बालाघाट(नईदुनिया प्रतिनिधि)। प्रदेश के आदिवासी अंचलों में लगने वाले मेलों में बालाघाट का खर्राधार मेला भी झाबुआ के भगोरिया मेले की तर्ज पर खास माना जाता है। इस मेले में दो राज्यों की संस्कृति का समावेश है। मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के खर्राधार गांव में लगने वाले इस मेले में स्थानीय लोक संस्कृति के साथ छत्त्ाीसगढ़ी की संस्कृति की झलक देखने मिलती है।
बाघों के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध कान्हा नेशनल पार्क के समीप बसे आदिवासी गांवों में विकास के साथ लोगों के रहन-सहन में बदलाव भले ही आया हो,लेकिन लोक संस्कृति और परंपराओं से इनका जुड़ाव आज भी पहले जैसा ही है। यहां आज भी खर्राधार नदी पर कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। यह मन्न्त मेला के रूप में प्रख्यात है। इस मेले में प्रदेश के सुदूर ग्रामीण अंचलों से तो बड़ी संख्या में लोग आते ही हैं, पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ से भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। लेकिन इस साल स्थानीय परंपरा के इस मेले में भी कोरोना का असर दिखाई पड़ा रहा है।
पर्यटन विभाग भी भगोरिया मेले की तर्ज पर जिले के खर्राधार गांव में लगने वाले आदिवासी मेले के प्रचार-प्रसार की कवायद में जुटा है। पर्यटन विभाग यहां लोक कलाओं के साथ आधुनिकता का समन्वय स्थापित कर मेले को अलग पहचान देना चाहता है। पर्यटकों को एक ही मंच पर आधुनिक और परंपरिक भारत की छवि पेश करना है। जिसके बूते कान्हा नेशनल पार्क की तरफ भी पर्याटकों का ध्यान आकर्षित किया जा सके। इस साल कोरोना के चलते यहां मेले का आयोजन नहीं किया गया,लेकिन आस्था लोगों को रोक नहीं पाई। यहां मेले में हाट-दुकानें नहीं लगीं,पर लोग पूजा और स्नान के लिए परंपरा अनुसार पहुंचे।
आमतौर पर गांवों में लगने वाले परंपरिक मड़ई मेलों में पूजा-पाठ, छत्तीसगढ़ी कार्यक्रमों और खरीदारी का दौर चलता है। खर्राधार मेले में इससे इतर आदिवासी लोक संस्कृति की अमिट छाप भी देखने को मिलती है। फिर चाहे बात आदिवासी वेश-भूषा की हो पारंपरिक नृत्य की या सामूहिक गान की। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां जो भी मन्न्त मांगी जाती है वह पूरी होती है। मन्न्त पूरी होने पर यहां जीवों की बलि की कुप्रथा भ्ाी प्रचलित है। मेले के दौरान मन्न्त पूरी होने पर लोग जीवों की बलि देते हैं और उसे प्रसाद के तौर पर बांटते हैं।
इनका कहना ...
कोरोना के चलते तीज त्योहारों का स्वरूप बदला है। मंडई-मेलों में भीड़ कम हुई है। लेकिन परंपरागत धार्मिक आयोजन और संस्कृति से जुड़े आयोजन लोग सामान्य रुप से कर रहे हैं। जिले का खर्राधार मेला,भगोरिया मेले की तर्ज पर प्रदेश में खास है। जो यहां की संस्कृति को प्रसारित करता है। इसमें छत्तीसगढ़ की संस्कृति की झलक भी देखने मिलती है। सभी आयोजन को लेकर कोरोना की गाइड- लाइन का पालन करने प्रशासन सख्ती बरत रहा है। खर्राधार में मेले का आयोजन नहीं किया गया है। लोग पूजा पाठ करने जरूर पहुंचे होंगे।
-दीपक आर्य कलेक्टर बालाघाट