भोपाल(राज्य ब्यूरो)। कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान देशभर में रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों की जबरिया कोरोना जांच कराई गई। जिन यात्रियों ने जांच कराने से मना किया, उनके खिलाफ स्थानीय जिला प्रशासन ने एफआईआर दर्ज कराई। फलस्वरूप यात्रियों को न्यायालय के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। जब रेलवे मंत्रालय से पूछा गया कि ऐसा किन नियमों के तहत किया, तो मंत्रालय दस्तावेज नहीं दे पाया। अधिकारियों ने पहले तो चुप्पी साधी और बाद में बताया ऐसे कोई दिशा-निर्देश जारी ही नहीं किए गए। ऐसे में सवाल उठता है कि रेलवे के कार्यक्षेत्र में स्थानीय प्रशासन को कार्रवाई करने के अधिकार आखिर कैसे मिले। मामले में केंद्रीय सूचना आयोग ने फैसला सुनाते हुए रेलवे मंत्रालय को शिकायतकर्ता को चाही गई जानकारी 15 दिन में देने और पारदर्शिता बनाए रखने के निर्देश दिए हैं।
भोपाल के आरटीआई (सूचना के अधिकार) कार्यकर्ता प्रकाश अग्रवाल ने छत्तीसगढ़ के बालौद की एक घटना को लेकर रेलवे मंत्रालय से पूछा कि क्या यात्रा के दौरान यात्रियों की स्टेशन पर कोरोना जांच कराने के दिशा-निर्देश दिए थे। इस पर मंत्रालय ने जवाब नहीं दिया। दूसरी अपील में भी जवाब नहीं मिला, तो अंतिम अपील केंद्रीय सूचना आयोग में की गई। जब आयोग ने पूछा तो रेलवे मंत्रालय ने बताया कि ऐसे कोई दिशा-निर्देश नहीं दिए गए हैं। वहीं स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी माना कि रेलवे स्टेशनों पर कोरोना जांच कराना अनिवार्य नहीं है। यह स्वैच्छिक है, कोई चाहे तो करा सकता है।
इसमें आयोग ने 12 दिसंबर को फैसला सुनाया है कि 15 दिन में शिकायतकर्ता को पूरी पारदर्शिता के साथ जानकारी दें। उल्लेखनीय है कि 28 अप्रैल 2021 को दुर्ग से चले दीपक साहू दल्ली राजहरा रेलवे स्टेशन उतरे थे। स्टेशन पर स्वास्थ्य कर्मचारियों ने कोरोना जांच कराने को कहा। साहू ने कहा कि मैं स्वस्थ्य हूं तो जांच क्यों? इसमें कहा-सुनी हुई और साहू पर शासकीय कार्य में बाधा डालने का आरोप लगाते हुए विभिन्न् धाराओं में एफआईआर दर्ज करा दी गई। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। उनके भाई चिरंजीव साहू ने बालोद कलेक्टर से अनुरोध किया पर कोई राहत नहीं मिली।