नईदुनिया प्रतिनिधि भोपाल। मध्य प्रदेश में माझी जाति का जनजाति में प्रमाण पत्र बनवाकर लगभग ढाई हजार व्यक्ति सरकारी नौकरी कर रहे हैं। दरअसल, इन्होंने धीवर, कहार, भोई, केवट, मल्हार निषाद आदि के आधार पर जनजाति वर्ग का जाति प्रमाण पत्र बना लिया और सरकारी नौकरी भी पा ली। इतना ही नहीं, सरकार ने इन्हें संरक्षण देने का आदेश भी निकाल दिया। इस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि ये जातियां जनजाति वर्ग में नहीं मानी जा सकतीं, इसलिए इन्हें जनजाति वर्ग का आरक्षण समाप्त किया जाए। बावजूद इसके सामान्य प्रशासन विभाग ने अपना आदेश नहीं बदला है। जनवरी 2018 से यह आदेश प्रभावी है। इससे पहले वर्ष 2013 में भी सामान्य प्रशासन विभाग ने एक आदेश जारी कर माझी जाति के प्रमाण पत्र के विरुद्ध की जा रही कार्रवाई स्थगित रखने का निर्देश दिया था।
साल 2003 में केंद्र सरकार ने तीन जातियों कीर, मीणा और पारधी को अनुसूचित जनजाति से बाहर कर दिया था। उस समय मध्य प्रदेश में 46 जातियों को अनुसूचित जनजाति का आरक्षण प्राप्त था। इन तीन जातियों को अनुसूचित जनजाति वर्ग से बाहर कर अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया था। इसके बाद इन जाति के प्रमाण पत्रों से जनजाति का आरक्षण प्राप्त कर नौकरी पाने वालों के जाति प्रमाण पत्र निरस्त किए गए थे। कई लोग नौकरी से बाहर भी किए गए। हालांकि राजस्थान में यह जाति एसटी वर्ग में आती है।
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता रामप्रकाश पहारिया ने कहा कि धीवर, कहार, भोई, केवट, मल्हार, निषाद जनजाति वर्ग में नहीं, अन्य पिछड़ा वर्ग में अधिसूचित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में राज्यों को आदेश जारी कर कहा है कि इन जातियों के लोगों को जनजाति वर्ग का आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाए। इसके बाद भी मध्य प्रदेश में यह जातियां जनजाति वर्ग के आरक्षण का लाभ शिक्षा और शासकीय नौकरी में ले रही है। वहीं, सामान्य प्रशासन विभाग मप्र में अपर मुख्य सचिव संजय दुबे ने कहा कि सरकार द्वारा माझी जाति के शासकीय सेवकों की सेवाएं निरंतर जारी रखने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट का क्या आदेश है, यह मुझे देखने में नहीं आया है, मैं देखकर ही कुछ कह पाऊंगा।