भिंड। नईदुनिया प्रतिनिधि
श्रोता हंस और गाय जैसा होना चाहिए, जिस प्रकार से हंस जब दूध पीता है तो वह दूध और पानी को अलग कर देता है। वह दूध-दूध को पी लेता है। ऐसे ही गाय हरी घास खाती है, लेकिन दूध सफेद देती है। इसी प्रकार श्रोता होना चाहिए कि वह जब भी किसी धर्म सभा में हो तो उसे ज्ञान की बात को ग्रहण करते हुए अपने जीवन में उतारना चाहिए, जिससे उसके जीवन सार्थक हो जाए। यह बात पुस्तक बाजार स्थित परेड जैन मंदिर में चल रही धर्मसभा में आर्यिका विभाश्री माताजी ने कही।
माताजी ने कहा कि एक मूर्ति कलाकार ने चार मुर्तियों को बनाया, लेकिन चारों मूर्ति एक सी होने के कारण उसके दाम अलग-अलग निश्चित थे। जब मूर्ति कलाकार से पूछा गया कि मूर्ति एक जैसी लग रही है, लेकिन दाम अलग-अलग क्यों? तभी उसने पहली मूर्ति के बारे में बताया कि इस मूर्ति के कान तो हैं, लेकिन बंद है और दूसरी मूर्ति के कान हैं, लेकिन इस कान से लकड़ी को डालो और दूसरी तरफ निकल जाएगी। तीसरी मूर्ति के बारे में कहा कि इसके दोनों में लकड़ी को डालों तो वह लकड़ी मुंह से निकल जाएगी। और चौथी मूर्ति ऐसी है कि इसके दोनों कानों में लकड़ी को डालों तो लकड़ी पेट में चली जाएगी। माताजी ने कहा कि कहा कि ऐसे ही आज इंसान हो गया है कि धर्म में प्रवचन तो सुनता है, लेकिन वह कान बंद करके कभी एक कान से सुनता है दूसरे से निकाल देता है और एक श्रोता दोनों कानों से सुनता है और बाहर जाकर बाहर निकाल देता है। एक श्रोता ऐसा होता है कि वह दोनों कानों से सुनता है और उस बात को सीने में उतार लेता है। ऐसे श्रोता जीवन मे कभी धर्म से मुख नहीं मोड़ता वह धर्म की राह पर चलकर अपने जीवन का कल्याण करते हैं। इस मौके पर अरविन्द्र जैन, सुरेन्द्र जैन, नीरज जैन, अंकुश जैन, मनोज जैन, महेश जैन, रमेश जैन, राजीव जैन, अमर चन्द्र जैन आदि उपस्थित थे।