Bhopal News: एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद की खूबसूरती में चार चांद लगा रहा 30 क्विंटल का झूमर
रमजान माह में चलने वाली तारावीह की नमाज झूमर की मद्धम रोशनी में अदा की जा रही। मुंबई के एक परिवार ने किया है दान।
By Ravindra Soni
Edited By: Ravindra Soni
Publish Date: Fri, 31 Mar 2023 12:02:10 PM (IST)
Updated Date: Fri, 31 Mar 2023 12:02:10 PM (IST)

मोहम्मद अबरार खान, भोपाल। इस रमजान में पुराने शहर में स्थित एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद ताजुल मस्जिद की खूबसूरती में 30 क्विंटल का झूमर चार चांद लगा रहा है। पूरे रमजान माह चलने वाली तरावीह की नमाज इस झूमर की मद्धम रोशनी में अदा की जा रही हैं। इस खास तोहफे को मुंबई के परिवार ने गुप्तदान किया है। यह परिवार भोपाल घूमने आया था और पर्यटन के दौरान ताजुल मस्जिद के स्थापत्य और खूबसूरती ने उनका मन मोह लिया था, तब इस परिवार ने इसे और खबूसूरत बनाने की मंशा बनाई और आज यह खास झूमर मस्जिद का हिस्सा बन चुका है।
ताजुल मस्जिद के मौलाना उमर फारूक नदवी बताते हैं कि जनवरी माह में यहां घूमने आए कुछ लोगों ने हमसे संपर्क किया था और मस्जिद के बीच खाली पड़ी झूमर की जगह में एक बड़ा झूमर लगवाने की मंशा जताई थी। इंतेजामिया कमेटी ने इसकी इजाजत दे दी थी। इसके फरवरी में उन्होंने पांच इजीनियर की टीम के साथ यह कांच का बड़ा झूमर भेज दिया। चार दिनों की मशक्कत के बाद 10 लोगों की टीम ने इसे मस्जिद के बीचों-बीच लगा दिया था। इस झूमर की कीमत लाखों में होने का अनुमान है, लेकिन इसे दान करने वाले परिवार ने अपना नाम जाहिर करने से इंकार किया है इसी परिवार ने दिल्ली की जामा मस्जिद में भी इसी तरह का बेशकीमती झूमर लगवाया है।
भोपाल की ताज-उल मस्जिद भारत की सबसे बड़ी मस्जिदों शुमार है आर्किटेक्ट हुसैन बताते हैं कि इस मस्जिद की संरचना काफी आकर्षक और राजसी है। यह इमारत दुनिया की खूबसूरत इमारतों में से एक है। बलुआ पत्थर से बनी इस इमारत को बनाने का सपना शाहजहां बेगम ने देखा था। वे इसे दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद बनाना चाहती थीं। उन्होंने अपनी जिंदगी में इसे 80 प्रतिशत पूरा कर लिया था। अंत में 20 प्रतिशत काम आजादी के बाद मौलाना इमरान साहब के प्रयास और भारत सरकार की मदद से इसे पूरा कराया गया। हुसैन बताते हैं कि ताज-उल मस्जिद मुगल शैली में बनवाई गई है । नवाब शाहजहां बेगम ने ताज-उल मस्जिद का वैज्ञानिक नक्शा तैयार कराया था। आर्किटेक्ट अल्लारखा खां थे। उन्होंने साउंड वेव्स की थ्योरी को ध्यान में रखते हुए 21 खाली पड़े गुंबदों की एक संनचना तैयार कराई कि मुख्य गुंबद के नीचे खड़े होकर जब कोई इमाम साहब तकरीर करते हैं तो उसकी आवाज पूरी मस्जिद में गूंजेती है।
वास्तु शिल्प को देखने आते हैं दुनिया भर के आर्किटेक्ट
ताजुल मस्जिद के वास्तु शिल्प को देखने दुनिया भरके आर्किटेक्ट आते हैं। ताजुल मसाजिद के वाइस प्रिंसिपल डा अतहर हबीब नदवी बताते हैं कि शहर की तीनों बड़ी शाही मस्जिदों, ताजुल मसाजिद, मोती मस्जिद, जामा मस्जिद में हमेशा से पूरे माह की तरावीह की नमाज अदा की जाती है। रमजान माह की 29 वीं शब को कुरान पाठ पूरा हो जाता है। इस दौरान यहां पड़ने वाले लगभग 400 बच्चों की छुट्टियां रहती हैं। यहां रोजाना 1500 लोग तरावीह पड़ने आते हैं। मस्जिद में अंदर बाहर दोनों मिलाकर एक लाख लोग एक साथ नमाज अदा कर सकते हैं।