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लाइफस्टाइल डेस्क। दालों को भारतीय खानपान में सेहत का खजाना माना जाता है। इनमें प्रोटीन, फाइबर, आयरन और कई जरूरी पोषक तत्व पाए जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर बीमारी में हर दाल फायदेमंद नहीं होती।
सही बीमारी में सही दाल का चुनाव करने से सेहत को दोगुना फायदा मिल सकता है। आइए जानते हैं कि किस समस्या में कौन सी दाल खानी चाहिए और उसका सही तरीका क्या है।
मधुमेह (डायबिटीज) में डायबिटीज के मरीजों के लिए चना दाल, मूंग दाल और मसूर दाल सबसे बेहतर मानी जाती हैं। इनका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है, जिससे ब्लड शुगर तेजी से नहीं बढ़ता। वहीं, अरहर दाल का सेवन सीमित मात्रा में करना चाहिए।
हाई ब्लड प्रेशर में हाई बीपी के मरीजों को हल्की और आसानी से पचने वाली दालें खानी चाहिए। मूंग दाल और मसूर दाल कोलेस्ट्रॉल कम करने में मदद करती हैं और दिल पर दबाव नहीं बढ़ने देतीं। इन दालों में फाइबर भरपूर होता है, जो रक्तचाप को नियंत्रित रखने में सहायक है।
दिल की बीमारियों में हृदय रोग से जूझ रहे लोगों के लिए चना दाल और मसूर दाल फायदेमंद होती हैं। ये दालें खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करती हैं। ऐसे मरीजों को तली-भुनी चीजों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए।
पाचन संबंधी समस्याओं में अगर पेट दर्द, गैस या अपच की समस्या रहती है तो मूंग दाल सबसे अच्छा विकल्प है। यह पाचन में हल्की होती है और पेट को आराम देती है। कमजोर पाचन शक्ति वालों को मसालेदार दालों से बचना चाहिए।
कमजोरी और थकान में अगर शरीर में कमजोरी, थकान या खून की कमी महसूस होती है तो अरहर दाल और उड़द दाल का सेवन लाभकारी होता है। इनमें प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम और फाइबर की अच्छी मात्रा होती है, जो शरीर को ताकत देती है।
अक्सर भारतीय घरों में दाल को ज्यादा मसालों और तड़के के साथ बनाया जाता है, जिससे इसके पोषक तत्व कम हो जाते हैं। बेहतर है कि दाल को उबालकर या हल्के मसालों के साथ पकाया जाए। ज्यादा तेल, घी और तीखे मसालों से परहेज करें ताकि दाल के सारे गुण बरकरार रहें।
हर दाल के अपने खास फायदे हैं। जरूरत है सही बीमारी में सही दाल चुनने और उसे सही तरीके से खाने की। अगर आप दालों को संतुलित मात्रा में अपनी डाइट का हिस्सा बनाते हैं, तो कई बीमारियों से बचाव संभव है।
नोट - यह लेख सामान्य जानकारी के लिए है। किसी भी बीमारी में खानपान से जुड़ा बदलाव करने से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।