नईदुनिया प्रतिनिधि, श्योपुर। कूनो नेशनल पार्क में मादा चीता शावक की तेंदुए से संघर्ष में मौत होने की घटना ने प्रबंधन की चुनौती बढ़ा दी है, क्योंकि चीता पुनर्वास परियोजना की शुरुआत में ही माना गया था कि इस क्षेत्र में चीतों को तेंदुओं से बड़ा खतरा है। 64 वर्ग किमी के बाड़े में हाथी की सहायता से तेंदुओं को यहां से दूर करने की कवायद के बाद ही चीते यहां बसाए गए थे। अब कूनो में मौजूद 24 चीतों में से 14 खुले जंगल में हैं और उनमें से आधे शावक हैं, इसलिए आवश्यक है कि इन्हें तेंदुओं वाले क्षेत्रों से दूर रखा जाए।
सिंह परियोजना के निदेशक उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि खुले जंगल में ज्वाला, आशा व गामिनी चीता अपने शावकों के साथ है। अब उम्र बढ़ने के साथ ये शावक भी अकेले जंगल में निकलने लगे हैं। इसलिए निगरानी टीम को सचेत किया गया है कि तेंदुओं की मौजूदगी वाले क्षेत्रों से जल्द से जल्द शावकों को निकाल कर वापस उन्हें मां के आसपास पहुंचाया जाए। दरअसल ज्वाला के जिस 20 माह की मादा चीता शावक की तेंदुए के हमले में मौत हुई है, उसमें सामने आया है कि वह मां व भाइयों से अलग होकर दूर पहुंच गई थी।
एक चीतल के शिकार के दौरान उसकी तेंदुए से भिड़ंत हो गई थी। अधिकारियों के अनुसार एक से डेढ़ वर्ष की उम्र पार होने पर शावक के लिए यह सामान्य बात है कि वे मां से अलग होकर स्वयं शिकार कर जंगल में रहन-सहन करें, लेकिन वे सुरक्षित रहें, यह भी जरूरी है। कूनो में तेंदुओं की संख्या 110 से अधिक है। हर 100 किलोमीटर की परिधि में 10 तेंदुए होने का अनुमान है। यहां से खदेड़े जाने के बाद तेंदुए मुरैना, ग्वालियर और शिवपुरी के क्षेत्रों तक पहुंच गए, जो रहवासी क्षेत्रों से खदेड़े जाने के बाद वापस कूनो की ओर रुख कर रहे हैं।
कूनो के पूर्व डीएफओ पीके वर्मा के अनुसार इस क्षेत्र में तेंदुए ही खूंखार हैं। वह हर उस जगह पर हैं, जहां चीतल, जंगली सूअर, हिरण जैसे शिकार मौजूद हैं। इन्हीं जगहों पर शिकार के लिए चीतों का भी मूवमेंट रहता है। सेवानिवृत्त डीएफओ चंदू सिंह चौहान का कहना है कि चीते में तेंदुए जैसी आक्रामकता व ताकत नहीं होती है, इसलिए इनके बीच तब तक दूरी रखना ही उपाय है जब तक कि चीतों की संख्या इतनी नहीं हो जाती कि ये झुंड बनाकर अपने से बड़े जानवर पर भारी पड़ सकें।
चीता पुनर्वास परियोजना का पूरा जोर चीतों की वंशवृद्धि पर है। इसी के चलते कूनो पार्क से मंदसौर स्थित गांधीसागर अभयारण्य भेजे गए नर चीता प्रभाष व पावक के पास बुधवार को मादा धीरा को भेजा गया। कूनो में प्रभाष के संपर्क से वीरा चीता चार व पावक से गामिनी चीता छह शावकों को जन्म दे चुकी है, जो कि स्वस्थ हैं। कुछ समय तक धीरा को बाड़े में रखने के बाद पावक-प्रभाष के पास छोड़ा जाएगा।
धीरा ने अभी किसी शावक को जन्म नहीं दिया है। वनाधिकारियों का कहना है कि नवंबर तक भी नर व मादा चीता आपसी संपर्क में आ जाते हैं तो फरवरी 2026 तक धीरा से खुशखबरी मिल सकती है। अभी तक अधिकांश शावकों की मौत जन्म के तुरंत बाद भीषण गर्मी के कारण ही हुई है। गर्मी झेलने के बाद शावक अच्छी तरह भारतीय वातावरण में घुलमिल रहे हैं। इसलिए वंशवृद्धि और शावकों को जीवित रखने का रोडमैप बनाया गया है।