नवदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। बैंक ने किसानों को दी जाने वाली फसल बीमा के लिए ड्राफ्ट बनाकर एक कोरियर कंपनी के माध्यम से बीमा कंपनी को भेजा था। इसमें बैंक ने किसानों की सूची, डिक्लेरेशन फॉर्म व अन्य दस्तावेज बीमा कंपनी के भोपाल स्थित कार्यालय में जमा करने के लिए कोरियर किया था, लेकिन डाक पहुंचा ही नहीं। इसकी वजह से दो साल बाद भी 45 किसानों को फसल बीमा राशि नहीं मिली। मामले की शिकायत जिला उपभोक्ता आयोग की बेंच क्रमांक-2 पहुंची।
आयोग ने इस महत्वपूर्ण मामले में फैसला सुनाते हुए डीटीडीसी एक्सप्रेस लिमिटेड कंपनी पर 20 रुपये कोरियर शुल्क के साथ सात हजार का हर्जाना लगाया है। दरअसल,भारतीय स्टेट बैंक द्वारा अपने खाता धारक किसानों की खरीफ फसल बीमा के लिए 10 लाख से अधिक की प्रीमियम राशि नामे की जाकर एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी ऑफ इंडिया के नाम इसका ड्राफ्ट बनाया था। अक्टूबर 2015 में किसानों के सभी दस्तावेज को ड्राफ्ट बनाकर डीटीडीसी कंपनी से 20 रुपये शुल्क अदा करके कोरियर डाक बुक की थी।
बैंक ने शिकायत में बताया कि कोरियर कंपनी ने न तो डाक को बीमा कंपनी को डिलीवर किया और न ही बैंक को वापस लौटाया। साल 2017 में डाक डिलीवरी नहीं होने की जानकारी बैंक को तब लगी, जब 45 किसानों को उनकी दावा की हुई राशि नहीं मिल पाई। इस पर बैंक ने इंश्योरेंस कंपनी से पत्राचार किया। उन्होंने यह भी बताया कि राशि न मिलने पर किसानों को जो क्षति हुई है, उसकी जिम्मेदारी भी बैंक पर आई है। इसके बाद बैंक ने कोरियर और इंश्योरेंस कंपनी दोनों के खिलाफ केस लगाया था।
बीमा कंपनी ने अपना पक्ष रख मामले में बीमा कंपनी ने तर्क रखा कि उसे किसानों के दस्तावेज मिले ही नहीं है। इस आधार पर वह दोषी नहीं है। वहीं कोरियर कंपनी की तरफ से न तो कोई जवाब नहीं आया, इसलिए मामले में एकपक्षीय सुनवाई की गई। मामले में कोरियर कंपनी लिया गया, 20 रुपये सेवा शुल्क दो माह में अदा करने के साथ ही मानसिक क्षतिपूर्ति राशि 10 हजार रुपये देने का आदेश दिया।
टीलाजमालपुरा स्थित धर्मेन्द्र उपाध्याय ने डाबर इंडिया लिमि नई दिल्ली और टीलाजमालपुरा स्थित जीतू मेडिकल शाप के खिलाफ पिछले साल जिला उपभोक्ता आयोग में याचिका लगाई थी। इसमें उपभोक्ता ने शिकायत की थी कि उसने घर के पास के दुकान से एक 950 ग्राम का एक डाबर च्वयनप्राश की बोतल खरीदा था, लेकिन जब उपभोक्ता को बोतल हल्का लगा तो वजन कराया और वह 756 ग्राम का निकला। मामले में उपभोक्ता ने दुकानदार को शिकायत की तो उनका कहना था कि कंपनी से बोतल सील पैक होकर आता है।
पैकेजिंग पर उत्पाद का वजन लिखा होता है। उनकी इसमें कोई गलती नहीं है। वहीं डाबर कंपनी कहना है कि वे अपने उत्पादों के लिए उच्च गुणवत्ता मानकों का पालन करते हैं। उनकी कंपनी में वजन की जांच स्वचलित मशीन के माध्यम से की जाती है। जब आयोग ने बोतल का वजन कराया तो 756 ग्राम पाया गया। आयोग ने सभी तर्क को खारिज करते हुए डाबर कंपनी पर कम वजन के च्वयनप्राश की कीमत 60 रुपये और 50 हजार रुपये का हर्जाना लगाया।