Bhopal Yoga News: भोपाल (नवदुनिया प्रतिनिधि)। योग आध्यात्मिक केंद्र में विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष में योगाभ्यास करवाते हुए योग गुरु महेश अग्रवाल ने कहा कि आदिवासियों के मूलभूत अधिकारों की सामाजिक, आर्थिक और न्यायिक सुरक्षा के लिए प्रत्येक वर्ष आदिवासी दिवस मनाया जाता है। पहली बार आदिवासी या मूलनिवासी दिवस 1994 को जेनेवा में मनाया गया।
योग गुरु ने कहा कि आदिवासी शब्द दो शब्दों 'आदि' और 'वासी' से मिल कर बना है और इसका अर्थ मूल निवासी होता है। पुरातन संस्कृत ग्रंथों में आदिवासियों को अत्विका' नाम से संबोधित किया गया एवं भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए अनुसूचित जनजाति पद का उपयोग किया गया है। किसी भी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल करने के निम्न आधार हैं।
आदिम लक्षण, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक पृथक्करण, समाज के एक बड़े भाग से संपर्क में संकोच या पिछड़ापन। आदिवासियों की देशज ज्ञान परंपरा काफी समृद्ध है।
विशिष्ट कार्यों से होती है जाति की पहचान
योग गुरु ने कहा कि किसी भी जाति की पहचान समाज में उसके विशिष्ट कार्यों से होती है, कार्य ही व्यक्ति, जाति, जनजाति को समाज में प्रतिष्ठा प्रदान करता है। सोने का काम करने वाला सोनार, लोहे का कार्य करने वाला लोहार, मछली पकड़ने वाला मछुवारा नाव चलाने वाला नाविक आदि इसके कार्यों से इनकी पहचान है। आदिवासी सबसे ज्यादा मेहनती, वनस्पति की विभिन्न जड़ी बूटियों की कुशल जानकारी रखने वाला उन जड़ी बूटी की पहचान कर घने जंगलों से तोड़कर लाने वाला है। योग गुरु अग्रवाल ने कहा कि व्यक्ति का जीवन आत्म स्वीकृत गरीबी से भरा जीवन होना चाहिये। वस्तुतः निर्धनता शब्द को सरलता में बदल देना चाहिये। जीवन में सरलता का मतलब हुआ- अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं और सीमित सुविधाओं के हिसाब से जीवन निर्वाह करना।अपनी भौतिक जरूरतों को बढ़ाते ही हम अपने आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन स्तर में अनेक जटिलताएँ पैदा कर लेते है।