भोपाल (नवदुनिया प्रतिनिधि), Bhopal News। कोरोना संक्रमण के बीच बारिश के पूर्व नालों की सफाई के लिए सफाई कर्मचारी को बिना मास्क, ग्लब्स और गम बूट के नालों में उतारा जा रहा है। नगर पालिका अधिनियम के तहत 29 प्रकार के सेफ्टी गियर्स के साथ ही सरसो का तेल, साबुन और गुढ मुहैया कराने का प्राविधान है लेकिन यह सुविधा भी नहीं दी जा रही है। नगर निगम के 80 फीसद सफाईकर्मियों के पास गम बूट और ग्लब्स है ही नहीं। यह भी तब जब इंसान को घरों से बाहर निकलने के लिए भी मास्क लगाकर निकलने के लिए कहा जा रहा है वहीं नालों में सफाई के लिए सुरक्षा मापदंडों का पालन नहीं किया जा रहा है। जबकि मैन्युअल सफाई के लिए ग्लब्स, गोगल्स, मास्क विथ आॅक्सीजन सिलेंडर, सेफ्टी बेल्ट, बूट्स, वाटरप्रूफ वर्दी, हेलमेट विद टार्च, सीढ़ी, गैस डिटेक्टर आदि उपलब्ध कराने के साथ ही मौके पर एंबुलेंस और निगम प्रशासन के अधिकारी की मौजूदगी भी होनी चाहिए। बता दें कि नगर पालिक अधिनियम के तहत सफाई कर्मचारियों को 29 प्रकार के सेफ्टी गियर्स (सिक्यूरिटी इक्यूपमेंट) के साथ ही सरसों का तेल, साबुन और गुढ़ मुहैया कराने का प्रावधान है।
वर्तमान में मुंबई नगर निगम इसका उदाहरण है। यहां प्रत्येक कर्मचारी को जरूरी उपकरणों के साथ ही प्रतिमाह पांच साबुन, एक लीटर सरसों का तेल और एक किलो गुढ़ का पेमेंट किया जाता है। यही नियम भोपाल नगर निगम में भी लागू होता है, लेकिन इस नियम का पालन नहीं किया जाता है। शहर में 879 छोटे-बड़े नाले हैं और नालियों की संख्या भी काफी अधिक है। इनकी सफाई का जिम्मा करीब दो हजार सफाई कर्मचारियों वाली नाला गैंग पर है। लेकिन इस गैंग के 20 फीसदी कर्मचारियों के पास ही गम बूट और ग्लब्स जैसे जरूरी सुरक्षा उपकण मौजूद हैं। जबकि बाकी कर्मचारी नंगे हाथ-पैरों से करने पर मजबूर हैं।
इसलिए जरूरी है तेल, साबुन और गुढ़ सफाई कर्मचारी घंटों तक धूल और गंदगी के संपर्क में रहते हैं। धूल सांस लेते वक्त उनके फेफड़ों तक पहुंचती है। जो बीमारियों की वजह बनती है। गुढ़ खाने से फेफड़ों में जमी धूल निकल जाती है। इससे सफाई कर्मचारी सांस संबंधी बीमारियों से बचे रहते हैं। जबकि नालियों की सफाई से पहले हाथों पैरों में सरसों का तेल लगाते हैं, ताकि गंदगी न चिपके। साथ सफाई के बाद साबुन से हाथ धोना जरूरी होता है।
प्रत्येक सफाई कर्मचारी को जरूरी उपकरण मुहैया कराए जाते हैं। लेकिन सफाई कर्मी गम बूट और ग्लब्स पहनने से इंकार करते हैं। क्योंकि उनका कहना होता है कि इससे काम करने में दिक्कत होती है।एपी सिंह, अपर आयुक्त, नगर निगम भोपाल
सफाई कर्मचारियों को साबुन, तेल और गुढ़ दिया जाता था, लेकिन करीब 10 से 15 साल पहले इसे बंद कर दिया गया। जबकि नगर निगम अधिनियम में इसका प्रावधान किया गया है। लिहाजा इसकी खरीदी कागजों में हो रही है।
सूरज खरे, पूर्व अध्यक्ष मप्र सफाई कामगार आयोग