Bhopal Arts and Culture News: गांव में लौटकर आया गोधन, तब जाकर चालू हुई पंचलाइट
शहीद भवन में हुआ नाटक 'पंचलाइट' का मंचन। बुंदेली भाषा में मंचित इस नाटक ने दर्शकों को खूब गुदगुदाया।
By Ravindra Soni
Edited By: Ravindra Soni
Publish Date: Sun, 13 Mar 2022 04:26:32 PM (IST)
Updated Date: Sun, 13 Mar 2022 04:26:32 PM (IST)

भोपाल, नवदुनिया प्रतिनिधि। पिंक बर्ड सोश्यिोकल्चरल सोसायटी की ओर से शहीद भवन में नाटक पंचलाइट का मंचन किया गया। इसमें अविराम जनकल्याण समिति के कलाकारों ने प्रस्तुति दी। इसका निर्देशन अनूप शर्मा ने किया। इसकी कहानी फणीश्वर नाथ रेणु ने लिखी है। इसमें बताया गया है कि समाज में कोई नई टेक्नोलाजी आती है तो समाज उसे कैसे आत्मसात करता है। इसमें आनस्टेज 20 कलाकारों ने अभिनय किया। नाटक को बुंदेलखंडी भाषा में मंचित किया गया।
इसकी कहानी में मेहतो गांव का सबसे नीचे तबके का समुदाय है। परिस्थितिवश यह समाज अन्य समुदाय की देखा देखी पंचलाइट खरीद कर लाता है, लेकिन गांव में किसी व्यक्ति को पंचलाइट चलाना नहीं आता है। सिर्फ गोधन को पंचलाइट चलाना आता है। जिसे गांव वाले समाज से बाहर कर देते है। क्योंकि वह रेडियो पर गाने सुनता है वह एक लड़की मुनिया से प्रेम करता है। जब पंचलाइट आती और कोई उसे चलाने वाला नहीं मिलता तो गोधन को वापस समाज लाने और मनाने का सिलसिला शुरू होता है। अंत में गोधन वापस समाज में शामिल हो जाता है। और वह आकर पंचलाइट चला देता है।
सिनेमा के गीतों का नाटक में प्रयोग
पंचलाइट हास्य प्रधान नाटक है। गांव में लाइट नहीं पहुंचती है। ये बुंदेलखंडी लोग संस्कारी परंपरा में जीवित रहते हैं। मजे से रहते हैं और जीवन निर्वाह करते हैं। इन्हें अपने अभाव की भी परवाह नहीं है। हंसते-खेलते गांव में तब एक युवक प्रवेश करता है, जो शहर से आया है। उस युवक के साथ गांव में आती है शहर की सोच, जो रेडियो पर थोड़ी-सी आधुनिकता के रूप में नाटक में उपस्थित होती है। नाटक में सिनेमा का गीतों का प्रयोग उसी आधुनिकता के रूप में किया है। यहां गांव की पंचायत चिमनी में लगाई जाती है। उस पंचायत के अंदर उस गांव की स्वच्छता और पिछड़ेपन की कहानी कहती है। बाद में नाटक के जरिए गांव को आधुनिकता से जोड़ा जाता है। गांव की परंपराओं को तोड़ने में ग्रामीण भी आगे आते हैं। अंत में पूरा गांव विकास और प्रकाश के पथ पर पंचलाइट के माध्यम से चलता है।