
नवदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। अक्सर लोग अपना और परिवार का स्वास्थ्य बीमा इसलिए कराते हैं, ताकि जब कभी भी बीमारी उन्हें घेर ले तो इलाज के लिए उन्हें आर्थिक तौर पर परेशान ना होना पड़े। बीमा इलाज के दौरान बड़ा मददगार साबित होता है, लेकिन कई बार बीमा कंपनी अलग-अलग बहाना बनाकर बीमा राशि देने से इनकार कर देती है। ऐसे ही मामले में जिला उपभोक्ता आयोग क्रमांक-1 ने निर्णय सुनाया है।
दरअसल, नारियलखेड़ा निवासी रजनी अहिरवार ने जिला उपभोक्ता आयोग में केयर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के खिलाफ याचिका मार्च में लगाई है। इसमें शिकायत है कि उपभोक्ता ने अपने परिवार का सात लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा लिया था। इसके लिए 25,304 रुपये का प्रीमियम जमा करते थे।
जब उपभोक्ता का बेटा वंश कुमार को बुखार,उल्टी व दस्त की शिकायत हुई तो उसे डाॅक्टर को दिखाया गया। डॉक्टरों ने बच्चे को अस्पताल में भर्ती करने के लिए कहा। बच्चे को पांच दिन तक एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। इलाज में 37,280 रुपये खर्च हो गए।
उन्होंने बीमा कंपनी को क्लेम किया तो कंपनी ने यह कहकर क्लेम निरस्त कर दिया कि इस बीमारी के लिए बच्चे को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं थी। इस बीमारी का इलाज ओपीडी के आधार पर बिना अस्पताल में भर्ती हुए किया जा सकता था। आयोग के अध्यक्ष योगेश दत्त शुक्ल व सदस्य प्रतिभा पांडेय की बेंच ने बीमा कंपनी के तर्क को खारिज कर सेवा में कमी का दोषी मानते हुए बीमा कंपनी पर 45 हजार रुपये का हर्जाना लगाया।
डाक्टर की सलाह पर बच्चे को भर्ती किया गया
उपभोक्ता ने बताया कि बच्चे को बुखार, घबराहट, पेट में दर्द, उल्टी-दस्त, कमजोरी एवं भूख की कमी के इलाज के लिए डाक्टर को दिखाया गया था। जहां डाक्टर के द्वारा तीन दिन की दवा लिखी गई थी। इसके बाद भी जब बच्चे की तबीतयत में सुधार नहीं हुआ तो उसे डाक्टर ने अस्पताल में भर्ती करने की सलाह दी। इसके बाद पांच दिन तक भर्ती रखकर इलात कराना पड़ा। उपभाेक्ता ने आयोग में डाक्टर की रिपोर्ट और ओपीडी प्रिस्क्रीप्शन भी जमा किया। आयोग ने इसे बीमा कंपनी द्वारा सेवा में कमी माना और हर्जाना पड़ा।