प्रवीण मालवीय, नईदुनिया
भोपालः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नर्मदापुरम जिले के पिपरिया में रविवार को चुनावी सभा में स्वतंत्रता संघर्ष में स्थानीय आदिवासियों के योगदान का उल्लेख करते हुए गोंड राजा भभूत सिंह को याद किया। यहां के गोंड राजा भभूत सिंह ने अपनी आदिवासी सेना के साथ वर्ष 1857 की क्रांति में भाग लिया था। उन्होंने जंगल में छुप-छुपकर युद्ध करते हुए तीन साल तक अंग्रेजों को चैन नहीं लेने दिया।
अंग्रेज कैप्टन जैम्स फोर्सिथ ने जंगल के चारों ओर घेराबंदी कर वर्ष 1860 में भेदियों की मदद से भभूत सिंह को गिरफ्तार कर लिया। इस संघर्ष के दो बड़े परिणाम हुए। आदिवासियों के संघर्ष से घबराए अंग्रेजों ने वर्ष 1865 में बोरी को देश का पहला वन्य जीव अभयारण्य बनाते हुए आदिवासियों को जंगल से खदेड़ने का षड्यंत्र किया। यही नहीं, कैप्टन जेम्स फोर्सिथ को उस पचमढ़ी की खोज का श्रेय दे दिया जो आदिवासी जागीर के रूप में जंगल में सदियों पहले से मौजूद था।
पचमढ़ी जागीर के हर्राकोट राईखेड़ी के जागीरदार परिवार में जन्मे राजा भभूत सिंह वर्ष 1857 में सशस्त्र क्रांति का सूत्रपात सतपुड़ा की गोद में कर दिया था। वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तात्या टोपे के आह्वान पर देश की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। अंग्रेजों की आंख में धूल झोंकते हुए अक्टूबर 1858 के अंतिम सप्ताह में तात्या टोपे ने नर्मदा नदी पार की। महुआखेड़ा फतेहपुर के राज गोंड राजा ठाकुर किशोर सिंह ने तात्या टोपे का स्वागत किया। इसके बाद भभूत सिंह और तात्या टोपे ने युद्ध को जारी रखने की योजना बनाई।
तात्या टोपे अपनी फौज के साथ भभूत सिंह से मिलकर आठ दिनों तक पड़ाव डाले आगे की तैयारी करते रहे। भभूत सिंह का आदिवासी समाज पर बहुत प्रभाव था और उनका युद्ध कौशल भी अद्भुत था। वह वन और पहाड़ी मार्ग के चप्पे-चप्पे से परिचित थे। अंग्रेज सेना यही फंस जाती थे। देनवा घाटी में अंग्रेज सेना की मद्रास इंफेंटरी की टुकड़ी को भभूत सिंह ने बुरी तरह हराया। भभूत सिंह छापामार युद्ध नीति से लड़ते रहे। तीन साल तक अंग्रेज सेना को छकाने के बाद अंततः भभूत सिंह पकड़े गए। 21 जनवरी, 1860 को अंग्रेजों ने उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया।
इतिहासकार संगीत वर्मा बताते हैं कि मढ़ई और पचमढ़ी के बीच घने जंगल में आज भी भभूत सिंह के किले का द्वार और अगरिया लोहारों की भट्टियां मौजूद हैं। इससे पता चलता है कि वे न केवल किला बनाकर लड़ रहे थे बल्कि बड़े पैमाने पर हथियार बनाने की क्षमता रखते थे। इन्हीं से अंग्रेजों से लोहा लेते थे। इस किले तक जंगल में लंबी चढ़ाई करके करके पहुंचा जा सकता है। अंचल में न तो भभूत सिंह के इतिहास से आमजन को परिचित कराने का कोई स्मारक बनाया गया न ही इस किले तक आम जन की पहुंच को आसान बनाया गया।