हेल्थ डेस्क। शहर की चकाचौंध एक तरफ़ नए मौके और जोश लाती है, तो दूसरी तरफ़ सेहत की चुनौतियाँ भी खड़ी करती है। लंबा सफ़र, देर रात तक जागना, अनियमित खाना और घंटों परदे (स्क्रीन) से चिपके रहना—इन सबका असर थकान, कमज़ोर नींद, वज़न का उलझा खेल और मासिक धर्म की गड़बड़ियों के रूप में सामने आ रहा है।
अंकड़े भी यही कहानी कह रहे हैं—भारत की आधी से ज़्यादा महिलाएँ खून की कमी से जूझ रही हैं। आलस्य और बैठे-बैठे रहने की आदत बढ़ती जा रही है। हर दस में से एक महिला शहरी इलाक़ों में बहु-अंडाशय रोग (पीसीओएस) से परेशान है।
यहीं पर आयुर्वेद अपनी जगह बनाता है। दिनचर्या, अग्नि (पाचन शक्ति) और प्रकृति (शरीर की बनावट) के हिसाब से तय जीवनशैली—ये सब आधुनिक स्वास्थ्य चिंताओं का हल बन सकते हैं।
तनाव, देर रातें और डब्बाबंद खाना पीसीओएस को बढ़ाते हैं। आयुर्वेद इसमें मसाले, पाचन सुधरने वाले नुस्ख़े और सही समय पर खाना खाने पर ज़ोर देता है। लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं—स्त्री रोग विशेषज्ञ या हार्मोन विशेषज्ञ की सलाह के साथ ही ये उपाय सबसे असरदार होते हैं।
शहर की सबसे छुपी बीमारी है—तनाव। यही मासिक धर्म और पीसीओएस दोनों को बिगाड़ता है। आयुर्वेद बताता है, तेल मालिश (अभ्यंग), जल्दी रात का खाना और बिना परदे (डिजिटल डिटॉक्स) का समय, नींद को गहरी और मन को शांत करता है।
डॉ. देबब्रत सेन (संस्थापक, परम्परा आयुर्वेद) ने बीस साल के अनुभव से कुछ रोज़मर्रा की चीज़ें बनाई हैं—पाचन सुधारने वाली काढ़ा, तंदुरुस्ती का टॉनिक, पेट साफ़ करने की गोलियाँ, नींद लाने वाली चाय और ठंडी पिसाई वाले तेल।
सुबह प्रोटीन से भरपूर नाश्ता, दोपहर में आयरन से भरा खाना, हल्की शाम की थाली और रात को बिना मोबाइल सोना। हफ़्ते में दो दिन ताक़त वाले व्यायाम और आंत साफ़ रखने के लिए त्रिफला की मदद।
आयुर्वेद पुरानी बातों में लौटने की नहीं, बल्कि जीवन को प्रकृति की ताल से जोड़ने की कला है। दुनिया की स्वास्थ्य संस्थाएँ भी इसे सुरक्षित तरीके से अपनाने पर ज़ोर दे रही हैं।
डॉ. सेन कहते हैं – “सिर्फ़ दो बदलाव कर लीजिए: दोपहर में सबसे बड़ा भोजन और रात 11 बजे से पहले बिना मोबाइल के सोना। सुबह उठकर आपका तन-मन आपका शुक्रिया अदा करेगा।”