
भोपाल। राजधानी में नर्मदा संरक्षण न्यास ने आज एक परिचर्चा का आयोजन किया है। बीएसएस कालेज सभागार में दोपहर साढ़े तीन बजे शुरू हुई इस परिचर्चा में पूर्व मुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह के अलावा नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर, पर्यावरणविद राजेन्द्र चंद्रकांत राय सहित नदी संरक्षण से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं। इस कार्यक्रम में नर्मदा से आस्था और अस्तित्व पर चर्चा की जा रही है। बता दें कि दिग्विजय सिंह ने पैदल नर्मदा परिक्रमा करने के बाद नर्मदा संरक्षण न्यास का गठन किया था।
कार्यक्रम में मेधा पाटकर ने कहा कि नदियों को बचाने का आह्वान करते हुए कहा कि सत्ताधीनों पर कोई असर नहीं पड़ा और गंगा के लिए पांच संतों ने प्राणों की आहूति दे दी। नर्मदा किनारे की औषधि न जाने कौन बाबा रामदेव ले जाएगा। आज हर राज्य जंगल का हिसाब लगा रहा है। पर यह जरूरी है कि जंगल से बचने वाले नदियों का हिसाब लगाया जाए। इन संसाधनों को बचाना होगा। हर संसाधन को बचाकर ही नर्मदा को बचाया जा सकता है। वरना बोतल में ही नर्मदा मिलेगी। ब्रम्हपुत्र भी कब तक बहेंगी। चीन ने बांध बना दिया है। विकास चुनावी जुमला बन गया है। जिसे जो समझ में आ रहा है, वह कर रहा है। पूरे साहूकार इस नर्मदा में उतर आए। गांधी की विचारधारा ही असल में आत्मनिर्भरता ला सकती है। सरदार सरोवर इसका बड़ा उदाहरण है। जब ऊपर वाले निर्णय लेते हैं तो नीचे वालों को भुगतना पड़ता है। अमेरिका ने एक हजार बांध तोड़कर नदियों को स्वतंत्र कर दिया। हम कब तक बांध बांधते रहेंगे। सरदार सरोवर बांध को लेकर ट्रिब्यूनल के फैसले से नए विवाद खड़े हुए। दलों के दलदल में मत फंसो। उपजाऊ जमीन को आज डूब क्षेत्र में लाने की कोशिश चल रही है। हमें मिट्टी को भी बचाने की कोशिश करनी चाहिए। हर क्षेत्र का अध्ययन होना चाहिये।
उन्होंने आगे कहा कि जग्गी वासुदेव ने 800 करोड़ रुपये इकट्ठे किए थे। पेड़ लगाने थे। क्या हुआ नमामि देवी नर्मदे यात्रा वाहन यात्रा थी। पेड़ लगने थे लगे क्या। नर्मदा किनारे फाइव स्टार होटल की प्लानिंग चल रही है। सौ मीटर तक कुछ नहीं होना चाहिये। पर करता कौन है। बचे हुए जंगल भी बचाएंगे या नहीं। जहां पेड़ों को लगाने की बात करते हैं, वहां देखिए तो। कोरोना में जो चले गए उनके परिवार से पूछिए, सांसों की महत्व वह बताएंगे। दान धर्म के रूप में नर्मदा में कौन क्या क्या डाल रहा है, यह भी देखना होगा। नर्मदा के चमकते पानी पर गिद्धों (फेक्ट्री) की नजर होती है। अंग्रेजों के जमाने से पानी का बंटवारा है तो उसका पालन क्यों नहीं करते। घाटी के विकास की बात है तो माइक्रो लेवल से शुरू होना चाहिये। सभी के सामंजस्य से बेहतर नियोजन करना चाहिए। सही विकास की धारा अपनाना है तो सरकार की चिकनी चुपडी रिपोर्ट पर भरोसा नहीं कर सकते। आज नर्मदा को लेकर कहीं से भी निर्णय थोपा जाता है। स्थानीय लोगों का पहला हक रखेंगे तभी नर्मदा बचेगी। सीहोर में सबसे ज्यादा रेत खनन चल रहा है। सब जानते हैं। एनजीटी ने कितने आदेश दिए, पर पालन नहीं हो रहा। आज भी रात 12 बजे जाकर पोकलेन मशीन रोकना पड़ रहा है।
इससे पूर्व न्यास के अध्यक्ष दिग्विजय सिंह ने बताया कि देश की प्राचीन नदियों में से एक नर्मदा मध्य प्रदेश की जीवन रेखा है पर अब इस नदी की अविरल धारा क्षीण हो चली है। रेत का बेतहाशा उत्खनन और तटों पर आबाद जंगलों में अंधाधुंध कटाई से इसका अस्तित्व संकट में आ गया है। उन्होंने कहा कि नर्मदा की अमृतधारा सूखने की कगार पर है। ऐसे अनेक प्रश्नों के उत्तर तलाश करने के लिए इस परिचर्चा का आयोजन किया गया है।