दीपक विश्वकर्मा, भोपाल। देश की नवरत्न कंपनियों में शामिल केंद्र सरकार के औद्योगिक उपक्रम भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड (बीएचईएल) की सबसे बड़ी इकाई भोपाल में 57 साल से स्थापित है, लेकिन जिस 6000 एकड़ जमीन पर भेल का कब्जा है उसका भेल ने राज्य सरकार से अब तक अधिकार पत्र (लीज डीड) नहीं बनवाया। जबकि, केंद्र के भारी उद्योग मंत्रालय ने 1962 में भूमि आवंटन होने के बाद भेल प्रबंधन को जमीन का अधिकार पत्र बनवाने के लिए दर्जनों बार पत्र लिखे। इसका उल्लेख 2010 में तत्कालीन भोपाल कमिश्नर मनोज श्रीवास्तव ने अपनी रिपोर्ट में किया था। साथ ही उन्होंने भेल को आवंटित जमीन की लीज डीड तत्काल तैयार करवाने की सिफारिश करते हुए यह भी स्पष्ट किया था कि लीज डीड नहीं होने की स्थिति में उपरोक्त जमीन पर भेल का अधिकार स्थापित नहीं होगा।
दरअसल 1957 से 1962 के बीच तत्कालीन कांग्रेस की राज्य सरकार ने भोपाल में छह हजार 45 एकड़ जमीन केंद्र सरकार को भेल कारखाना स्थापित करने के लिए उपलब्ध करवाई थी। इसमें एक बड़ा हिस्सा राज्य सरकार द्वारा अधिगृहित किया गया था, जिसका मुआवजा भी संबंधितों को राज्य सरकार द्वारा ही दिया गया था। जमीन आवंटन के बाद इसका गजट नोटिफिकेशन भी हुआ और भेल के पक्ष में ही भू-अर्जन अधिनियम की धारा 11 के तहत अवार्ड पारित किया गया। इसके बाद पांचसाला खसरा संशोधन में भी भेल के नाम प्रविष्टि हुई, लेकिन भेल ने आज तक राज्य सरकार से जमीन का अधिकार पत्र (लीज डीड) नहीं बनवाया। भेल प्रबंधन गजट नोटिफिकेशन के आधार पर ही जमीन पर अपना अधिकार दिखाता रहा। मुश्किल उस समय खड़ी हो गई, जब राज्य सरकार ने गोल्फ कोर्स और अन्य उपयोग के लिए भेल से खाली पड़ी जमीन वापस मांग ली। सरकार द्वारा जमीन वापस लेने को लेकर अब भेल प्रबंधन हाईकोर्ट चला गया है, जिस पर कोर्ट ने राज्य सरकार ने जवाब मांगा है।
यूं तो भेल का वर्तमान में करीब चार हजार एकड़ जमीन पर ही कारखाना, आवासीय परिसर समेत अन्य निर्माण है, जबकि करीब 2000 एकड़ जमीन खाली पड़ी हुई है। इसमें अब तक करीब 700 एकड़ पर अतिक्रमण भी हो चुका है। इसी अतिक्रमण को लेकर वर्ष 2010 में तत्कालीन भोपाल कमिश्नर मनोज श्रीवास्तव ने पूरे मामले की स्वत: जांच की थी और राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव को सौंपी गई रिपोर्ट में स्पष्ट किया था कि केंद्र सरकार द्वारा उपरोक्त छह हजार एकड़ जमीन के लिए राज्य सरकार के साथ अधिकार अनुबंध पत्र तैयार करवाने भेल प्रबंधन को दर्जनों पत्र लिखे गए, लेकिन प्रबंधन ने अब तक अधिकार अनुबंध पत्र नहीं बनवाया है। ऐसी स्थिति में भेल को आवंटित जमीन पर उसका कोई अधिकार नहीं रह जाता। यह जमीन अभी भी राज्य सरकार की ही है। इसके बाद ही राज्य सरकार ने भेल को दी गई जमीन का सर्वे करवाकर बी और सी केटेगरी की 1161 एकड़ जमीन को 8 मई 2019 को वापस ले लिया था। इस पर भेल प्रबंधन ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
अतिक्रमणकारी कर रहे कब्जा
मुफ्त में मिलने वाली इस जमीन को भेल लौटाना नहीं चाहता है। भेल ने जहां कारखाना और अपने कर्मचारियों के लिए आवास व संस्थान बनाए, वह जमीन सिर्फ 3121 एकड़ है। 611.45 एकड़ जमीन भेल ने दूसरे संस्थानों जैसे स्कूल, कॉलेज आदि को आवंटित की है। 100.46 एकड़ जमीन भेल द्वारा राज्य शासन को वापस कर दी गई है। भेल की 2000 एकड़ जमीन खाली पड़ी है। इसमें जंबूरी मैदान, भेल दशहरा मैदान के अलावा करीब 764.5 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण है।
भेल के नाम पर आज तक कोई लीज डीड नहीं बनाई गई है। किसी भी जमीन के आवंटन पर उसकी लीज डीड आवश्यक होती है। उसी में जमीन का क्षेत्र, लीज रेंट, लीज की अवधि और शर्तों का उल्लेख होता है, जिससे संबंधित का अधिकार स्थापित होता है।
-अविनाश लवानिया, कलेक्टर, भोपाल
भेल भारत सरकार का उपक्रम है। राज्य शासन ने भू-अर्जन कर केंद्र सरकार को जमीन दी थी। केंद्र सरकार ने यह उपक्रम लगाया है। इसमें कोई त्रुटि वाला सवाल नहीं उठता है।
- राघवेंद्र शुक्ल, वरिष्ठ प्रवक्ता, भेल भोपाल