अशोकनगर। नवदुनिया न्यूज
स्थानीय पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में मुनिश्री विभंजन सागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहाकि श्रावक बड़े ही भक्ति भाव से दान देता है। ध्यान रखना दान देकर भूल जाना। दान बोलकर मत भूल जाना। यदि आपने श्रद्धा, भक्ति, भाव से दान दिया है, दान बोला है तो उसको श्रद्धा भाव से देना भी है। दान को छिपा-छिपा कर देना चाहिए। छपा -छपा कर नहीं, मान अभिमान के लिए नहीं।
उन्होंने कहाकि धन की तीन गति होती है- पहली गति दान, दूसरी भोग, और तीसरी नष्ट। सर्वप्रथम धन का उपयोग दान में करें। यदि नहीं कर सकते हैं तो भोग करें और यदि नहीं कर सकते तो उसको नष्ट तो होना ही है। दान देकर रोना नहीं और उसको याद नहीं रखना, भूल जाना। याद रखोगे तो मान कषाय जाग्रत होगी। अभिमान आएगा। घमंड आएगा, इसलिए दान देकर भूल जाना। दूसरा उपकार करके भूल जाना यदि किसी पर आपने उपकार किया है या किसी जरूरत मंद की जरूरत को आपने पूरा कर दिया। किसी गरीब बच्चे की शादी करवा दी, किसी गरीब बच्चे को पढ़ाने में मदद कर दी, कुछ भी सहयोग किया उस पर उपकार किया, उस उपकारी व उस उपकार को भूल जाओ, लेकिन हाँ जिस पर उपकार किया है वह उस उपकारी के उपकार को हमेशा याद रखे।
उन्होंने कहाकि विश्व में भूत काल में जितने भी युद्ध हुए हैं वे सब अभिमान के कारण हुए हैं। मान अभिमान बड़ा खतरनाक है। कहा गया है -अहंकार में तीनों गए धन, वैभव और वंश। तीनों घर ताले लगे रावण, कौरव और कंस, अर्थात रावण हो या कौरव या कंस। तीनों के घर ताले लग गए न उनके पास धन बचा, न पैसा, न वैभव और न ही उनके कुल का दीपक अर्थात वंश भी समाप्त हो गया। इसलिए मान कषाय को छोड़कर मुलायम बनना चाहिए। संसार में तीन प्रकार के मनुष्य होते हैं। ऊपर से मुलायम, अंदर से कठोर, ऊपर से कठोर, अंदर से मुलायम, ऊपर और अंदर दोनों से मुलायम। ऐसे श्रावक होते हैं। पहले प्रकार के श्रावक बेर के समान होते हैं जो ऊपर मुलायम और अंदर कठोर हुआ करते हैं। ऐसे ही श्रावक होते हैं ऊपर से दिखावा करते है, लेकिन अंदर से बड़ा कठोर हुआ करते हैं। कुछ श्रावक ऐसे है जो नारियल के समान है ऊपर से कठोर और अंदर से मुलायम जैसे साधु हुआ करते हैं। ऊपर से भले ही अनुशासन में रहते हैं, लेकिन अंदर से मुलायम होते हैं। तीसरे वह हैं जो अंदर और बाहर दोनों तरह मुलायम होते हैं। वे अंगूर जैसे होते हैं।
भक्तिभाव से मनाया जन्म कल्याणक
श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में श्रमण श्री विभंजनसागर जी मुनिराज के पावन सान्निय में रविवार को 1008 श्री आदिनाथ भगवान का जन्म कल्याणक महोत्सव बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इसमें प्रातः काल सौधर्म इंद्र, इंसान इंद्र, सानत कुमार, ब्रह्म कुमार इंद्र प्रतिष्ठा करके सर्व प्रथम श्री जी का अभिषेक किया गया । तत्पश्चात 9 जिन बिम्बो पर वृहद शांतिधारा का वाचन मुनिश्री के मुखारबिंद से हुआ। तत्पश्चात दीप प्रज्जवलन, श्री फल भेंट किए गए और फिर मुनिश्री के पाद प्रक्षालन करने के पश्चात शास्त्र भेंट किया गया। इस मौके आदिनाथ महामण्डल विधान का आयोजन किया गया।
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फोटो111- मुनिश्री विभंजन सागर जी महाराज श्रद्घालुओं को संबोधित करते हुए।
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