
Ashoknagar News :अशोकनगर (नवदुनिया प्रतिनिधि)। करीब पंद्रह वर्ष पूर्व जिले के ग्रामीण क्षेत्र से आइआइटी जैसी प्रतिष्ठित परीक्षा में चयनित होकर आइआइटी दिल्ली में स्नातक की उपाधि लेने वाले एक युवा ने गांव वापस लौट कर गांव-गांव में ज्ञान की अलख जगाने का निर्णय लिया है। इस युवा के साथ जिले की राजनीति का एक अहम नाम भी जुड़ा हुआ है। पिता के संपर्को का फायदा लेकर इस युवा ने गांव-गांव समिति बनाकर पुस्तकालय खोलने की ठानी है। पहले चरण में 100 गांवों में पुस्तकालय खोलने की योजना बनाई है। जिसके लिए आनलाइन फार्म भी जमा कराए हैं। बताया गया है कि अब तक कुल 400 युवक-युवतियों ने पुस्तकालय संचालन समिति का सदस्य बनने के लिए फार्म जमा करा दिए हैं।
दरअसल, हम बात कर रहे हैं अर्जुन सिंह यादव निवासी ग्राम सूरैल की। मुंगावली विधायक एवं पीएचई राज्यमंत्री बृजेन्द्र सिंह यादव के बड़े पुत्र अर्जुन सिंह यादव भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान नई दिल्ली से वर्ष 2013 में रसायनशास्त्र से स्नातक की डिग्री ले चुके हैं। उन्होंने कुछ वर्षों तक निजी क्षेत्र में नौकरी भी की और बीते कुछ वर्षों से संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षा को उत्तीर्ण करने के प्रयास में हैं। हाल ही में परीक्षा का दूसरा चरण देने के बाद वह गांव लौटे और ग्रामीण पुस्तकालय खोलने का मन बनाया। इस योजना के लिए उन्होंने गांव-गांव में फैली पिता की टीम से संपर्क किया और उनकी यह पहल रंग लाई।
स्कूल, ग्राम पंचायत भवन या मंदिर का करेंगे चुनावः
योजना के तहत ग्राम समिति बनाई जाना है। पहले चरण के तहत दिसंबर के पहले सप्ताह में प्रारंभिक ग्रामीण ज्ञानालय खोले जाएंगे। स्थान चयन करने के लिए शासकीय विद्यालय, ग्राम पंचायत भवन, आंगनवाड़ी भवन या मंदिर को विकल्प के तौर पर रखा गया है। अर्जुन का कहना है कि हम शुरुआत न्यूनतम संसाधनों के साथ करेंगे । पुस्तकों को दान करने वाले व्यक्तियों से वह संपर्क कर रहे हैं। इस अभियान में उन्हें सहपाठियों का साथ भी मिल रहा है। मंत्री जी ने 1100 तथा अर्जुन के मित्र जयराज पंड्या ने 100 पुस्तके भेंट की है।
पुस्तकें पढ़ने का शौक बना जुनून-
अर्जुन ने बताया कि आज की युवा पीढ़ी पुस्तकों से लगभग दूर हो चुकी है। हाथ में मोबाईल और कमरे में लैपटॉप ने पुस्तकों की जगह ले ली है। उन्होंने कहा कि मैं पुस्तक पढ़ने का शौकीन हूं। बचपन में पिताजी ने भी मुझे खूब सारी पुस्तकें लाकर दीं जिससे मेरे ज्ञान में वृद्धि हुई। यही वजह रही कि सूरेल जैसे दूरस्थ गांव में रहकर मैं आइआइटी में चयनित हो सका। ग्रामीण पुस्तकालय या ज्ञानालय को खोलने की कवायद के पीछे मेरी मंशा है कि आज का युवा वापिस पुस्तकों की और लौटे।
इस तरह की रहेंगी पुस्तकें- पुस्तकालयों में आध्यात्मिक पुस्तकें, कहानी की पुस्तकें, महापुरुषों की जीवनी, मोटिवेशनल, प्रतियोगी परीक्षाओं वाली किताबों के अलावा रुचि के अनुसार पुस्तकें उपब्लध रहेंगी। शिक्षा के संचार तथा स्वा-अध्ययन की प्रवत्ति जाग्रत करने हेतु यह अनूठी पहल ग्रामीण ज्ञानालय के नाम से शुरू की गई है।