Bhopal News: 89 बरस के हुए शायर बशीर बद्र, कभी मुशायरों में लूट लेते थे महफिल, आज बेख्याली में बुदबुदाते हैं अपने शेर
पद्मश्री से सम्मानित बशीर बद्र भोपाल में रह रहे परिवार के साथ। बीते कुछ सालों से डिमेंशिया से जूझ रहे मेहबूब शायर अब न कुछ लिख पाते हैं, न पढ़ पाते हैं।
By Ravindra Soni
Edited By: Ravindra Soni
Publish Date: Thu, 15 Feb 2024 10:01:34 AM (IST)
Updated Date: Thu, 15 Feb 2024 10:01:34 AM (IST)
पत्नी राहत के साथ शायर बशीर बद्र।HighLights
- मप्र उर्दू अकादमी के निदेशक रह चुके हैं शायर बशीर बद्र।
- वर्ष 2012 में उन्हें भूलने की बीमारी का अहसास हुआ था।
- उर्दू के अजीम शायर बशीर बद्र अब किसी को नहीं पहचानते।
सुशील पांडेय, भोपाल। शायर बशीर बद्र गुरुवार को अपना 90वां जन्मदिन मना रहे हैं। उनका जन्म 15 फरवरी 1935 को फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था, लेकिन पिछले 35 सालों से वह भोपाल के बाशिंदे हैं। मेहबूब शायर के नाम से मशहूर पद्मश्री सम्मान प्राप्त बशीर बद्र पिछले कुछ सालों से बीमार हैं। डिमेंशिया नामक बीमारी से पीड़ित होने के कारण अब उन्हें कुछ याद भी नहीं रहता। बस गुमसुम से घर पर पड़े रहते हैं। अब वह न कुछ लिख पाते हैं, न पढ़ पाते हैं। कभी-कभी उनकी याददाश्त आती है तो बेख्याली में अपने लिखे शेर गुनगुना लेते हैं। वह अपने परिवार के साथ रेहाना कालोनी (शहीद गेट के पास) निवासरत हैं। जीवन के इस पड़ाव में उनकी पत्नी और बेटा उनके साथ हैं।
जुबां पर यूं ही चले आते हैं अल्फाज
बशीर साहब की शरीक-ए-हयात (धर्मपत्नी) डा. राहत बद्र बताती हैं कि बद्र साहब की जुबां पर शायरी के अल्फाज यूं ही चले आते हैं। उनके जन्मदिन के मौके पर डा. राहत बद्र ने नवदुनिया से अपने पति की वो बातें साझा की, जो वे बेख्याली में इन दिनों उनसे कहते हैं। पिछले 12 सालों से डिमेंशिया बीमारी से जूझ रहे उर्दू के अजीम शायर अब किसी को नहीं पहचानते। हां, अभी उनके कुछ शेर जब उनके कानों में पहुंचते हैं तो वह बेचैन होकर दोहराने की कोशिश करते हैं।
तलत अजीज ने घर आकर जाना था हालचाल
राहत बद्र बताती हैं कि गत वर्ष मशहूर गजल गायक तलत अजीज घर पर आए थे। उन्होंने घर आकर गजलें सुनाई थी। बहुत खुश हुए थे। बेटा तैयब भी उनकी गजलें उन्हीं की तरन्नुम में गाकर सुनाता है, तो उन्हें बहुत अच्छा लगता है। नई पीढ़ी इनको पढ़कर शायरी कर रही है। नए शायर उनके दर्शन करने आते घर हैं।
राहत बताती हैं कि उर्दू अकादमी, भोपाल के निदेशक पद रहते हुए 2012 में इन्हें भूलने की बीमारी का अहसास हुआ था। डाक्टर को दिखाया तो डिमेंशिया के लक्षण आ चुके थे, तभी से इलाज चल रहा है, लेकिन वक्त के साथ बीमारी बढ़ती गई। अब वह बहुत कमजोर हो गए हैं।
जन्मदिन पर मिलने आते हैं चाहने वाले
डा. राहत बद्र बताती हैं, आज भी वह शायरी करने की कोशिश करते हैं, कुछ अल्फाज कहते हैं- जैसे दरिया, पानी, आइना, लगता है जैसे कोई शेर बनाने की कोशिश कर रहे हों। बशीर साहब ने 60 साल मुशायरे पढ़ते हुए सफर किया है, तो उन्हें हर वक्त लगता है कि वह सफर में हैं। डा. बद्र ने बताया कि हम लोग उनका जन्मदिन हर साल सादगी से मनाते हैं। जरूरतमंदों की खाने का कच्चा सामान दान करते हैं। इस साल भी ऐसा ही करेंगे। हर साल उनके चाहने वाले घर आते हैं, उन्हें बधाई देने। जन्म दिन पर उनके मुरीद बड़ी संख्या में घर आते हैं। जो नहीं आ पाते, फोन पर बधाई देते हैं।