
नईदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। एक ओर नगर निगम प्रशासन शहर के उन व्यापारियों और नागरिकों पर सख्ती कर रहा है, जिन्होंने सड़कों पर बिल्डिंग मटेरियल फैला रखा है, ताकि वायु प्रदूषण पर नियंत्रण रखा जा सके। इनसे रोजाना लाखों रुपए का जुर्माना वसूल किया जा रहा है, लेकिन दूसरी ओर सरकारी एजेंसियों की लापरवाही पर प्रशासन आंख मूंदे बैठा है। खासतौर पर एमपी मेट्रो की, जिसके निर्माण कार्य शहर के कई हिस्सों में प्रदूषण का कारण बने हुए हैं ।
सुभाष नगर मेट्रो डिपो से लेकर केवी मेट्रो स्टेशन तक की सड़कों पर धूल के गुब्बार हर वक्त उड़ते रहते हैं। इससे आसपास का माहौल प्रदूषित हो गया है। डिपो के सामने से गुजरने वाले हजारों लोगों को रोज इस धूल भरी हवा का सामना करना पड़ रहा है, जबकि निगम प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी स्थिति पर ध्यान नहीं दे रहे। सवाल यह है कि क्या निगम की सख्ती सिर्फ आम नागरिकों तक सीमित है? एमपी मेट्रो जैसी एजेंसियों पर कार्रवाई न होना कहीं न कहीं प्रशासन की दोहरी नीति को उजागर करता है।
सुभाष नगर मेट्रो डिपो के सामने की सड़क पूरी तरह कच्ची है। यहां दिनभर भारी वाहन आते-जाते हैं, जिससे धूल के गुब्बार उड़ते रहते हैं। स्थिति यह है कि कुछ देर रुकने पर व्यक्ति का चेहरा और कपड़े धूल से भर जाते हैं। यहां से रोजाना करीब 50 हजार लोग गुजरते हैं, जो इस प्रदूषण के सीधे शिकार बन रहे हैं।
एमपी मेट्रो प्रबंधन ने अपने निर्माण स्थल के बाहर न तो ग्रीन नेट लगाई है और न ही सड़क का डामरीकरण कराया गया है। ये दोनों उपाय प्रदूषण नियंत्रण के लिए अनिवार्य हैं, लेकिन नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। डिपो परिसर में बने अस्थायी रास्तों से ट्रक और डंपर बिना किसी धूल नियंत्रण व्यवस्था के निकलते हैं। इससे सड़क से आने-जाने वालों को परेशानी हो रही है, बल्कि हवा में धूल कणों की मात्रा लगातार बढ़ रही है।
केवी मेट्रो स्टेशन रोड के नीचे सड़क की ऊंचाई कम करने का काम चल रहा है। सड़क का एक हिस्सा खोद दिया गया है, जबकि दूसरे हिस्से से लोग और वाहन गुजरते हैं । बेरिकेड्स के पास से निकलते वक्त तेज धूल उड़ती है, जिससे नागरिकों की सांसें तक अटक जाती हैं। प्रदूषण नियंत्रण के मानकों के बावजूद यहां पानी का छिड़काव तक नहीं किया जा रहा।