
योगेश कुमार गौतम, नईदुनिया प्रतिनिधि, बालाघाट। माओवादी हिंसा से मुक्त हो चुके बालाघाट ने वह भी दौर देखा है, जब माओवादियों की दहशत आदिवासी इलाकों के ‘विकास’ में सबसे बड़ी बाधा थी। ग्रामीण हों या सरकारी महकमा या फिर निर्माण एजेंसी, सब पर माओवादी बंदूक के दम पर अपनी बादशाहत बनाकर रखते थे।
वर्ष 2003-04 में लांजी से सालेटेकरी तक 61 किमी लंबे दुर्गम रास्ते को सुगम बनाने वाली मे. रायसिंग एंड कंपनी के मालिक राधेश्याम पटेल ने उस दौर की दास्तां साझा की है। उन्होंने ‘नईदुनिया’ को बताया कि उस वक्त आवागमन सुलभ न होने के कारण माओवादियों ने बालाघाट के जंगलों में अपनी पैठ जमाई थी।
शासन की योजनाओं के तहत जब कोई काम शुरू किया जाता, तब-तब माओवादी दहशत, धमकियों से उन कामों को रोक देते थे। यही वजह रही कि सालों तक जिला विकास से अछूता रहा। राधेश्याम पटेल बताते हैं कि वर्ष 2000 में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना आई थी। तब योजना के तहत बनने वाली मध्य प्रदेश की 61 किमी सबसे लंबी रोड लांजी से सालेटेकरी तक बननी थी।
माओवाद प्रभावित जिला होने के कारण इस रोड का काम विशेष पैकेज के तहत होना था। जब हमारी कंपनी ने काम शुरू किया तो कुछ महीनों बाद मुझे, भाई गणपत पटेल को माओवादियों से धमकी मिलने लगी, लेकिन हमें ये प्रोजेक्ट हर हाल में पूरा करना था। माओवादियों ने पैसों की मांग की, लेकिन मैंने एक रुपये नहीं दिए। हमने काम जारी रखा। माओवादियों ने रोड निर्माण में लगे चार डंपर, एक-एक पेवर और रोलर मशीन जला दी। इससे उस वक्त हमें ढाई करोड़ से अधिक का नुकसान झेलना पड़ा।
राधेश्याम ने बताया कि आगजनी की घटना के बाद तत्कालीन पुलिस अधीक्षक जगदीश प्रसाद को अवगत कराया गया। तत्कालीन एसपी ने रोड निर्माण को जारी रखने के लिए 300 हाकफोर्स के जवान भेज दिए। राधेश्याम बताते हैं कि जवानों के लिए वह खुद चाय-नाश्ता और भोजन का प्रबंधन करते थे। इस प्रोजेक्ट को तय समय पर पूरा कर दिया गया। सड़क का काम एक साल में पूरा करना था, जो नौ माह में पूरा हो गया था।
ठेकेदार राधेश्याम पटेल के साहस की कहानी को हाकफोर्स में पदस्थ डीएसपी संतोष पटेल ने अपने इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म पर साझा की है। शुक्रवार को उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर एक वीडियो साझा किया, जिसमें डीएसपी का वाहन चालक उस दौर में माओवादियों की दहशत और ठेकेदार के साहस की कहानी बता रहा है। चालक कहता है कि ठेकेदार जिद्दी थे। उन्होंने आखिर तक माओवादियों से हार नहीं मानी और भारी नुकसान के बाद भी सड़क निर्माण का काम कराया।