Bhopal News: कोरोना काल में मानवता जीती, किंतु मंगो बाई हार गई जिंदगी की जंग
भोपाल स्टेशन पर महिला को आया हार्टअटैक। जवानों व डॉक्टर ने दिया बेसिक लाइफ सपोर्ट। अस्पताल भिजवाया, पर नहीं बची जान।
By Ravindra Soni
Edited By: Ravindra Soni
Publish Date: Mon, 26 Jul 2021 02:47:40 PM (IST)
Updated Date: Mon, 26 Jul 2021 02:47:40 PM (IST)

भोपाल, नवदुनिया प्रतिनिधि। कोरोना संक्रमण के विकट दौर में कई लोग अपनों का अंतिम संस्कार करने के लिए सामने नहीं आए। नगर निगम व प्रशासन की टीम ने मृतकों को अंतिम विदाई दी। समय भी ऐसा ही था। बचने की जरूरत भी थी और कोरोना का डर सबसे अधिक था। अभी भी संक्रमण की चिंता और संभावित तीसरी लहर की आशंका लोगों को एक-दूसरे से दूर रहने के लिए विवश करती है। शारीरिक तौर पर कोई किसी की मदद करने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में भोपाल स्टेशन पर अचानक हृदयाघात का शिकार हुई मंगो बाई को बचाने के लिए संक्रमण की चिंता छोड़ दो जवान और स्टेशन से गुजर रहे एक डॉक्टर ने पूरी कोशिश की। दोनों ने रह-रहकर 20 मिनट तक महिला को सीपीआर देते हुए उसे बचाने की कोशिश की। जब स्थिति नहीं सुधरी तो मंगो बाई के बेटे संजय के जरिए मुंह से ऑक्सीजन दिलवाई गई। इसी बीच एंबुलेंस बुलाकर हमीदिया अस्पताल पहुंचवाया। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद मंगो बाई की जिंदगी बच नहीं सकी। कोरोना संक्रमण काल में मानवता की मिसाल पेश करती उनकी कोशिशें वीडियो में कैद हो गई। घटना रविवार रात 10.30 बजे के करीब प्लेटफार्म-1 की है। महिला पातालकोट एक्सप्रेस से स्टेशन पर उतरी थी और रायसेन जिले की रहने वाली थी।
जवानों ने उठाया, डॉक्टर ने दिया सीपीआर
मंगो बाई अपने 19 वर्षीय बेटे व नन्हे पोते के साथ प्लेटफार्म के बीना छोर की तरफ उतरी थी। तभी उसके सीने में अचानक तेज दर्द उठा वह धड़ाम से प्लेटफॉर्म पर गिर गई। नजदीक में जवान इंदर सिंह व आरके चौबे ड्यूटी पर तैनात थे। उन्होंने तुरंत स्ट्रेचर बुलवाया। तब तक जवान इंदर ने महिला के पंजे सहलाते हुए उसे होश में लाने की कोशिश की। इसी बीच हमीदिया अस्पताल के पीजी रेजीडेंट डॉ. हिमांशु रविकांत पटेल की उस पर नजर पड़ी तो वे तुरंत उसके पास पहुंचे और बेसिक लाइफ सपोर्ट देना शुरू किया। सबसे पहले उन्होंने महिला को सीपीआर दिया। यह एक जीवनरक्षक प्रक्रिया होती है, जिसमें हृदयाघात के शिकार व्यक्ति के सीने को दोनों हाथों से कम अंतराल में बार-बार दबाया जाता है ताकि उसकी सांसें पुन: चलने लगे। जब डॉक्टर थक गया तो जवान ने भी कोशिशें कीं। बेटे संजय के जरिए मुंह से पांच बार ऑक्सीजन भी दिलवाईं। तब तक 108 एंबुलेंस को सूचना दे दी गई थी। एंबुलेंस से महिला को हमीदिया अस्पताल भिजवाया। वहां इलाज शुरू होता, उसके पहले ही उसकी मौत हो चुकी थी।
हाथों में दस्ताने नहीं थे, तब भी मैं खुद को रोक नहीं सका
मैंने देखा कि एक जवान के एक हाथ में छोटा बच्चा है। दूसरे हाथ से वह स्ट्रेचर खींच रहा है। दूसरा जवान स्ट्रेचर धका रहा है। महिला स्ट्रेचर पर बेहोश है। एक लड़का बहुत रो रहा है। मेरा मन व्याकुल हो गया। एक डॉक्टर को हमेशा तैयार रहना चाहिए, लेकिन कोरोना का डर था। हाथों में दस्ताने नहीं थे। साथ में मेरी मां व परिवार था। तब भी मैं खुद को मदद करने से रोक नहीं पाया। तुरंत महिला को सीपीआर देना शुरू किया। जवान पहले से सीपीआर देकर थक चुके थे। महिला के बेटे से मुंह के जरिए ऑक्सीजन दिलवाई। शुरूआती लक्षण हार्ट अटैक के लग रहे थे। स्टेशन पर मदद करने के लिए और भी लोग सामने आ चुके थे। एंबुलेंश आ चुकी थी। सीपीआर से महिला दो बार होश में आ गई थी। लगा कि उसकी जान बच जाएगी। सोमवार सुबह खबर मिली कि उसकी मौत हो गई। बहुत दु:ख हो रहा है।
-जैसा हमीदिया अस्पताल के डॉ. हिमांशु रविकांत पटेल ने 'नवदुनिया' को बताया।