भोपाल (नवदुनिया प्रतिनिधि)। यह खबर डराने वाली नहीं, बल्कि सतर्क करने वाली है। कोरोना से संक्रमित होने के बाद जब जांच रिपोर्ट निगेटिव आ जाती है, तो ऐसे में ज्यादातर लोग यह मान लेते हैं कि पूरी तरह से स्वस्थ हो चुके हैं। बहरहाल, ऐसा नहीं है। बीमारी ठीक होने के बाद भी कुछ दिन के लिए शरीर में कुछ दुष्प्रभाव छोड़ जाती है। कोरोना के चलते खून गाढ़ा होने पर थक्के बनते हैं जो दिल का दौरा, लकवा, फेफड़े की धमनी में अवरोध समेत कई बीमारियां दे सकते हैं। थक्का बनने की पहचान खून में डी-डाइमर नामक प्रोटीन का बढ़ने से होती है।
गांधी मेडिकल कॉलेज, भोपाल के छाती व श्वास रोग विभाग के एचओडी व राज्य सरकार के कोविड सलाहकार डॉ. लोकेंद्र दवे ने कहा कि मध्यम या गंभीर रूप से कोरोना पीड़ितों में 20 से 30 फीसद में ठीक होने के बाद डी-डाइमर तय मात्रा से पांच गुना तक ज्यादा मिल रहा है। हमीदिया अस्पताल की ओपीडी में हर दिन एक-दो मरीज इस तरह के आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि हमीदिया अस्पताल में अभी भी एक मरीज भर्ती है, जिसका डी-डाइमर 24 हजार नैनोग्राम/एमएल है, जबकि सामान्य मात्रा 500 से नीचे होनी चाहिए।
एलएन मेडिकल कॉलेज में सहायक प्राध्यापक (मेडिसिन) डॉ. आदर्श वाजपेयी ने बताया कि कई ऐसे मरीज भी मिल रहे हैं, जिन्हें कोई लक्षण नहीं हैं। फेफड़े का सीटी स्कैन भी नॉर्मल रहता है, लेकिन डी-डाइमर तीन से पांच गुना तक बढ़ा रहता है। यानी सब कुछ ठीक दिखने के बाद भी वह खतरे में रहते हैं। उन्होंने कहा कि ज्यादा थकान, मांसपेशियों में दर्द और सांस फूलना डी-डाइमर बढ़ने की पहचान हो सकती है। इलाज के तौर पर खून पतला करने की दवाएं दी जाती हैं। बता दें कि एम्स समेत कई कोविड अस्पतालों में इसकी जांच ही नहीं कराई जाती।
केस-1
40 साल का एक युवक एक दिसंबर को कोरोना की चपेट में आया। कमजोरी, बेचैनी की शिकायत लेकर वह 15 जनवरी को फिर जेके अस्पताल में डॉ. आदर्श वाजपेयी के पास पहुंचा। डी-डाइमर टेस्ट कराया तो रिजल्ट 2500 नैनोग्राम/एमएल आया, जो सामान्य से पांच गुना ज्यादा है। युवक को घबराहट भी हो रही थी। उसका इलाज और काउंसिलिंग की गई।
केस-2
होशंगाबाद की रहने वाली 38 साल की एक महिला को कोरोना होने पर भोपाल के जेके अस्पताल में भर्ती कराया गया। कोरोना की जांच रिपोर्ट निगेटिव आने पर उन्हें 11वें दिन अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। मांसपेशियों में दर्द होने पर 20 दिन बाद वह फालोअप के लिए जेके अस्पताल पहुंचीं। इस दौरान डी-डाइमर टेस्ट कराया तो परिणाम 2000 नैनोग्राम/एमएल आया।
20 से 30 फीसद लोगों में ठीक होने के बाद भी बढ़ा मिल रहा डी-डाइमर
बंसल अस्पताल के छाती व श्वास रोग विशेषज्ञ डॉ. अश्विन मल्होत्रा ने कहा कि कोरोना से ठीक हो चुके गंभीर मरीजों में से 20-30 फीसद में डी-डाइमर तीन महीने तक बढ़ा मिल रहा है। इसकी वजह से मरीजों को ब्रेन स्ट्रोक, फेफड़े की मुख्य आर्टरी के ब्लॉक होने, दिल का दौरा पड़ने का खतरा रहता है। कई मरीज इन दिक्कतों के साथ अस्पताल पहुंच भी रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे मरीजों को करीब तीन महीने तक खून पतला करने की दवाएं देनी पड़ रही हैं।
क्या है डी-डाइमर
खून के गाढ़ा होने पर थक्के (क्लॉट्स) बनते हैं। इन थक्कों में फाइब्रिन नाम से जाला बनता है। धीरे-धीरे थक्के घुलते हैं, जिससे यह जाला टूटता है। डी-डाइमर इसी का एक टुकड़ा है। यह एक तरह का प्रोटीन है। इसके बढ़ने का मतलब यह है कि शरीर में थक्के बने हुए हैं। डी-डाइमर तय सीमा से जितना बढ़ा होता है, उसका मतलब यह है कि क्लॉटिंग उतनी ज्यादा है।