Bhopal News: भोपाल (नवदुनिया प्रतिनिधि)। शहर के श्यामला हिल्स तुलसी मानस प्रतिष्ठान में प्रतिष्ठा आयोजन तुलसी जयंती समारोह आयोजित हो रहा है। पूर्व कोषाध्यक्ष माधुरीशरन अग्रवाल की पुण्य स्मृति में समर्पित समारोह के द्वितीय दिवस दीदी मंदाकिनी श्रीरामकिंकर ने प्रवचन विषय जै जै जै हनुमान गोसाई। कृपा करहु गुरु देव की नाई। के अंंतर्गत कहा कि जब त्रिभुवन गुरु रूद्रावतार हनुमानजी जैसे पूर्ण सामर्थ्यशाली गुरु प्राप्त करके भी बाहुबली दस-बुध्दि रावण में यदि परिवर्तन नहीं आया, इस सत्य को इंगित करना है कि यदि शिष्य में शिष्यत्व के लक्षण नहीं होगें जैसे पात्र मलिन और छिद्र होने पर कोई भी वस्त उसमें डालने पर व्यर्थ हो जायगी। वैसे ही शिष्य को गुरु में संपूर्ण विश्वास रखकर शरणागत हुए बिना परिवर्तन संभव नहीं। यह विचार दीदी मंदाकिनी रामकिंकर ने ने श्रोता समुदाय के समक्ष प्रगट किए।
शिक्षा और दीक्षा का सूक्ष्म अंतर प्रगट करते हुए विद्वान वक्ता ने दृ्रष्टान्तों के द्वारा समझाया
दीदी ने कहा कि आज कल की आधुनिक षिक्षा प्रणाली मैकाले के द्वारा अंग्रेजों के द्वारा बनाई गई है, जबकि भारत वर्ष की सनातन धर्म की जो अनादि दिव्य गुरु-शिष्य परंपरा है जिसके बच्चों को दीक्षित किया जाता था। दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। जर्मनी का क्रूर नेता एडाल्फ हिटलर और संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदासजी का उदाहरण देते हुए पूज्य दीदी ने समझाया कि दोनों की ही प्रारंभिक-बाल्यावस्था एक जैसी थी अत्यन्त प्रतिकूल, कठोरतापूर्ण और नकारात्मक भरी थी। पर यदि उस नकारात्मकता ने हिटलर के अवचेतन मन पर इतना बुरा प्रभाव छोड़ा- जो घृणा और नफरत से भरी गया और विश्व युध्द का मुख्य कारण बना, वही पर पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास विश्व वंदय सेतु बन गए और ऐसे कालजयी ग्रन्थ के रचयिता बन गए कि आज 500 वर्षों में असंख्य लोग उनका आश्रय लेकर भवसागर तर गए। उसका संपूर्ण श्रेय इस गुरू-शिष्य परंपरा को जाता है।