भोपाल (नवदुनिया रिपोर्टर)। राजधानी भोपाल में स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय द्वारा अपनी ऑनलाइन प्रदर्शनी श्रृंखला के 40वें सोपान के तहत पारंपरिक तकनीक उद्यान मुक्ताकाश प्रदर्शनी से मध्य प्रदेश की रहट सिंचाई की एक पारंपरिक तकनीकी की जानकारी को ऑनलाइन प्रदर्शनी श्रृंखला के तहत प्रदर्शित किया गया है। इससे संबंधित विस्तृत जानकारी तथा छायाचित्रों एवं वीडियो को ऑनलाइन प्रस्तुत किया गया है। संग्रहालय सहायक मोहन लाल गोयल ने बताया कि रहट मुख्यत: देश के मैदानी क्षेत्रों में सिंचाई की सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली तकनीक रही है। इस प्रादर्श को मप्र के भिंड जिले से संग्रहीत किया गया है। रहट का प्रयोग मप्र, राजस्थान व अन्य प्रदेशों के मैदानी इलाकों में भी किया जाता रहा है।
ऐसे काम करती है तकनीक
रहट पारंपरिक रूप से लोहे व स्थानीय लकड़ी से बनाया जाता है, जिसमें लोहे का एक बड़ा पहिया होता है जो लोहे के एक पाइप से जुड़ा होता है। यह बड़ा पहिया कुंए के पाट पर लकड़ी के सहारे ऊर्ध्वाधर रखा जाता है, जिससे छोटी-छोटी लोहे की बाल्टियों को चेन के माध्यम से जोड़कर लटकाया जाता है। इस प्रादर्श में 29 छोटी-छोटी बाल्टियां जोड़ी गई हैं। बाल्टियों की संख्या कुंए की गहराई के आधार पर तय की जाती है। बड़े पहिया से लगे लोहे के पाइप के दूसरे छोर पर एक छोटा लोहे का पहिया ऊर्ध्वाधर जुड़ा होता है, जिसमें लोहे के गियर होते हैं। इस चक्र को घरिया कहा जाता है। इस घरिया के नीचे एक अन्य चक्र को क्षैतिज रूप से इस प्रकार फिट किया जाता है कि उसके गियर घरिया में फंस जाए। क्षैतिज चक्र की धुरी से एक लंबी लकड़ी फंसाई जाती है, जिसे एक या दो बैलों द्वारा गोल चक्र में घुमाया जाता है। इस से कुंए पर रखा दूसरा बड़ा चक्र भी घूमता है, परिणामस्वरूप उसमें लगी बाल्टियों में पानी भर कर कुंए से बाहर आता है। जो एक टीन की बनी डोंगी में गिरकर उससे जुड़ी नाली के माध्यम से खेत में पहुंचता है। यहां पानी को विभिन्न नालियों में ले जाकर फसलों की सिंचाई की जाती है। गियर का उपयोग उस पारंपरिक ज्ञान की उन्नत तकनीकी विकास को दर्शाता है।
श्रम की बचत और पर्यावरण संरक्षण
इस विधि से सिंचाई के लिए पानी निकालने में बैलों को अधिक श्रम की आवश्यकता नहीं पड़ती। बैलों को हांकने के लिए एक व्यक्ति की आवश्यकता होती है। सिंचाई की इस तकनीक में किसी तरह की बिजली या जीवाश्म ईधन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इससे पर्यावरण का भी संरक्षण होता है। वर्तमान समय में विभिन्न प्रकार की आधुनिक तकनीकों जैसे- डीजल या सौर ऊर्जा से संचालित पंप का इस्तेमाल सिंचाई के लिए किया जाने लगा है और धीरे-धीरे रहट का उपयोग समाप्त होता जा रहा है। फिर भी दूर-दराज के क्षेत्रों में अभी भी इसका उपयोग देखने को मिलता है।