बैतूल (ब्यूरो)। जिले भर में परंपरागत जल स्रोतों की खासी उपेक्षा हो रही है। कुएं, तालाब और बावड़ी जैसे यह स्रोत न केवल पानी उपलब्ध कराते थे, बल्कि बारिश का पानी जमीन के भीतर पहुंचा कर जल संरक्षण व संवर्धन में भी मुख्य भूमिका का निर्वहन करते थे। इन जल स्रोतों को कूड़ेदान बना दिए का ही नतीजा है कि जल स्तर लगातार पाताल की ओर जा रहा है और शहर हो या गांव हर तरफ जल संकट से लोग जूझ रहे हैं।
दो दशक पहले तक कुएं, तालाब और बावड़ियां ही मुख्य जल स्रोत हुआ करती थीं। तालाब और कुएं लोगों को पीने और अन्य उपयोग के लिए पानी मुहैया कराते थे वहीं कुछ स्थानों पर बावड़ियां भी थी। जिले में भी बैतूल बाजार समेत कई गांवों में बावड़ियां थीं। जिला मुख्यालय पर भी बस स्टैंड के पास कई साल पहले तक एक बावड़ी का अस्तित्व था। यह बावड़ी तो सालों पहले ही लापता हो गई हैं वहीं अन्य स्थानों की बावड़ियां भी उपयोगविहीन होकर कूड़ेदान की शक्ल ले चुकी है। इसी तरह के हाल कुओं के भी हो चुके हैं। नगर पालिका के रिकॉर्ड के मुताबिक शहर में 19 कुएं किसी समय थे, लेकिन अब शायद ही कोई कुआं ऐसा होगा जिसका कि उपयोग हो रहा हो। अधिकांश कुओं को तो खुद लोगों ने ही कूड़ेदान बना डाला है। लोग इनमें कूड़ा-कचरा फेंकने लगे हैं। इससे कई कुओं का तो लगभग अस्तित्व ही समाप्त हो चुका है। कुओं और बावड़ियों की उपेक्षा होने की मुख्य वजह यह है कि लोगों को नल-जल योजनाओं से जहां सीधे घर के भीतर पानी मिल रहा है वहीं घर-घर में नलकूप भी खनन हो गए हैं। यही कारण है कि व्यक्तिगत हो या सार्वजनिक कुओं की सुध किसी के भी द्वारा नहीं ली जा रही है। कुछ साल पहले तक स्थानीय निकायों द्वारा भी प्राथमिकता के साथ कुओं का गहरीकरण और साफ-सफाई करवाई जाती थी, लेकिन अब तो स्थानीय निकायों की भी यह प्राथमिकता नहीं रह गए हैं।
तालाबों के भी यही हाल
केवल कुएं ही नहीं बल्कि तालाबों के भी यही हाल है। जिला मुख्यालय पर 3 तालाब हैं और इन तालाबों के भी बेहाल हैं। पिछले काफी समय से न इन तालाबों का गहरीकरण हुआ है और न ही साफ-सफाई की गई है। इससे यह तालाब भी कचरा घर बनते जा रहे हैं। जिले के अन्य तालाबों का भी यही हश्र हो रहा है। यही कारण है कि तालाब उथले होते जा रहे हैं और बहुत कम ही पानी का संग्रहण इनमें हो पाता है। जमीन के भीतर पानी भेजने की इनकी क्षमता भी साफ-सफाई के अभाव में कम होती जा रही है।
नहीं हो पा रही रिचार्जिंग
कुएं और तालाबों द्वारा केवल पानी ही उपलब्ध नहीं कराया जाता है बल्कि बारिश के दिनों में वर्षा जल को जमीन के भीतर पहुंचाने में भी यह मुख्य भूमिका का निर्वहन करते थे। इनकी उपेक्षा और इनके लगातार बंद होने के कारण ही अब जमीन का पानी भीतर पहुंचने के लिए कोई जरिया ही नहीं बचा है। यही कारण है कि अब जल स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है। लोग भी केवल पानी उलीचने का ध्यान रखते हैं, जमीन में पानी पहुंचाने की किसी को भी जरा भी फिक्र नहीं रह पाती है।
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दो कदम आगे यहां के लोग
पारंपरिक जल स्रोत कुओं की उपेक्षा तो हो ही रही है पर शहर के 2 क्षेत्रों के लोग तो इनसे भी कहीं आगे निकले। शहर के दुर्गा वार्ड और कृष्णपुरा गौली मोहल्ले में स्थित 2 कुओं को तो खुद कुछ लोगों ने ही मिट्टी डाल कर मूंद दिया और दोनों ही स्थानों पर समतल मैदान बना लिया है। इन कुओं को बंद करने से जागरूक लोगों में खासा आक्रोश भी हैं। अधिवक्ता बीके पांडे कहते हैं कि पारंपरिक जल स्रोतों का उपयोग भले ही नहीं हो, लेकिन देख-रेख होना बेहद आवश्यक हैं। जमीन के भीतर बारिश का पानी पहुंचा कर वे पानी मुहैया कराने में अपनी अदृश्य लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करते रहते हैं।
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बेरुखी से गिर रहा जल स्तर
कुओं और तालाबों की उपेक्षा का ही नतीजा है कि जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। पहले जहां 4-6 मीटर की गहराई पर ही आसानी से पानी उपलब्ध हो जाता था वहीं अब जिले के कुछ क्षेत्रों में तो 50-50 मीटर तक पानी पहुंच जाता है। प्रभातपट्टन ब्लॉक में विगत जून माह में जल स्तर 46.57 मीटर पर पहुंच गया था तो मुलताई में 44.49 मीटर था। आठनेर में जल स्तर 34.05 मीटर पर पहुंच गया था। अन्य विकासखंडों में भी स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है। वर्तमान में जिले का औसत भू-जल स्तर 22.35 मीटर है। मुलताई विकासखंड में अभी ही जल स्तर 38.91 मीटर पर पहुंच चुका है।
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जिले में जल स्तर की स्थिति
विकासखंड--अभी----जून 2014
बैतूल----19.2--27.91
आमला--16.35--28.76
मुलताई--38.91--44.49
प्रभापतट्टन--37.60--46.57
भैंसदेही--21.84--29.94
आठनेर--20.69--34.05
चिचोली--15.22--24.17
भीमपुर--18.87--23.46
शाहपुर--18.02--25.82
घोड़ाडोंगरी--16.96--25.83
औसत--22.35--30.09
वे बोले...
रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिहाज से वर्ष 2011 में शहर के सभी कुओं की साफ-सफाई करवाई गई थी। इस साल भी शहर के कुओं के गहरीकरण और साफ-सफाई का कार्य करवाने के पूरे प्रयास किए जाएंगे।
शैलेश्वर गायकवाड़, सभापति, जल समिति, नगर पालिका, बैतूल