भिंड। घने बीहड़ और चंबल नदी किनारे 16वीं सदी का अटेर दुर्ग अपने शौर्य और स्थापत्य कला की कहानी बयां करता है। 1664 से 1668 में भदावर राजवंश के राजा बदन सिंह और महा सिंह ने अटेर किले का निर्माण करवाया। यह किला हिन्दू और मुग?ल स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। कहते हैं महाभारत में जिस देवगिरि पहाड़ी का उल्लेख है, यह किला उसी पहाड़ी पर है। अटेर किले का मूल नाम देवगिरि दुर्ग है। किले के निर्माण के दौरान राजा ने यहां बहने वाली चंबल नदी की धारा को घुमवा दी थी। इससे यहां चंबल नदी अंग्रेजी के 'यू' सेप में बहती है। किले के रख रखाव का जिम्मा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पास है, लेकिन इसके बावूजद यह जर्जर हो रहा है।
किले का मूल स्वरूप लौटे तो बढ़े पर्यटनः
वर्ष 2021 में अटेर किले के जीर्णोद्धार के लिए प्रदेश सरकार से एक करोड़ 12 लाख 19 हजार रुपए के बजट स्वीकृति की बात सामने आई थी। इस राशि से किले के भीतरी और बाहरी हिस्से को 16वीं सदी के स्वरूप में लाने के लिए किले का जीर्णोद्धार किया जाना था। इसमें किले के बाहरी मुख्य द्वार सतखंडा, दरबारे आम, हाथीखाना, दक्षिण की ओर स्थित भीतरी दीवार, भूमिगत गैलरी, सैय्यद गेट, किले के आंतरिक और बाहरी पार्श्व कक्ष की मरम्मत की जाना थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को यह कार्य करवाना है, लेकिन इसके बावजूद इतने ऐतिहासिक किले की अनदेखी की जा रही है, जबकि किले को मूल स्वरूप में लौटाया जाए तो यहां पर्यटन को काफी बढ़ावा मिल सकता है।
गुप्तचर के प्रवेश के लिए खूनी दरवाजा :
अटेर दुर्ग में खूनी दरवाजा सबसे चर्चित है। अटेर किले के जानकार अशोक तोमर कहते हैं, लोक कथाओं के मुताबिक इस दरवाजे से खून टपकता था। राजा को जब भी राज्य से जुड़ी गुप्त बैठक करना होती तो गुप्तचरों और सलाहकारों को किले में बुलाया जाता था। लाल पत्थर से बने किले के गेट के ऊपर एक विशेष स्थान है, जहां भेड़ का सिर काटकर रख दिया जाता। गेट के बीच में कटोरानुमां पात्र रखते। ऊपर से टपकता खून इस पात्र में जमा होता था। राजा से मिलने पहुंचने वाले गुप्तचर और सलाहकार इस पात्र से खून का तिलक करते तो ही उन्हें प्रहरी किले में अंदर प्रवेश देते थे।
घड़ियाल से चंबल को जोड़ता है किलाः
किले की एक और खासियत है कि यह चंबल नदी को घड़ियाल, मगरमच्छ और कछुए जैसे जलीय जीवों से जोड़ता है। चंबल नदी में राष्ट्रीय घड़ियाल सेंक्चुरी है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि चंबल नदी से घड़ियाल, कछुए और दूसरे जलीय जीवों का नाता बहुत पुराना है। 16वीं सदी में निर्मित इस किले के ऊपरी भाग की छतरी के मेहराव पर कंगूरों के स्थान पर घड़ियाल की आकृति है। यह आज भी नजर आती है। यहां से से जानी के जरिए चंबल नदी को निहारा जा सकता है। दूसरी ओर सामने भवन पर कछुओं की कलाकृति है।
किला देखने पहुंचते हैं देशी-विदेशी पर्यटकः
अटेर किले के कई आकर्षण हैं, जो यहां देशी और विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर खींच लाते हैं। किले में मौजूद खूनी दरवाजे के साथ-साथ ऐसे कई और महल मौजूद है, जो बेहद आकर्षक हैं। इनमें बदन सिंह का महल, राजा का बंगला, रानी का बंगला, बारह खंबा महल इस किले के मुख्य आकर्षण हैं। आज भी इन महल को देखने के लिए कई लोग पहुंचते हैं। अनदेखी के कारण इनमें से अटेर किले के कुछ महल खंडहर के रूप में भी तब्दील होते जा रहे हैं।
वर्जनः
अटेर दुर्ग भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन आता है। किले के जीर्णोद्वार के लिए भी राशि मंजूर हुई है। काम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण कराएगा। हमारी ओर से सर्किट हाउस के पास पर्यटकों के लिए कैंटीन खुलवाई जा रही है।
वीरेंद्र कुमार पांडे, जिला पुरातत्व अधिकारी, भिंड
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