
कांतिलाल राठौड़, नईदुनिया, आलीराजपुर। आदिवासी बहुल जिले आलीराजपुर के दक्षिण में गुजरात-महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित सुदूर पहाड़ी क्षेत्र मथवाड़ में मतांतरण के जरिये डेमोग्राफी में बदलाव का खेल चल रहा है। यहां के 12 में से पांच फलियों (बस्ती) के लोग पूरी तरह मत बदल चुके हैं। अन्य फलियों में भी इसके लिए प्रयास तेज हैं। अब तक 50 फीसद से अधिक लोग मत बदल चुके हैं। ऐसा ही जारी रहा तो यहां पूरी आबादी ही मतांतरित हो जाएगी।
कभी पारंपरिक त्योहारों की ढोल-नगाड़ों वाली गूंज से भरा रहने वाला यह क्षेत्र अब दो हिस्सों में बंट गया है। एक हिस्सा अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ, तो दूसरा दूसरे मत की ओर झुका हुआ। गांव की कुल 12 फलियों में से पांच पूरी तरह मतांतरित हो चुकी हैं और शेष फलियों में यह प्रक्रिया लगातार जारी है।
ग्राम पंचायत के आंकड़े बताते हैं कि अब तक 82 परिवार ईसाई धर्म अपना चुके हैं, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है। पंचायत के निर्णयों और सामाजिक आयोजनों में भी अब यह डेमोग्राफिक बदलाव स्पष्ट झलकने लगा है। क्षेत्र के लोगों के अनुसार गांव की आधी से अधिक आबादी मतांतरित हो चुकी है। जाहिर है इसका असर पूरे क्षेत्र पर पड़ रहा है।
ग्राम मथवाड़ के दिलीप पटेल ने बताया कि जामनिया, मालवड़ी, धनबयड़ी, भाला और माकड़ आंबा फलिया में तो पूरी बस्तियां मतांतरित हो चुकी हैं। जिन लोगों ने मत बदला है, वे अधिकतर बीमार, गरीब या दबाव में आए हुए लोग हैं। उन्हें शिक्षा, इलाज और सहायता का लालच देकर मतांतरित किया गया है। सरपंच भलसिंह ने बताया कि भाला फलिया और जामनिया फलिया में दो चर्च बने हैं।
एक लगभग 12 वर्ष पहले और दूसरा पांच वर्ष पूर्व बनाया गया था। स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि पहले गांव के हर घर में देवी काजल रानी माता और हनुमान देव की पूजा होती थी, पर अब कई घरों में पारंपरिक आराधना बंद हो गई है। बच्चों के नाम और संस्कार भी बदलने लगे हैं।
पेसा अधिनियम के तहत गठित ग्राम समितियां केवल विकास योजनाओं तक सीमित नहीं, बल्कि यह संस्कृति की रक्षा में भी जुटी हैं। पेसा जिला समन्वयक प्रवीण चौहान के अनुसार जिले की 609 ग्राम सभाएं अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए इस दिशा में सकरात्मक प्रयास कर रही हैं, क्योंकि हमारी परंपरा, रीति-रिवाज और आस्था ही हमारी पहचान है। इन्हें किसी कीमत पर कमजोर नहीं होने देंगे।
जनजाति विकास मंच के जिला प्रमुख गोविंद भयड़िया कहते हैं कि घर वापसी और पारंपरिक पर्वों के पुनर्जीवन के अभियान शुरू किए गए हैं। पंचायतों ने भी धार्मिक संतुलन बनाए रखने और बाहरी प्रभावों पर नजर रखने की बात कही है।
पेसा अधिनियम का पूरा नाम अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत का विस्तार अधिनियम है। यह आदिवासी समुदायों को सुशासन, पारंपरिक संसाधनों पर नियंत्रण और स्थानिक विवादों के समाधान का अधिकार देता है।