
Dol Ekadashi 2022: भोपाल, नवदुनिया प्रतिनिधि। हिंदू पंचांग के मुताबिक आज भाद्रपद शुक्ल एकादशी है। इसे डोल ग्यारस, परिवर्तनी एकादशी, पद्मा एकादशी, जलझूलनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। पंडित रामजीवन दुबे ने बताया कि इस तिथि पर भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप बाल-गोपाल को एक डोल में विराजित कर शोभा यात्रा निकाली जाती है। इसलिए इसे डोल ग्यारस कहा जाता है। कृष्ण जन्म के अठारहवें दिन माता यशोदा ने उनका जलवा पूजन किया था। इसी दिन को डोल ग्यारस के रूप में मनाया जाता है। जलवा पूजन के बाद ही संस्कारों की शुरुआत होती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को डोल में बिठाकर तरह-तरह की झांकी के साथ बड़े ही हर्षोल्लास के साथ जुलूस निकाले जाते हैं। इस दिन भगवान राधा-कृष्ण के नयनाभिराम विद्युत सज्जित डोल निकाले जाते हैं। डोल ग्यारस पर मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं। इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस तिथि पर भगवान विष्णु और उनके आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण के पूजन का विधान है।
डोल ग्यारस के अवसर पर गाजे-बाजे के साथ भगवान कृष्ण की शहर में शोभा यात्रा निकाली जाती है। भगवान कृष्ण को पालकी में बिठाकर मंदिरों से यह शोभा यात्रा निकली जाती है। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपने घरों से बाहर निकलते है और भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन कर पालकी के नीचे से परिक्रमा लगाते हैं।
शुभ मुहूर्त
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की एकादशी 06 सितंबर, मंगलवार को प्रात: 05:54 बजे से शुरू होगी, जो 07 सितंबर, बुधवार 2022 को पूर्वाह्न 03:04 बजे तक रहेगी. जबकि व्रत के पारण का (व्रत तोड़ने का) समय प्रात: 08:19 से 08:33 बजे तक रहेगा।
डोल ग्यारस व्रत का महत्व
मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य-फल मिलता है। इस दिन व्रत करने से रोग-दोष आदि से मुक्ति मिलती है। व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि व मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। इस दिन दान-पुण्य करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है। यह व्रत करने से जीवन से सभी कष्टों एवं संकटों का नाश होता है।
भगवान कृष्ण के घाट पूजन का त्यौहार है डोल ग्यारस
राजधानी भोपाल में नवाबी शासनकाल से भी पहले भगवान श्रीकृष्ण के डोल निकाले जाते थे। जिसमें प्रत्येक कृष्ण मंदिरों के लकड़ी एवं पीतल आदि से बने डोल में भगवान लड्डू गोपाल को बैठाकर सभी डोल चौक बाजार में एकत्रित होकर एक जुलूस के रूप में खटलापुरा घाट पहुंचे थे। जहां घाट पूजा के बाद वापस मंदिर आते थे। वापसी के समय महिलाएं माता यशोदा की सूखे दाल चावल की खिचड़ी से गोद भराई कर पूजन की रस्म अदा करती थी। यह परंपरा आज भी जारी है। समाजसेवी प्रमोद नेमा ने बताया कि भोपाल में पहली बार पं. उद्ववदास मेहता भाईजी, बल्लभ गोयल, मोहन सिंहल आदि ने पुलिस चौकी के पास पीपल के नीचे श्रीगणेश भगवान की स्थापना की एवं डोल के साथ ही खटलापुरा में गणेश विसर्जन किया। इसके बाद जुलूस मार्ग तय कर डोल ग्यारस समारोह समिति की स्थापना हुई। इसी समिति के द्वारा वर्तमान में चल समारोह निकाला जाता है। जिसमें सबसे आगे पीपल चौक के गणेश जी की झांकी होती है। पीछे यादव समाज बरखेड़ी, राम मंदिर हमीदिया रोड, कृष्ण मंदिर घोड़ा नक्कास, बांके बिहारी मंदिर, साहू समाज मंदिर सहित अन्य मंदिरों एवं समाजों के डोल शामिल होते हैं। बड़ी संख्या में लगभग 20 वर्ष पूर्व तक डोल को कंधे पर लेकर कीर्तन मंडलिया भी शामिल होती थी। लेकिन अब सिर्फ एक भानपुरा की मंडली जुलूस में शामिल होती है। साथ ही बच्चों द्वारा स्थापित छोटे गणेश जी की प्रतिमा इस जुलूस में विसर्जन के लिए जाती हैं। बाकी बड़ी प्रतिमाओं का विसर्जन अनंत चतुर्दशी के दिन किया जाता है।
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