चेतन राय, नवदुनिया रायसेन। हमारे देश को अंग्रेजी शासन से भले ही 15 अगस्त 1947 को आजादी मिल गई थी, लेकिन रायसेन 1949 में आजाद भारत का हिस्सा बना था। दरअसल तीन साल तक भोपाल रियासत के नवाब अलग देश बनाने अथवा पाकिस्तान में विलय पर विचार करते रहे। उसी रियासत का हिस्सा रायसेन भी तीन साल तक आजाद भारत में शामिल नहीं हो पाया।
इसके बाद जिले में एक अलग आजादी की लड़ाई शुरू हुई, जिसे विलीनीकरण आंदोलन कहा जाता है। सैकड़ों नौजवानों ने भोपाल रियासत के नवाब की यातनाएं झेलीं, कई ने बलिदान दिया, तब जाकर लोगों को नवाबी शासन से आजादी मिली और रायसेन स्वतंत्र भारत के मध्यभारत प्रांत का हिस्सा बना।
भोपाल के नवाब ने नहीं किया विलय
15 अगस्त 1947 को जब भारत स्वतंत्र हुआ था, उस समय भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खां ने भोपाल राज्य को स्वतंत्र रखने का निर्णय लिया। इस निर्णय से भोपाल रायसेन सहित भोपाल रियासत के सभी रहवासी देश आजाद होने के बाद भी आजाद नहीं हुए थे।
राष्ट्रध्वज तिरंगा फहराना था गुनाह
15 अगस्त 1947 से लगातार 1 जून 1949 तक यानी 659 दिन भोपाल पर नवाब का शासन रहा। यहां भारत का राष्ट्रध्वज तिरंगा फहराना गुनाह माना जाता था। भोपाल नवाब हमीदुल्ला खां इसे स्वतंत्र रियासत के रूप में रखना चाहते थे। साथ ही हैदराबाद निजाम उन्हें पाकिस्तान में विलय के लिए प्रेरित कर रहे थे, जो कि भौगोलिक दृष्टि से असंभव था। ![naidunia_image]()
विलीनीकरण न होने से जनता में आक्रोश
आजादी के इतने समय बाद भी भोपाल रियासत का विलय न होने से जनता में भारी आक्रोश था, जो विलीनीकरण आंदोलन में परिवर्तित हो गया, जिसने आगे जाकर उग्र रूप ले लिया। आजादी के लिए विलीनीकरण आंदोलन चलाया गया। भोपाल रियासत के भारत संघ में विलय के लिए चल रहे विलीनीकरण आंदोलन की रणनीति और गतिविधियों का मुख्य केन्द्र रायसेन, सीहोर जिला था।
सिहोर रायसेन में आंदोलन
रायसेन, सीहोर में ही उद्धवदास मेहता, बालमुकुन्द, जमना प्रसाद चौबे (भार्गव), लालसिंह, विचित्र कुमार सिन्हा ने विलीनीकरण आंदोलन को चलाने के लिए जनवरी-फरवरी 1948 में प्रजा मंडल की स्थापना की थी। विलीनीकरण आंदोलन के सभी बड़े नेताओं को पहले ही बंदी बना लिया गया था।
बौरास में 14 जनवरी फहराया गया तिरंगा
बौरास में 14 जनवरी को तिरंगा डंडा फहराया जाना था। आंदोलन के सभी बड़े नेताओं की गैरमौजूदगी को देखते हुए बैजनाथ गुप्ता आगे आए और उन्होंने तिरंगा झंडा फहराया। तिरंगा फहराते ही बौरास का नर्मदा तट भारत माता की जय और विलीनीकरण होकर रहेगा के नारों से गूंज उठा।
नारा लागाने वालों पर चली गोलियां
पुलिस के मुखिया ने कहा जो विलीनीकरण के नारे लगाएगा, उसे गोलियों से भून दिया जाएगा। उस दरोगा की यह धमकी सुनते ही एक 16 साल का किशोर छोटेलाल हाथ में तिरंगा लेकर आगे आया और उसने भारत माता की जय और विलीनीकरण होकर रहेगा, नारा लगाया।
कईयों ने दी जान पर गिरने नहीं दिया झंडा
पुलिस ने छोटेलाल पर गोलियां चला दीं, वह गिरता इससे पहले धनसिंह नामक युवक ने तिरंगा थाम लिया, धनसिंह पर भी गोलियां चलाई गई, फिर मंगलसिंह पर और विशाल सिंह पर गोलियां चलाई गईं, लेकिन किसी ने भी तिरंगा नीचे नहीं गिरने दिया। ये चारों युवा शहीद हो गए, लेकिन तिरंगा नीचे नहीं गिरने दिया। इस गोलीकांड में कई लोग गम्भीर रूप से घायल हुए।
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दिल्ली तक पहुंची शहीदों की शव यात्रा की खबर
बौरास में आयोजित विलीनीकरण आंदोलन की सभा में होशंगाबाद, सीहोर से बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए थे। बौरास गोलीकांड से लोग काफी भड़क गए। साथ ही लोगों में भड़के आक्रोश से नवाब भी डर गया। 16 जनवरी को शहीदों की विशाल शव यात्रा निकाली गई, जिसमें हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए।
1 जून 1949 को आखिरकार भोपाल हुआ विलय
इस घटना की खबर लगते ही तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपने प्रतिनिधि बीपी मेनन को भोपाल भेजा। सभी औपचारिकताओं के बाद भोपाल रियासत का 1 जून 1949 को भारत गणराज्य में विलय हो गया। भारत की आजादी के 659 दिन बाद यहां तिरंगा झंडा फहराया गया।
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