By Ravindra SoniEdited By: Ravindra Soni
Publish Date: Fri, 25 Jun 2021 11:48:48 AM (IST)Updated Date: Fri, 25 Jun 2021 11:48:48 AM (IST)
भोपाल (नवदुनिया रिपोर्टर)। बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों पर एकाग्र श्रृंखला 'गमक" के तहत गुरुवार को मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा अंजुमन ए गुलिस्तान ए चारबैत पार्टी के कलाकार उस्ताद लाल
मियां और साथी, भोपाल और बज्म ए शाहिद चारबैत पार्टी के कलाकार उस्ताद मो. मुख्तार और साथी, भोपाल के बीच चारबैत मुकाबला आयोजित किया गया। इसका प्रसारण विभाग के यूट्यूब चैनल और फेसबुक पेज पर किया गया।
इस मुकाबले में अंजुमन ए गुलिस्तान ए चारबैत पार्टी के कलाकार उस्ताद-लाल मियां, भगवान दास, खलीफा- मो. सलीम एवं बज्म-ए शाहिद चारबैत पार्टी के कलाकार उस्ताद मो. मुख्तार, खलीफा- मो. अजीम ने सहभागिता निभाई। एक जमाना था जब भोपाल में हर मोहल्ले में चारबैत के मुकाबले होते थे। हर छोटी-बड़ी खुशी के अवसरों और त्योहारों पर इसके आयोजन होते थे। होली, दीवाली और ईद पर चारबैत लिखी गई हैं।
मप्र उर्दू अकादमी की निदेशक नुसरत मेहंदी ने बताया कि भोपाल के कई शायरों ने चारबैत की विषय सामग्री को साहित्यिक बनाने में योगदान दिया है। इनमें मुंशी भोपाली, कैफ भोपाली, शेरी भोपाली, बासित भोपाली, ताज भोपाली, साहिब भोपाली, वकील भोपाली, जकी वारसी, सैयद रमजान अली और इशरत कादरी के नाम प्रमुख हैं। ये लोग चारबैत के कलाकारों को खुद की शायरी तो देते ही थे, साथ ही इकबाल, गालिब, मीर, फैज, जिगर मुरादाबादी के अशआर पर गिरह लगाकर उन्हें चार पंक्तियों का बनाकर भी इन्हें नया रूप देते थे।
चारबैत शायरी की ही एक विधा है, ढपली से मिलती है संगत
चारबैत के प्रत्येक बंद में चार पंक्तियां होती हैं। यह एक विशेष बहर अर्थात मीटर में लिखी जाती है। चारबैत का
आधार गायकी है। इस गायकी का अपना विशिष्ट रंग और आकर्षण होता है जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता
है। इसमें कोई साज नहीं बजाया जाता, केवल एक दफ जिसे ढपली भी कह सकते हैं, का इसमें उपयोग किया जाता है। चारबैत में शायरी दफ की थाप पर विशिष्ट लय में कई रागों में गाई जाती है। इसमें हम्द, नात, इश्क ओ मोहब्बत, रूहानी सूफी और हास्य व्यंग्य की कविताओं के अतिरिक्त दो मासा और चौमासा गाने का रिवाज रहा है। पूर्व में युद्ध, साहस, सूफियाना, रूहानियत, हास्य इसके विषय होते थे। तदुपरांत सामाजिक, राजनीतिक परिस्थितियां भी इसके विषयों में शामिल हो गए। एक समय में चारबैत की लोकप्रियता चरम पर थी। भारत में चारबैत की विधा चार सौ साल पुरानी मानी जाती है।