
नईदुनिया प्रतिनिधि, बालाघाट। मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में बीजापुर की माओवादी सुनीता ओयाम ने सरेंडर किया है। कद 4 फीट से थोड़ा ज्यादा और मासूम चेहरे वाली 23 साल की सुनीता ने इंसास राइफल कंधे से उतारकर पुलिस के सामने रख दी। इसके साथ ही उसने अपने जीवन के साथ ही मध्य प्रदेश में एक नई शुरुआत की, जिसमें माओवादियों को हथियार छोड़कर मुख्य धारा में लौटने का रास्ता दिखाया। 12 साल बाद बालाघाट में किसी माओवादी ने सरेंडर किया है।
शनिवार (एक नवंबर) की रात सुनीता, पिता बिसरू ओयाम, ने बालाघाट के लांजी अंतर्गत चौरिया चौकी के हाक फोर्स कैंप में हथियारों के साथ आत्मसमर्पण किया। उसने एक इंसास राइफल और तीन मैग्जीन भी सरेंडर की हैं। उस पर तीन राज्यों में कुल 14 लाख रुपये का इनाम था। यह मप्र की नई आत्मसमर्पण पुनर्वास सह राहत नीति-2023 के तहत पहला आत्मसमर्पण है।
सुनीता ने पहली बार दूसरे राज्य के माओवादी के रूप में मप्र शासन के सामने आत्मसमर्पण किया है। वह पुलिस की कड़ी सुरक्षा में है। सुनीता वर्ष 2022 में माओवादी संगठन में शामिल हुई थी और फरवरी 2025 से बालाघाट में सक्रिय थी। पुलिस अधीक्षक आदित्य मिश्रा ने कहा पुनर्वास की चाह रखने वाले माओवादियों को लाभ दिया जाएगा।
सुनीता के अनुसार, 20-21 साल की उम्र में ही उसने माओवाद का रास्ता चुन लिया। उसके पिता बिसरू ओयाम भी माओवादी थे, लेकिन माओवादी लीडर शगनू ने उसे जल-जंगल और जमीन का भ्रामक पाठ पढ़ाकर पथभ्रष्ट कर दिया। छोटे कद की मासूम-सी दिखने वाली सुनीता इंसास रायफल, बीजीएल की अच्छी जानकार। वो इन्हें चलाना भी जानती है। ये कुशलता उसे माओवादियों के आठ माह के प्रशिक्षण शिविर में मिली।
अत्याधुनिक और देसी हथियार कैसे और कब चलाना है, अपने लीडर रामदेर को कैसे सुरक्षा देनी होती, इसमें सुनीता पारंगत है।आत्मसमर्पण के बाद सुनीता का कहना है कि बाद में समझ में आया कि वो खोखली माओवादी विचारधारा के झांसे में आकर तीन साल तक डर और फरेब के साये में रही। पुलिस के मुताबिक पूछताछ में सुनीता ने दलम में बड़े लीडरों की शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना के राज भी खोले हैं। इसके साथ ही मध्य प्रदेश सरकार की नई पुनर्वास नीति के सहारे फिर से नई जिंदगी प्रारंभ करने का अवसर मिलने पर संतुष्टि व्यक्त की है।