अनूपपुर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। कलपुर्जों को जो़ड़कर और कमियों को दूर करते हुए अनूपपुर के रामस्वरूप ने जमीन से पानी निकालने वाली छोटी बोरवेल मशीन तैयार की है। करोड़ों में आने वाली गाड़ी मशीन की तुलना में यह महज 4 माह में बनाई गई। यह कारनामा हाई स्कूल की पढ़ाई करने वाले जिले के ग्राम पंचायत बदरा निवासी रामस्वरूप (47) पिता कमलेश विश्वकर्मा ने आइआइटी की पढ़ाई कर रहे बेटे शुभम के साथ मिलकर किया है।
लोगों की समस्या कम हो इसलिए किया यह प्रयासः रामस्वरूप ने कहा कि ग्रामीण अंचल क्षेत्रों में पानी की समस्या बनी रहती है तथा गरीब परिवार बोरवेल कराने में सक्षम नहीं हो पाते जिसको देखते हुए यह मशीन तैयार किया गया है। उनके पास एक नई मशीन बनाने के पूरे संसाधन मौजूद हैं। यदि कोई मशीन खरीदना चाहेगा तो उसे बेचेंगे और ऐसा ना हुआ तो किराए पर देंगे जिसका खर्च बड़ी बोरवेल मशीन की तुलना में कम रहेगा। बताया गया कि बोरवेल मशीन तैयार करने में विदेशी तकनीक व वहां बने इंस्ट्रूमेंट का उपयोग नहीं किया गया है ताकि खराबी आने पर उपकरण मिलने में दिक्कत है इसलिए पूरी तरह से स्वदेशी उपकरणों के जरिए हाइड्रोलिक मशीन तैयार की गई है ताकि उसके पार्ट्स सहजता से भी मिल सके। बोरवेल मशीन को बनाने में मुख्य रूप से 80 हॉर्स पावर इंजन, हाइड्रोलिक कंप्रेशर, हाइड्रोलिक मोटर, मिट्टी खींचने का इंजन, मट पंप आदि सामान जुटाए गए थे।
आसान नहीं था मशीन बनाने का सफरः छोटी उम्र से मशीनों को बनाने का काम करते करते रामस्वरूप ने बोर करने वाली छोटी और कम लागत की मशीन बनाने का निर्णय लिया। बनाने के उपकरण कहां से मिलेंगे इसकी जानकारी जुटाई और गुजरात, राजस्थान, हैदराबाद जाकर मशीन के पार्ट्स एकत्र किए और बनाने के कुछ उपाय भी ढूंढे। बैंक की मदद लेकर रुपयों की व्यवस्था की। 2 वर्ष के कड़े संघर्ष के बाद रामस्वरूप अपने मकसद पर सफल हुए और मिनी हाइड्रोलिक पावर मशीन तैयार कर डाली वह भी केवल 4 माह में जिसमें लगभग 7 से 8 लाख खर्च हुए।
कम ईंधन खर्च के साथ किफायती भीः अमूमन बड़ी हाइड्रोलिक बोरवेल मशीन जो ट्रक में अक्सर रहती है हर जगह नहीं पहुंच पाती लेकिन यह मिनी हाइड्रोलिक बोरवेल छोटे संकीर्ण और जटिल मार्गों में भी पहुंच सकेगी। रामस्वरूप विश्वकर्मा ने बताया कि यह मशीन 15 मिनट में 7 फीट गहराई करती है जबकि बड़ी हाइड्रोलिक बोरवेल मशीन 2 घंटे में 20 फीट गहरा करती है। बड़ी मशीन में डीजल प्रति घंटा 60 लीटर और इस हाइड्रोलिक मशीन से डीजल एक घंटे में 4 लीटर खपत करता है। रामस्वरूप ने बताया कि बड़ी गाड़ी में बोरिंग के दौरान अक्सर रेत आ जाती है तो काम प्रभावित होता है लेकिन जो उन्होंने मिनी हाइड्रोलिक तैयार की है उसमें यह समस्या नहीं है। मशीन बीच में बंद न हो और लगातार चलने से मशीन गर्म होती है तो उसके लिए जनरेटर भी मिनी हाइड्रोलिक मशीन पर लगाई गई है।यह मशीन बड़ी बोरवेल मशीन से धन की बचत कराती है और हर जगह पहुंच कर पानी का स्रोत पता कर सकती है। एक स्थान से दूसरे स्थान आने जाने के लिए मशीन को ट्रैक्टर इंजन का उपयोग किया जा सकता है इसके लिए कोई ट्रक खरीदने की जरूरत नहीं है।
सीखने की लगन ने बना दिया इंजीनियरः रामस्वरूप विश्वकर्मा एक समान्य परिवार से हैं। कक्षा दसवीं की पढ़ाई करने के बाद गांव में ट्राली, टैंकर, जुताई के लिए नागर बनाने के साथ मोटर पंप, कूलर बनाने, वेल्डिंग करने का काम सीखा और इस व्यवसाय से जुड़े। रामस्वरूप को सीखने की ललक रही है और यही लालसा ने उन्हें बोरवेल मशीन बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। रामस्वरूप ने बताया कि 2 वर्ष पहले बोरवेल मशीन के एक जगह पर ना पहुंच पाने को लेकर विचार आया कि मशीन को खुद बनाया जाए जो कहीं भी पहुंच सके और इस मशीन में जो भी खामियां हैं वह ना रहे। रामस्वरूप ने आइआइटी की पढ़ाई कर रहे हैं 18 वर्षीय बेटे शुभम की मदद से इंटरनेट के द्वारा बोरवेल बनाने और उसके सामान मिलने की जानकारी हासिल की और वह अपने लक्ष्य को पाने में सफल हुए। लगनता ने कम पढ़े लिखे रामस्वरूप को इंजीनियर के बराबर खड़ा कर दिया है।