मुलताई (नवदुनियस) पवित्र नगरी मुलताई मां ताप्ती की उद्गम स्थली होने के साथ साथ इस माटी में पैदा हुए बड़ी संख्या में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के लिए भी प्रसिद्ध है। मुलताई एवं प्रभात पट्टन में देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में कई शूरवीरों ने अपना अमूल्य योगदान दिया है तथा अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष जेल की काल कोठरियों में गुजारे हैं ताकि आने वाली पीढ़ी आजाद भारत में स्वांस ले सके। नगर में आनंदराव नारायण राव जैन, चुन्नाीलाल गोविंद सहाय भार्गव, दामा शिवराज मराठा, त्रिलोकीनाथ लक्ष्मी नारायण भार्गव, नानाराय व्यंकटराव खन्नाा, मनोहरराव प्रभाकर राव पौनीकर, मानकचंद अमरचंद अग्रवाल, सो मारपुरी रामपुरी गोस्वामी, रामराव मराठा, लक्ष्मणसिंह गोपालसिंह परिहार, दौलतराव शोभाराव तायवाड़े, रामेश्वर बकाराम खाड़े, वामनराव राजाराम जैन, रामेश्वरदयाल दिलखुशराम अग्रवाल सहित प्रभात पट्टन में भी बड़ी संख्या में देश के एैसे जाबांज सिपाही हुए हैं जिन्होंने मातृभूमि को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए अपने सभी सुखों को त्याग कर कड़ी यातनाएं सही हैं। इस वर्ष देश की आजादी को 74 वर्ष पूर्ण होने पर एैसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को नगर सहित पूरा क्षेत्र नमन कर रहा है।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिजन करते हैं आयोजनः
प्रतिवर्ष नौ अगस्त को क्रांति दिवस के अवसर पर नगर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिजनों द्वारा बसस्टैंड स्थित अक्षय वट वृक्ष के पास आयोजन कर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद किया जाता है। स्व.नानाराय खन्नाा के नाति चिंटू खन्नाा सहित सेनानियों के अन्य परिजनों ने बताया कि वट वृक्ष के पास नगर में हुए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का शिलालेख लगाया गया है जहां प्रतिवर्ष नौ अगस्त को आयोजन किया जाता है। परिजनों ने बताया कि हमारे बुजुर्गो ने कड़ी यातनाएं सही हैं लेकिन वे अपने दृढ़ निश्चय पर अड़े रहे जिससे हारकर अंततः अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा।
आज भी सुरक्षित हैं सेनानी के संस्मरणः
नगर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नानाराय खन्नाा ने सेवाग्राम वर्धा में विशेष रूप से ट्रेनिंग ली थी, वे गरमदल की विचार धारा के थे जिन्होंने खादी पहनने की जिद पर अंग्रेजों से कोड़े खाए थे। नानाराय खन्नाा ने चार वर्ष 11 माह तक जेल में कठोर कारावाास भी काटा था जिसमें अंग्रेजों द्वारा उन्हें कड़ी यातनाएं भी दी गईं थी। नानाराय खन्नाा ने उस समय जेल में जो भी अपने संस्मरण लिखे थे वे आज भी सुरक्षित हैं जिसमें उन्हें दी गई यातनाओं का भी उल्लेख है। आज हम आजादी की फिजाओं में बेखौफ हैं वह इन्ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की बदौलत है जिन्होंने अपनी जवानी देश के नाम कर दी।