
राज्य ब्यूरो, नईदुनिया.भोपाल। मध्य प्रदेश में वर्षों से चले आ रहे माओवादी हिंसा का संकट समाप्त होने के बाद अब सरकार का बड़ा खर्च भी बचेगा। माओवादी आतंक से निपटने के लिए राज्य सरकार को हर माह सुरक्षाकर्मियों के वेतन पर कम से कम 15 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। परिवहन, भोजन, शस्त्र और अन्य सुरक्षा इंतजामों को जोड़ दिया जाए तो यह खर्च करीब 20 करोड़ रुपये प्रतिमाह तक पहुंच जाता है।

पुलिस मुख्यालय के अधिकारियों के अनुसार वर्तमान में अलग-अलग पुलिस बलों के लगभग 2,200 अधिकारी-कर्मचारी सुरक्षा व्यवस्था में लगे हुए हैं। इसमें सीआरपीएफ की तीन कंपनियां भी सम्मिलित हैं। हालात सामान्य होने के बाद परिस्थितियों की समीक्षा कर सुरक्षा बलों को चरणबद्ध तरीके से हटाने की योजना बनाई गई है, ताकि इन बलों का उपयोग राज्य के अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में किया जा सके।
हालांकि, पुलिस के सामने अभी बड़ी चुनौती यह है कि माओवादी समस्या किसी रूप में फिर से पनपने नहीं पाए।प्रभावित क्षेत्र को पूरी तरह से समस्यामुक्त मानने के लिए एक हजार से अधिक पुलिसकर्मियों को जंगल में उतारा गया है। वे एक तरफ से तलाशी करते हुए आगे बढ़ रहे हैं।
इसके बाद सुरक्षा की समीक्षा की जाएगी, जिसमें निर्धारित किया जाएगा कि सबसे पहले कौन से पुलिस बल को हटाना है। अभी यहां हाकफोर्स के 1200 अधिकारी-कर्मचारी, जिला पुलिस बल के जवान, विशेष सशस्त्र बल की दो बटालियन तैनात हैं। सीआरपीएफ की दो और कपंनियां दो वर्ष से मप्र पुलिस मुख्यालय केंद्र सरकार से मांग रहा था, पर वहां भी बल कमी से नहीं मिलीं। इस बीच अब समस्या समाप्त हो गई।

बालाघाट रेंज के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती सात जिलों को मिलाकर माओवादियों ने एमएमसी जोन बनाया था। दो नवंबर के बाद से 42 दिन में यहां सक्रिय सभी 42 माओवादियों ने आत्मसमर्पण कर दिया है, पर छत्तीसगढ़ में अभी भी सूचीबद्ध माओवादी सक्रिय हैं। जब तक पड़ोसी राज्य में समस्या है, मध्य प्रदेश में बिल्कुल ढिलाई नहीं की जाएगी। सुरक्षा व्यवस्था भी यथावत रहेगी। समस्या समाप्त होने के बाद भी खुफिया इनपुट के आधार बल हटाने का निर्णय लिया जाएगा।