भोपाल शशिकांत तिवारी कालम : पिछड़ा विभाग, ऊपर से लूपलाइन की सुविधाएं
राजधानी में ऐेसे भी विभागीय अधिकारी हैं, जिनके पद तो रुतबेदार हैं, लेकिन न चमकती गाड़ी हैै, न ही नौकर-चाकर।
By Ravindra Soni
Edited By: Ravindra Soni
Publish Date: Fri, 04 Feb 2022 05:03:06 PM (IST)
Updated Date: Fri, 04 Feb 2022 05:03:06 PM (IST)

शशिकांत तिवारी, भोपाल। पिछड़ा विभाग, ऊपर से लूपलाइन की सुविधाएं. किसी भी अधिकारी का रुतबा तो गाड़ी और बंगले से ही समझ में आता है। चमचमाती गाड़ी, चार नौकर-चाकर। राजधानी में अच्छी जगह पर सरकारी बंगला हो तो लोग अपने आप ही अंदाजा लगाने लगते हैं कि यह साहब केंद्र या प्रदेश सरकार के किसी रुतबे वाले विभाग में होंगे। अब उन अधिकारियों को भी देखिए जिनके पास पद तो रुतबेदार है, योग्यता में भी कम नहीं है, खुद को योग्य साबित करने के लिए कभी-कभी टाई बांधते हैं और अंग्रेजी बोलते हैं, लेकिन न तो चमकती गाड़ी है, न ही नौकर-चाकर। जैसे-पशुपालन विभाग के साहबान। उनके पास 20 साल से ज्यादा पुरानी गाड़ियां हैं। चलती हैं तो इंसान क्या मवेशी भी डर जाते हैं। कभी भी घड़-घड़ कर बंद हो जाती हैं। फिर धक्का लगाओ। बुधवार को भी ऐसा ही हुआ जब पशु चिकित्सा विभाग के एक अधिकारी की गाड़ी बैरसिया जाते वक्त पंक्चर हो गई।
कभी तो सितारे बुलंद होंगे
गांधी मेडिकल कालेज में कब किसकी कुर्सी लड़खड़ा जाए, कह नहीं सकते। एक प्रोफेसर ने तो यहां पर दो बार डीन की कुर्सी संभाली। दोनों बार किसी न किसी कारण से उन्हें हटा दिया गया। दोबारा डीन का पद मिला तो सोचा था कि डीएमई तक का सफर तय हो जाएगा, लेकिन सपने चकनाचूर हो गए, उन्हें डीन पद से हटा दिया गया। अब महीने भर पहले डीएमई का पद खाली हुआ। अब एक बार फिर उनकी उम्मीदों को पंख लगे। लगा हो सकता है सरकार उनकी योग्यता को पहचाने और डीएमई की कुर्सी पर बैठा दे। कोई बड़ी बात भी नहीं है। डीन पद से हट चुके लोग पहले भी डीएमई बन चुके हैं लेकिन इनकी उम्मीद उस वक्त धराशायी हो गई जब पता चला कि डा. जितेन शुक्ला को डीन बना दिया गया। अब इन्हें डीएमई नहीं बनने का दुख तो है ही, इस बात का ज्यादा मलाल है कि जिन्हें डीएमई बनाया गया है वह उनसे काफी जूनियर हैं।
क्या समझें मैडम की तू-तड़ाक को
स्वास्थ्य विभाग के एक बड़े कार्यालय के अधिकारी-कर्मचारी इन दिनों अबूझ पहेली में उलझे हैं। वे पूरी ताकत इस पर लगा रहे हैं कि उनकी कार्यालय प्रमुख तू-तड़ाक कर सबसे बात करती हैं। इसे मैडम का स्नेह माने या तकरार। मैडम जैसे ही बोलती हैं तू ऐसा कर लेना तो अधिकारी झेंप ही जाते हैं, पर करें क्या। अपने अफसर के व्यवहार पर अंगुली उठाई तो नौकरी पर बन आएगी। कुछ तो इस बात से खुद को तसल्ली कर लेते हैं कि वह जिस क्षेत्र से आती हैं वहां की भाषा ही इस तरह की है। जिससे जितना तू-तकार किया जाए वह उतना ही प्रिय माना जाता है। पता नहीं क्षेत्र का असर है या फिर इनकी भाषा ही ऐसी है। कुछ तो इस बात से बहुत खुश हैं कि मैडम उन्हें बहुत मानती हैं, तभी तो तेरे- मेरे से शुरू होती हैं।
संस्थान केंद्रीय है तो जुगाड़ प्रादेशिक नहीं चलेगा
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल के निदेशक के पद पर नियुक्ति की प्रक्रिया जैसे-जैसे तेज हो रही है जुगाड़ लगाने का काम भी तेज हो गया है। भोपाल के लोग वैसे भी जुगाड़ लगाने में माहिर हैं, लेकिन एम्स तो केंद्रीय संस्थान है। यहां प्रादेशिक जुगाड़ से काम नहीं चलने वाला। दिल्ली तक पहुंच बनानी पड़ेगी। सबसे ज्यादा जोर मार रहे हैं गांधी मेडिकल कालेज भोपाल से जुडे दो दिग्गज। एक तो एम्स में ही हैं। दूसरे जीएमसी से निकलकर एक विश्वविद्यालय का वीसी रह चुके हैं। अब एम्स के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं। उन्होंने बड़े-बड़े लोगों का इलाज किया है तो पहुंच तो होगी ही। दूसरे साहब आइएएस लाबी में अच्छी पकड़ के चलते जोर मार रहे हैं। खैर यह तो एम्स है। देशभर से लोग आना चाहते हैं। दो महीने में साफ हो जाएगा किसने कितना जोर मारा।