योगेश कुमार गौतम, नईदुनिया, बालाघाट। माओवाद को समाप्त करने के लिए जारी ‘मिशन 2026’ की डेडलाइन को छह माह शेष हैं। जैसे-जैसे घड़ी करीब आ रही है, वैसे-वैसे माओवादी जान बचाने के नए नए उपाय खोज रहे हैं। इधर सुरक्षा बल भी उनके समूल नाश के लिए प्रतिबद्ध हैं। माओवादी अपना अस्तित्व बचाने के लिए अपनी रणनीति में बदलाव कर रहे हैं। 15-20 की संख्या में एक-साथ रहने वाले माओवादी अब छोटे-छोटे समूहों में जंगलों की खाक छान रहे हैं।
जान बचाने के लिए वे गहरे हरे रंग की वर्दी के बजाय सिविल ड्रेस में घूम रहे हैं। उनका, गांवों तक पहुंचना या बैठक करना पूरी तरह बंद है। पुलिस और सुरक्षाबलों ने भी माओवादियों की हर चाल को भांपते हुए अपनी रणनीति में भी बदलाव किया है। वर्तमान में 1200 से अधिक हाकफोर्स जवान और सीआरपीएफ की तीन बटालियन घने जंगलों में माओवादियों को चौतरफा घेरने के लिए तैनात है। सुरक्षा बल अब बड़े आपरेशन की तैयारी में है।
आखिरी बार सुरक्षा बलों ने 14 जून को बालाघाट के पचामादादर के जंगल में तीन महिला समेत चार हार्डकोर माओवादियों को ढेर किया था। उनसे भारी मात्रा में हथियार भी बरामद हुए थे। लगभग 88 दिनों में जिले में माओवादियों के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई है। अब सुरक्षा बल किसी भी पल बड़ी कार्रवाई को अंजाम दे सकते हैं।
जंगल में सर्च ऑपरेशन में पहले से ज्यादा जवानों की तैनाती।
जवान, जंगल के अंदरूनी इलाकों में सर्च ऑपरेशन चला रहे हैं।
पहले से ज्यादा लंबे और बड़े सर्च ऑपरेशन पर जोर दिया जा रहा है।
प्रभावित गांवों में सुरक्षा बढ़ाई गई है, इसलिए माओवादी बैठक नहीं कर पा रहे।
मिशन 2026 के चलते माओवादियों ने अपनी स्ट्रैटजी बदली है। उसके अनुसार पुलिस भी काउंटर स्ट्रैटजी बनाकर मुंहतोड़ जवाब दे रही है। रोजगार महोत्सव, विकास कार्यों, एसएसयू भर्ती, एकल सुविधा केंद्र जैसी पहल ने माओवादियों की कमर तोड़ी है। ग्रामीण व युवा भी समझ चुके हैं कि माओवादी विचारधारा खोखली है।- संजय कुमार, आईजी, बालाघाट रेंज।