का सबसे यादगार और प्रतिष्ठित विलेन बना दिया।