मनोज भदौरिया, नईदुनिया आलीराजपुर। मथवाड़ चलोगे... पूछने पर जीप चालक नीलेश ने जवाब दिया ...बिलकुल चलेंगे लेकिन थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा। सवारियां मिल जाएं फिर चलते हैं। यह कहने पर कि हमसे ज्यादा किराया ले लेना लेकिन जल्दी चलो, जवाब मिला आप इधर से ज्यादा किराया दे दोगे लेकिन उधर से तो खाली आना पड़ेगा। पहाड़ी रास्ता है, हमें दोनों तरफ का देखना पड़ता है।
महाराष्ट्र और गुजरात की सीमा से सटा करीब हजार लोगों की आबादी का गांव मथवाड़ आज भी मध्य प्रदेश के आलीराजपुर जिले का दुर्गम क्षेत्र है। नर्मदा की विपुल जलराशि व प्राकृतिक झरनों से समृद्ध इस इलाके में अब भी आवागमन उतना आसान नहीं है। विंध्य-सतपुड़ा की पहाड़ियों और सरदार सरोवर बांध के बैकवाटर से घिरे इस क्षेत्र तक पहुंचने के लिए सर्पीली सड़कों पर सफर करना होता है।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान 'नईदुनिया' की टीम मथवाड़ तक पहुंची थी। अब वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान टीम दोबारा यहां पहुंची तो अधोसंरचनात्मक विकास भले ही अधिक नजर नहीं आया लेकिन यह पिछड़ा क्षेत्र भी अब तकनीक के अश्व पर सवार दिखा। लोग कैसे भी जूझकर ही अपने जीवन में बदलाव लाने में जुटे हैं।
यहां के युवा अब हाथों में स्मार्ट फोन लिए देश-दुनिया से जुड़ते नजर आते हैं। गांव में नेटवर्क बेहतर नहीं मिलने पर ऊंचाई वाले क्षेत्र में बैठकर मोबाइल फोन चलाते लोगों को यहां आसानी से देखा जा सकता है। इससे जानकारी और सूचनाओं के साथ पढ़ाई को लेकर जागरूकता बढ़ रही है। विकास योजनाओं का लाभ मिलने से जीवन स्तर भी बेहतर हो रहा है। रोजगार के साधन भी बढ़ रहे हैं।
मथवाड़ के आसपास छोटे-छोटे पहाड़ी मजरों (छोटे-छोटे गांव) जहां बिजली की उपलब्धता सिर्फ नाम के लिए ही है। यहां के निवासी पहाड़ी से नीचे उतरकर कस्बे तक पहुंचते हैं और अपना मोबाइल फोन को किसी दुकान पर चार्ज कर लौट जाते हैं। इस छोटे से कस्बे में छोटी दुकानें संचालित करने वाले दुकानदारों के लिए यह अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार का माध्यम अवश्य है।
यहां के सरूसिंह चौहान बताते हैं कि मोबाइल चार्ज करने के लिए कोई दुकानदार शुल्क तो नहीं लेता लेकिन अपने यहां चार्जिंग बोर्ड लगाकर लोगों को आमंत्रित जरूर करता है। उद्देश्य एक ही होता है कि लोग मोबाइल चार्ज करने के लिए आएंगे तो खरीदी भी करेंगे ही।
मथवाड़ के निवासी शिक्षा का महत्व समझने लगे हैं। पहले मजदूरी के लिए गुजरात या महाराष्ट्र जाने वाले परिवार बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय साथ ले जाते थे। इससे बच्चों की पढ़ाई छूट जाती थी लेकिन अब लोग बच्चों को स्कूल तो भेजने ही लगे हैं साथ ही शासकीय योजनाओं का लाभ उन्हें दिलवा सकें, इसके लिए बात भी करते हैं।
गांव के अक्षय 12 वीं के विद्यार्थी हैं। वे कहते हैं कि आदिवासी समाज की पिछली पीढ़ियां शिक्षा से वंचित रही हैं। मगर अब ऐसा नहीं है। मैं भी कालेज की पढ़ाई पूरी कर सरकारी नौकरी करना चाहता हूं। यदि सरकारी नौकरी नहीं मिली तब? यह सवाल पूछने पर अक्षय कहते हैं तब फिर रोजगार के दूसरे साधनों के लिए सरकार से मदद मिलना चाहिए। विपुल जलराशि और प्राकृतिक सौंदर्य फिर भी उपेक्षित मथवाड़ और इसके आसपास का क्षेत्र बेहद खूबसूरत है।
यहां पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं मगर इसके लिए आधारभूत ढांचा नहीं है। क्षेत्रवासी अभी इसे लेकर इतने उत्साहित नजर नहीं आते। यहां के निवासी रामसिंह से इलाके के सौंदर्य और पर्यटन की संभावना पर बात करते ही वे कहते हैं कि यहां कौन घूमने आएगा। देखा नहीं आपने आना-जाना कितना मुश्किल है। पहाड़ी इलाके में पहले पैदल सफर के अलावा कोई विकल्प नहीं था, अब अंदरूनी गांवों तक सड़कें बन गई हैं लेकिन केवल सड़क बन जाने से तो लोग आएंगे नहीं।
गांव के नुक्कड़ पर बसंत ठकराल अपनी छोटी सी किराना दुकान चलाते हैं। समय के साथ आ रहे बदलाव को लेकर वे कहते हैं, चीजें बदल रही हैं। अब हाथों में ऐसी तकनीक है, जिससे देश-दुनिया से आसानी से रूबरू हो रहे हैं।