युवराज गुप्ता, नईदुनिया, बड़वानी। Narmada Parikrama: श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र नर्मदा परिक्रमा यूनेस्को की इंटेंजिबल हेरिटेज सूची में शामिल हो सकती है। एमपी टूरिज्म डेवलपमेंट बोर्ड जल्द ही यह प्रस्ताव भेजेगा। स्कंद पुराण में नर्मदा परिक्रमा का वर्णन और महात्म्य बताया गया है। नर्मदा नदी की पैदल यात्रा तीन साल तीन महीने और 13 दिन में पूरी होती है। इसके लिए करीब 2600 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। प्रदेश की जीवनदायिनी नदी नर्मदा अमरकंटक से निकलकर कई जिलों से होकर गुजरात में भरुच तक का सफर कर सागर में मिलती है। 1312 किमी लंबी यह नदी विपरीत दिशा में पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाह करती है।
नदी की परिक्रमा करने वाले पहले व्यक्ति ऋषि मार्कंडेय थे, जिन्होंने न केवल नर्मदा की पैदल यात्रा की, बल्कि यहां की सहायक नदियों का भी पता लगाया था। सैकड़ों वर्षों से लोग नर्मदा नदी के किनारों की यात्रा करते आ रहे हैं। वर्तमान में नर्मदा नदी की परिक्रमा, जल और घाटी की विशेषताओं को लेकर कई शिक्षाविदों व विद्यार्थियों ने शोध किए हैं। मनुष्य को प्रकृति व नदियों से जोड़ती पावन नर्मदा नदी की परिक्रमा का धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक और दार्शनिक महत्व है। परिक्रमावासियों की सेवा के लिए निमाड़-मालवा के लोग पलक-पांवड़े बिछाकर आतुर रहते हैं। विविध माध्यमों से परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं की सेवा की जाती है। इस यात्रा पर हर वर्ष सैकड़ो लोग निकलते हैं। इसी खासियत की वजह से यात्रा को यूनेस्को की सूची में शामिल करने की कवायद की जा रही है।
नर्मदा परिक्रमा को लेकर पुस्तक का लेखन करने वाली शिक्षाविद् मोहिनी शुक्ला के अनुसार देश में गंगा-यमुना नदी में स्नान व जल के स्पर्श से पुण्य लाभ मिलता है लेकिन विश्व में एकमात्र मां नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से ही पापों से मुक्ति होकर पुण्य मिलता है। देवताओं में भगवान कार्तिकेयजी के बाद ऋषि मार्कंडेय ने नर्मदा परिक्रमा कर इसका महात्म्य बढ़ाया। इसके अलावा शिवपुराण, नर्मदा पुराण एवं अन्य कई महान ग्रंथों में नर्मदा नदी के महात्म्य का वर्णन किया गया है। इतिहासविद् डा शिवनारायण यादव के अनुसार मनुष्य को प्रकृति व नदियों से जोड़ती पावन नर्मदा की परिक्रमा का धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक और दार्शनिक महत्व है।
नर्मदा भक्त व समाजसेवी अनिल जोशी के अनुसार देव उठनी एकादशी के बाद की पूर्णिमा से केवल दो ही स्थानों अमरकंटक एवं ओंकारेश्वर से नर्मदा नदी की परिक्रमा शुरू होती है। पैदल यात्रा के दौरान प्रतिदिन 10 से 30 किमी तक प्रतिदिन पैदल यात्रा के अनुसार कोई यात्री तीन माह में इसे पूरा कर लेता है तो कोई रुक-रुककर छह माह या तीन साल में पूरी करता है। नर्मदा परिक्रमा पैदल, वाहन व अन्य साधनों से की जा सकती है। परिक्रमा पथ पर कई स्थानों पर दुर्गम पहाड़ी रास्ते भी हैं। नर्मदा भक्त अजय सिंह ठाकुर एवं पंडित सचिन शुक्ला के अनुसार नर्मदा तटों पर कई स्थानों पर परिक्रमावासियों के पड़ाव, विश्राम, भोजन पानी की व्यवस्था की जाती है। शिक्षाविदों व समाजसेवियों के अनुसार नर्मदा परिक्रमा का अनुभव ऋषियों, संतों के अलावा राजा-महाराजा, राजनेता, अभिनेता, बड़े पदों पर आसीन अधिकारी, डाक्टर, समाजसेवियों ने लिया है। बीते वर्षों में जबलपुर के संत दादा गुरु, डिजिटल बाबा, उत्तम स्वामीजी, नर्मदानंदगिरिजी महाराज जैसे प्रमुख कई संतों के अलावा केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पर्यावरणविद् अनिल माधव दवे सहित अन्य कई हस्तियों ने नर्मदा परिक्रमा की थी।