राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। नौ वर्ष बाद सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों को पदोन्नति देने के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने ' मप्र लोक सेवा पदोन्नति नियम 2025' बनाए, लेकिन यह फिर कानूनी विवादों में उलझ सकते हैं। इससे संभावना बन रही है कि पदोन्नति का मामला एक बार फिर लंबे समय के लिए टल सकता है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर मुख्य पीठ के निर्देश के बाद राज्य सरकार के अधिकारी इसका जवाब बनाने के लिए सोमवार को परेशान रहे। माना जा रहा है कि हाईकोर्ट के अगले निर्देश तक कोई पदोन्नति नहीं होगी।
बता दें कि राज्य सरकार ने नए नियमों में अनुसूचित जाति और जनजाति को 36 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय किया था, साथ ही मेरिट आधार पर बाकी पदों में भी आरक्षित वर्ग को दोहरा लाभ देने के प्रविधान के चलते सामान्य वर्ग के कर्मचारियों ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई में हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार ने पूछा कि वर्ष 2002 के पुराने नियम और 2025 में बने नियम में क्या फर्क है? सरकार कोर्ट में इसका कोई जवाब नहीं दे सकी।
इस पर चीफ जस्टिस ने कहा ऐसी स्थिति में नए नियमों को लागू नहीं किया जा सकता और पदोन्नति में आरक्षण पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी है। अगली सुनवाई 15 जुलाई को होगी। इसमें सरकार अपना पक्ष मजबूती से रखने की तैयारी कर रही है, ताकि कोर्ट में नए और पुराने नियमों में अंतर को समझाया जा सके। इधर, सामान्य प्रशासन विभाग के नए अपर मुख्य सचिव संजय शुक्ल ने इस मामले में कुछ भी बोलने से मना कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि मुख्य सचिव ने 31 जुलाई तक सभी विभागों को डीपीसी कर पदोन्नति करने के लिए कहा था। कुछ विभागों में पदोन्नति प्रारंभ भी हो गई थी। करीब चार लाख अधिकारी-कर्मचारियों को पदोन्नति का लाभ मिलना है, जबकि वर्ष 2016 के बाद से एक लाख बिना पदोन्नति सेवानिवृत हो चुके हैं।
पदोन्नति का मामला उलझ तो गया है। सरकार ने जब नियम बनाए हैं तो उसे तत्काल जवाब प्रस्तुत करना चाहिए। यदि कोई असामान्य बात कोर्ट पाएगी तो कोर्ट उस पर संज्ञान लेगी। कर्मचारियों को पहले ही पदोन्नति न मिलने से बड़ा नुकसान हुआ है। इसके लिए सरकार बताए कि उन्होंने इन कारणों में नियमों में वंचित वर्ग को लाभ दिया है। कोर्ट ने 2002 और 2025 के नियमों के बीच के फर्क पर जवाब मांगा है, इसे सरकार को स्पष्ट करना चाहिए।
- रविनंदन सिंह, पूर्व महाधिवक्ता मप्र हाईकोर्ट
नए पदोन्नति के नियम समस्या तो बन गए हैं। दरअसल, राजनेता कुछ समझना नहीं चाहते हैं। जो भी नियम हम बनाते हैं, उससे पहले संविधान की संरचना को देख लेना चाहिए। संविधान के मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय द्वारा जो व्याख्या दी जाती है, वही समाज में संतुलन बनती है। इससे हर वर्ग को आगे बढ़ने का मौका मिलता है और योग्यता को भी सम्मान मिलता है। कई बार अफसरशाही इन चीजों को नियमों में परिभाषित नहीं कर पाती है। त्रुटियों के कारण नियम कानूनी उलझन में फंस जाते हैं।
- विवेक कृष्ण तन्खा, पूर्व महाधिवक्ता मप्र हाईकोर्ट
सरकार ने नौ साल तक पदोन्नति रोकी रखी और जब पदोन्नति के नियम बनाए तो एम नागराज मामले को फालो नहीं किया है। पदोन्नति के जो पुराने नियम निरस्त किए गए थे, सरकार ने वहीं नियम फिर से बना दिए। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में केस वापस नहीं लिया, उल्टा नए नियम बनाकर कई विसंगतियां डाल दी। क्रीमीलेयर लागू नहीं किया। सरकार ने कोई डाटा एकत्र नहीं किया। जो सरकारी परीक्षा में टॉपर रहे वे सब निम्न पदों पर है, जो बाद में भर्ती हुए ऐसे कम रैंक वाले पदोन्नत होकर उच्च पद पर पहुंचे। जूनियर अगर सीनियर बन भी गया तो वहां उसे रोका जाता है, जब तक की सीनियर उसके आगे न निकल जाए। सरकार ने यह भी व्यवस्था भी नहीं की।
- केपीएस तोमर, संस्थापक सपाक्स
न्यायालय ने प्रथम दृष्टया पदोन्नति नियमों में कुछ न कुछ कमी मानी है तभी सरकार को तुलनात्मक चार्ट बनाने के निर्देश दिए हैं। अगली सुनवाई तक पदोन्नति की कोई कार्यवाही नहीं करने के मौखिक आदेश दिए हैं। हमारा भी यही कहना है। इस निर्णय से न्यायिक व्यवस्था में हमारा विश्वास सुदृढ हुआ है। हम इसका स्वागत करते हैं। जिन चीजों के कारण विवाद हुआ उसे सरकार को सुधारना था। नए नियम लागू होने से फिर से पहले जैसी स्थिति बनती। नियम इस तरह से बना दिए हैं कि ऊपर के पदों पर केवल 100 प्रतिशत आरक्षित वर्ग ही पहुंच रहा है। सामान्य, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग का व्यक्ति ऊपर जा ही नहीं सकता।
- इंजी. सुधीर नायक, अध्यक्ष मंत्रालय सेवा अधिकारी, कर्मचारी संघ