
लाइफस्टाइल डेस्क। क्या आपने कभी किसी रेस्टोरेंट के बाहर खड़े होकर सिर्फ इसलिए कदम पीछे खींच लिए क्योंकि आप अकेले थे। बाहर से लजीज खाने की खुशबू और शानदार संगीत आपको बुला रहा है, लेकिन आप फोन में व्यस्त होने का नाटक करते हैं। आपको डर है कि जैसे ही आप अकेले टेबल पर बैठेंगे, सबकी नजरें आप पर टिक जाएंगी।
मनोवैज्ञानिक इसे 'स्पॉटलाइट इफेक्ट' कहते हैं। यह वह मानसिक स्थिति है जिसमें हमें लगता है कि हम एक मंच पर हैं और सब हमें ही देख रहे हैं। हमें लगता है कि हर कोई हमारे अकेले बैठने के तरीके या खाने के ढंग को जज कर रहा है। हकीकत में, लोग अपनी बातों और खाने में इतने मगन होते हैं कि उन्हें आपके अकेले होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
बचपन से हमें सिखाया जाता है कि खाना एक सामाजिक गतिविधि है। इसलिए, अकेले खाने को अक्सर 'अकेलेपन' या 'उदासी' से जोड़कर देखा जाता है। हम दूसरों की राय को अपनी खुशी से ऊपर रखने लगते हैं और यही डर हमें 'सोलो डाइनिंग' से रोकता है।
असल में, अकेले खाना आत्मविश्वास की निशानी है। इसे 'सोलो डेट' की तरह देखें। यहां न खाना शेयर करने का झंझट है, न किसी से बात करने की मजबूरी। यह खुद के साथ वक्त बिताने और खाने के असली स्वाद का आनंद लेने का बेहतरीन तरीका है।
शुरुआत में आप एक किताब साथ रख सकते हैं या हेडफोन का सहारा ले सकते हैं। धीरे-धीरे आप महसूस करेंगे कि वह 'जज करने वाली भीड़' सिर्फ आपके दिमाग का वहम थी। जिस दिन आप अकेले अपनी 'मील' एन्जॉय करना सीख जाएंगे, आप मानसिक रूप से आजाद हो जाएंगे।