राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। प्रदेश में सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इसके पहले सरकार की ओर से न्यायालय में लगभग 15 हजार पेज की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए समय की मांग की, जिसे न्यायालय ने स्वीकार करते हुए अगली सुनवाई के लिए आठ अक्टूबर की तिथि नियत की। उधर, सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मध्य प्रदेश की सुनवाई अलग से करने की मांग रखी, जिसे स्वीकार किया गया। अभी छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के मामले की सुनवाई साथ-साथ हो रही थी।
ओबीसी महासभा की राष्ट्रीय कोर कमेटी सदस्य एवं याचिकाकर्ता लोकेंद्र गुर्जर ने बताया कि देश के अटार्नी जनरल तथा राज्य सरकार की ओर से उपस्थित अधिवक्ताओं ने पक्ष रखते हुए अंतरिम आदेश के तहत लागू स्थगन को हटाने का निवेदन प्रस्तुत किया।
वहीं, ओबीसी समाज की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन ने मध्य प्रदेश मामले में अंतरिम आदेश पारित करने की मांग रखी। याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने कहा कि अनेक नए दस्तावेज प्रस्तुत किए गए हैं, जो हमें एक दिन पहले ही मिले हैं। इनका अध्ययन के लिए अतिरिक्त समय दिया जाए।
इसे न्यायालय ने स्वीकार कर आठ अक्टूबर से नियमित सुनवाई निर्धारित की। मुख्य सचिव अनुराग जैन ने ओबीसी आरक्षण और पदोन्नति के मामले को लेकर अधिकारियों से फीडबैक लिया।
मंत्रालय सूत्रों के अनुसार राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण को लेकर कई रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसमें 1983 में बने रामजी महाजन आयोग के साथ राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के 1994 से लेकर 2011 तक के प्रतिवेदन, पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन की अध्यक्षता में गठित हुए पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की रिपोर्ट के साथ डा.बीआर आंबेडकर सामाजिक विश्वविद्यालय द्वारा मध्य प्रदेश के अन्य पिछड़े वर्गों की सामाजिक-आर्थिक, शैक्षणिक व राजनैतिक स्थिति एवं उनके पिछड़ेपन के कारणों का सर्वेक्षण तथा समाज वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत किया।
सरकार ने 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के पक्ष में लगभग 15 हजार पेज की रिपोर्ट एक सप्ताह में तैयार करके सुप्रीम कोर्ट में जमा की। पिछले सप्ताह सरकार ने सामान्य प्रशासन विभाग में पदस्थ अपर सचिव अजय कटेसरिया प्रकरण के लिए प्रभारी अधिकारी नियुक्त किया था। सूत्रों के अनुसार उन्होंने ओबीसी आरक्षण को लेकर जितनी भी रिपोर्ट तैयार हुईं, उनका अध्ययन करके वरिष्ठ अधिवक्ताओं के साथ दिल्ली में दो दिन बैठक की और फिर समग्र रिपोर्ट तैयार की गई।
यह मामला इसलिए महत्वपूर्ण है कि यदि ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत हो जाता है तो फिर प्रदेश में एससी को 20, एसटी को 16 और ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा यानी कुल आरक्षण 63 प्रतिशत हो जाएगा। इसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए अलग से निर्धारित दस प्रतिशत आरक्षण शामिल नहीं है। बता दें, कांग्रेस की तत्कालीन कमल नाथ सरकार ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए बड़ा सियासी दांव खेलते हुए ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया था। इस पर जबलपुर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी। तब से मामला लंबित है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा कि भाजपा का चाल, चरित्र और चेहरा ओबीसी समाज के सामने आ चुका है। भाजपा सरकार ने छह साल से 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण लागू नहीं होने दिया। इसके लिए करोड़ों रुपये खर्च किए। यह बताता है कि भाजपा ओबीसी विरोधी है और केवल उनके वोट लेती है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के समय मैं और पार्टी के वकील उपस्थित रहेंगे। ओबीसी के हक को लेकर रहेंगे।