
Balaghat News : योगेश कुमार गौतम, बालाघाट नई दुनिया। बालाघाट के जिस उत्पाद को लंबी जद्दोजहद के बाद राज्य सरकार ने जीआइ टैग दिया था, उसके लिए दो साल बाद भी अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय बाजार नहीं बन सका है। खुशबू, स्वाद जैसी खूबियों के लिए पहचाने जाने वाले बालाघाट के चिन्नौर को 29 सितंबर 2021 को जीआइ टैग मिला था। इसके बाद इस चावल की खुशबू को विदेशाें तक बिखेरने और जिले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान मिलने के कई दावे हुए थे, लेकिन दुर्भाग्य है कि दो साल चार महीने बाद विदेश छोड़िए, इस चावल के मप्र में ही बड़े खरीदार नहीं मिल रहे हैं।

यह चावल अब भी सिर्फ सैंपल के रूप में स्टालों में बिक रहा है। जिला प्रशासन तथा कृषि विभाग ने भले ही चिन्नौर का उत्पादन बढ़ाना में सफलता हासिल की है, लेकिन चिन्नौर के लिए मार्केट बनाने में पिछड़ गया है। विभागीय अधिकारी भी स्वीकार करते हैं कि दो साल से अधिक समय में चिन्नौर के लिए बड़ा मार्केट बनना था। अधिकारी अब उत्पादन के साथ बाजार बनाने की दिशा में प्रयास करने का दावा कर रहे हैं।
2022 के खरीफ सीजन में जिले के वारासिवनी, लालबर्रा तथा खैरलांजी क्षेत्र के किसानों द्वारा करीब एक हजार क्विंटल चिन्नौर की खेती की गई थी, जिसमें अब भी 400 क्विंटल धान बेचना शेष है। जबकि दूसरी तरफ इस साल के खरीफ सीजन के चिन्नौर धान की खरीदी होना बाकी है। ऐसे में पिछले साल तथा इस खरीफ सीजन के धान को बेचना न सिर्फ कृषि विभाग तथा एफपीओ के लिए भी चुनौती बन रहा है।
चिन्नौर के उत्पादन की बात करें, तो विभागीय अधिकारियों व एफपीओ द्वारा प्रचार-प्रचार की बदौलत जिले के किसानों में चिन्नौर की खेती के लिए रुचि जागी है, लेकिन इस धान के लिए दो साल से अधिक समय बाद भी उचित बाजार व खरीदार नहीं मिलने से किसान भी चिंतित हैं। बता दें कि जिले में लालबर्रा व वारासिवनी में दो फॉर्मर प्रोड्यूसर आर्गनाइजेशन (एफपीओ) कंपनी लिमिटेड संचालित हैं, जिन पर चिन्नौर का उत्पादन बढ़ाने तथा मार्केट बनाने की जिम्मेदारी है।
जिला प्रशासन ने चिन्नौर के उत्पादन को लेकर भरसक प्रयास किए, लेकिन इसके लिए बाजार बनाने में प्रशासन व शासन के प्रयास असफल साबित हुए हैं। चिन्नौर के प्रचार-प्रसार तथा मार्केट बनाने के लिए मप्र सहित देशभर के बड़े शहरों में आयोजित प्रदर्शनियों में स्टाल लगाकर इसकी खासियतें बताई जा रही हैं। एक-दो किलो के पैकेटों में चिन्नौर को सैंपल के रूप में प्रदर्शित किया जा रहा है, लेकिन बाजार बनाने के लिए कोई कदम नहीं उठाए जा रहे, जो कदम उठाए गए हैं, वह भी असरदार साबित नहीं हो पाए हैं। चिन्नौर बालाघाट और मप्र में ही सिमटकर रह गया है।
कृषि विभाग, बालाघाट ने 2019 में चिन्नौर को जीआइ टैग दिलाने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, हैदराबाद में दावा किया था। मध्यप्रदेश के साथ महाराष्ट्र भी जीआइ टैग का दावेदार था, लेकिन परिषद ने मप्र के चावल को मान्यता दी थी। बालाघाट के चिन्नौर चावल को जीआइ टैग मिलने के बाद इसके उत्पादन बढ़ने और अच्छे दाम मिलने के आसार बने थे। इन सवा दो सालों में चिन्नौर का उत्पादन, किसानों की संख्या तो बढ़ी लेकिन बाजार अब तक नहीं बन पाया है। तेज सुगंध वाली किस्म में शामिल चिन्नौर चावल स्वास्थ्य और स्वाद दोनों में उत्कृष्ट है।
चिन्नौर के मार्केटिंग में दिक्कतें आ रही हैं। हालांकि, इसका उत्पादन जीआइ टैग मिलने के बाद बढ़ा है। भोपाल, दिल्ली सहित देशभर में लगने वाली प्रदर्शनियों में स्टाल लगाकर चिन्नौर का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। लोग चिन्नौर को जानने लगे हैं। इसकी पूछ-परख भी बढ़ी है। विदेशाें में इसके निर्यात के लिए अधिक मात्रा चाहिए, जिसे हम बढ़ा रहे हैं। एफपीओ और कृषि विभाग द्वारा चिन्नौर के लिए बड़े स्तर पर प्रस्ताव लेने तथा बाजार बनाने के लिए प्रयास तेज किए जाएंगे।
राजेश खोब्रागढ़े, उप संचालक, कृषि विभाग बालाघाट।