भोपाल (नवदुनिया प्रतिनिधि)। अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस के अवसर पर बाल श्रम विरोधी अभियान की मप्र प्रदेश राज्य इकाई के तत्वाधान में एक ऑनलाइन राज्य स्तरीय विमर्श का आयोजन किया गया। इसमें सरकार के विभिन्न विभागों के प्रतिनिधि, प्रदेश के अनेक जिलों के संस्था प्रतिनिधि, बाल कल्याण समितियों और चाइल्ड लाइन इकाइयों के सदस्य और बाल समूहों के पदाधिकारी शामिल हुए। इस अवसर पर बाल संरक्षण संबंधी प्रशिक्षण माड्यूल और बच्चों की पत्रिका- पंखुड़ी का विमोचन किया गया। परिचर्चा मे राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य ब्रजेश चौहान, महिला एवं बाल विकास विभाग के संयुक्त संचालक सुरेश तोमर, सहायक श्रम आयुक्त मेघना भट्ट, सेव द चिल्ड्रन से रमाकांत सत्पथी, इंटरनेशनल जस्टिस मिशन से रूबेका ने अपने विचार व्यक्त किए। संचालन संजय कुमार सिंह और सत्येन्द्र पाण्डेय ने किया। इस अभियान के राज्य संयोजक राजीव भार्गव ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए बताया कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2021 को बाल श्रम उन्मूलन का वर्ष घोषित किया है। इस वैश्विक अभियान को मजबूती देने के लिए, कैंपेन अगेंस्ट चाइल्ड लेबर की राज्य समिति ने पांच साल के बाद जमीन पर स्थिति और बाल श्रम पर कोविड-़19 के प्रभाव की समीक्षा करने के लिए एक राज्य स्तरीय अध्ययन किया है जिसको यहां प्रस्तुत करके आगे की रण नीति बनाई जाएगी। राज्य स्तरीय अध्ययन को अभियान की साथी तरन्नुम और स्नेहलता ने प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि इस अध्ययन मे दो प्रविधियों का इस्तेमाल किया गया है। पहले मे 18 जिलों 140 गांवों और 41 शहरी बस्तियों मे कोरोना काल के दौरान बाल श्रम की स्थिति का अवलोकन किया गया।
अध्ययन मे प्राप्त मुख्य बिन्दु
- 81 फीसद गांवों और बस्तियों मे बच्चे बाल श्रम करते हुए पाए गए।
- तकरीबन 66 प्रतिशत गांवों/ बस्तियों मे बच्चे किसी न किसी रूप मे जोखिमपूर्ण काम करते हैं जिनमे फैक्ट्री मे काम, खेती मे मशीनों से काम, कीटनाशकों का छिड़काव और जानवरों की देखरेख, कबाड़ बीनना, कुआं खुदाई, स्टोन क्रेशर और ईंट भत्तों मे काम करना आदि शामिल है।
- लगभग 80 फीसद गांवों/ बस्तियों में 14 साल से काम आयु के करीब 80 प्रतिशत बच्चे पारिवारिक उपक्रमों मे काम करते हुए दिखाई देते हैं।
- तकरीबन 45 फीसद बस्तियों में बच्चे प्रतिदिन छह घंटे से अधिक देर तक काम करते हैं। जब यही सवाल बच्चों से पूछा गया तो 59 फीसद बच्चों का कहना था कि वे रोज छह घंटे से ज्यादा काम करते हैं। इनमें से 23 प्रतिशत बच्चों की कार्यावधि तो आठ घंटे से भी अधिक है।
- करीब 40 प्रतिशत बच्चों ने कहा कि वे काम छोड़कर पढ़ाई करना पसंद करेंगे।
बच्चों ने रखी मांग
बाल पंचायत की प्रतिनिधियों- अंकित और निधि ने बच्चों का मांगपत्र प्रस्तुत किया। जिसमें मुख्य रूप से शामिल हैं- माता पिता के लिए रोज़गार उपलब्ध कराना, शिक्षा एवं सरकारी योजनाओ का प्रचार प्रसार करना,शिक्षा के लिए प्रोत्साहन राशि उपलब्ध कराना, ग़रीब बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा के बाद निःशुल्क शिक्षा एवं जहां आवागमन के साधनों की समस्या है वहां छात्रावास उपलब्ध करवाना, प्रत्येक जिले में श्रमोदय विद्यालय की स्थापना होना चाहिए, बच्चों से किसी भी तरह का श्रम कराने वाले नियोक्ता पर वैधानिक कार्यवाही हो, बाल अधिकार अधिनियम को बच्चो के पाठ्यक्रम शामिल करना चाहिए, बाल श्रम को रोकने के लिए प्रत्येक गांव में गठित बाल संरक्षण समितियों को क्रियाशील करना चाहिए, बाल श्रम हेतु गठित जिला स्तरीय टास्क फ़ोर्स सक्रिय हों और उसमे स्थानीय संस्थाओं को शामिल किया जाये।
बंधुआ मजदूरी को खत्म करने पर जोर देना चाहिए
इस अवसर पर पैनल परिचर्चा को संबोधित करते हुए आमोद खन्ना ने बाल श्रम के पीछे सामाजिक आर्थिक विषमता और गरीबी को बताया और कहा कि समाज से गरीबी को खत्म किए बिना बाल श्रम को समाप्त किया जाना संभव नहीं है। सेव द चिल्ड्रन के रमाकांत सत्पथी ने विभिन्न राज्यों में बाल श्रम की संपती के लिए किए गए सामाजिक प्रयासों का उल्लेख किया। सुश्री रिबेका ने बंधुआ मजदूरी को खत्म करने के लिए भी काम करने पर जोर दिया। सहायक श्रम आयुक्त मेघना भट्ट ने बाल श्रम की समाप्ति के लिए श्रम विभाग द्वारा किए गए प्रयासों की जानकारी प्रदान की। संयुक्त संचालक सुरेश तोमर ने कहा कि बाल श्रम को खत्म किए बिना बच्चों की गरिमा संभव नहीं। उन्होंने समाज की बुनावट को बाल श्रम के लिए जिम्मेवार बताया।
बाल आयोग ने एक एसओपी जारी करेगा
राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य ब्रजेश चौहान ने कहा कि बच्चों द्वारा प्रस्तुत मांगपत्र के आधार पर आयोग एक मानक ऑपरेशनल प्रोसीजर बनाएगा जिसके लिए सामाजिक संस्थाएं और संगठन भी सहयोग करें। इस अवसर पर प्रदेश के विभिन्न जिलों से जुड़े साथियों ने जमीनी सवाल उठाए जिनका समाधान भी ब्रजेश चौहान द्वारा किया गया। दतिया से रामजी शरण राय ने कहा कि जिलों मे बाल श्रम टास्क फोर्स या तो गठित नहीं हैं या सक्रिय नहीं हैं। छिंदवाड़ा से महेंद्र खरे ने कहा कि बच्चों के मांगपत्र पर काम होना चाहिए। ग्वालियर से उमेश वशिष्ठ ने कहा कि बाल श्रम बढ़ रहा है, लेकिन एनसीलपी केंद्र बंद किए जा रहे हैं। अंत मे प्रदीप नायर ने सभी साथियों और अतिथियों का आभार व्यक्त किया।