बालाघाट (नईदुनिया प्रतिनिधि)। बालाघाट जिले के कटंगी तहसील के ग्राम जाम में दसवीं शताब्दी का जामेश्वर शिव मंदिर हैं। मंदिर में साल भर जिला सहित महाराष्ट्र राज्य के श्रद्धालु पूजा करते है, लेकिन सप्ताह में सोमवार को अधिक भीड़ उमड़ती है। सावन मास में जलाभिषेक करने अधिक संख्या में लोग आते हैं।
इस मंदिर की छत पत्थर की है, छत के ऊपर ही विशाल पेड़ हैं। यह पेड़ लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। छत पर उगे पेड़ के बारे में लोग स्पष्ट रूप से नहीं बता पा रहे हैं कि कौन सी प्रजाति का है। मंदिर परिसर में गांव के श्रद्धालु रोज सफाई करते हैं। मंदिर की देखरेख करने का दायित्व सार्वजनिक नवयुवा मेला समिति शिव मंदिर जाम ने उठाया।
ग्रामीण टुरूलाल राहंगडाले (75) बताते हैं कि उनके गांव में शिव मंदिर है। मंदिर में शिवलिंग और नंदी महाराज हैं।वर्षों पुराना मंदिर होने से यहां श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूरी होती है, जिससे रोज मंदिर में श्रद्धालु पूजा करने आते हैं, लेकिन साेमवार को अधिक भीड़ रहती है। वो बचपन से देखते आ रहे मंदिर की छत पूरी पत्थर की है।
छत के ऊपर विशाल पेड़ है, जो हमेशा हरा भरा रहता है। पेड़ की जड़े जमीन में कैसे गई हैं, मंदिर के अंदर से देखने पर भी दिखाई नहीं देती हैं। आंधी तूफान में कई बड़े-बड़े पेड़ धराशायी हो गए हैं, लेकिन मंदिर के छत पर लगा पेड़ की जड़ न होने के बाद भी हरा-भरा है। उन्होंने बताया कि हमारे पूर्वज बताते थे कि यह मंदिर वर्षों पुराना है, जिसकी छत पर पेड़ है, इसके बारे में आज तक कोई नहीं बता पाया है कौन सी प्रजाति का है।
सार्वजनिक नवयुवा मेला समिति शिव मंदिर जाम के उपाध्यक्ष निलम ठाकरे, सचिव चैनलाल पटले ने बताया कि पेड़ में फल लगने पर पकने के बाद शिवलिंग की आकृति निकलती है, जो सुगंधित होने के साथ खाने में स्वादिष्ट होता हैं। मान्यता है कि मंदिर की छत पर लगे पेड़ में फल लगने पर पकने के बाद यह फल हर किसी को प्राप्त नहीं होता है।
मंदिर की बनावट दसवीं शताब्दी के मंदिर समान है। मंदिर परिसर में महाशिवरात्रि में मेला भी भरता है और रात में धार्मिक कार्यक्रम संपन्न कराए जाते हैं। वर्षों पुराने मंदिर का महाशिवरात्रि में शिवमहापुराण करने आए आलोक कृष्ण दीक्षित महाराज गुरुधाम ने जामेश्वर शिव मंदिर के नाम से नामकरण किया।
मंदिर में आसपास से खुला होने से कोई भी पशु पक्षी प्रवेश कर जाते थे, इसीलिए मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की जमा राशि से स्टील की ग्रील लगाए हैं। इसमें करीब 50 हजार रुपये का खर्च आया है। समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि श्रद्धालुओं के दान को मंदिर के कार्यों में लगाया जाता है, इससे मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को सुविधा मिल सके।
वर्षों पुराना शिव मंदिर में शिवलिंग व नंदी महाराज है। मंदिर में रोज पूजा करने लोग आते हैं। मंदिर की छत पत्थर की है वहां लगा पेड़ कौन सी प्रजाति का है, इसके बारे में कोई स्पष्ट नहीं बता पा रहे है। पेड़ में जनवरी माह में फल लगते है।
गौरीशंकर राहंगडाले, अध्यक्ष, सार्वजनिक नवयुवा मेला समिति शिव मंदिर जाम
वर्षों पुराना शिव मंदिर में श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती हैं।रोज यहां लोग आते रहते है।साल भर सोमवार को अधिक भीड़ लगी होती है,परंतु सावन मास में बहुत ज्यादा श्रद्धालु आते है।इस वर्ष मंदिर का नामकरण भी किया गया है।मंदिर की छत पर लगा पेड़ की जड़े कहा गई है।यह दिखाई नहीं देते है।पेड़ में लगने वाला फल सुगंधित होने के साथ शिवलिंग की आकृति निकलती है।सावन में दूसरे सोमवार को अभिषेक करने काफी संख्या में भीड़ रहेगी।
डा. कुसनलाल राहंगडाले, ग्राम जाम
जाम में दसवीं शताब्दी का मंदिर है।मंदिर में शिवलिंग व नंदी महाराज विराजित है।यहां लोगों की मनोकामना पूरी होती है।इसीलिए रोज श्रद्धालु आते रहते है।मंदिर की छत पूरी पत्थर की है,जहां पर एक विशाल पेड़ है।पेड़ कौन सी प्रजाति का है,इसके बारे में जानकारी स्पष्ट नहीं हो पा रही है।
डा. वीरेंद्र सिंह गहरवार, इतिहास एवं पुरातत्व शोध संस्थान संग्रहालय बालाघाट