
नईदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। कभी प्रसव के लिए दाईयों और घर के पारंपरिक तरीकों पर निर्भर रहने वाला मध्य प्रदेश अब संस्थागत प्रसव (अस्पतालों में प्रसव) के मामले में देश के अग्रणी राज्यों की कतार में खड़ा है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-पांच की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में अब 88.5 प्रतिशत प्रसव अस्पतालों में हो रहे हैं।
साल 2005-06 में यहां संस्थागत प्रसव का स्तर महज 26.2 प्रतिशत था। यानी अधिकांश प्रसव घरों के असुरक्षित वातावरण में होते थे, जिससे मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) और शिशु मृत्यु दर (आइएमआर) का जोखिम बना रहता था। पिछले दो दशकों में सरकार की सजगता और आशा-ऊषा कार्यकर्ताओं की मेहनत ने इस तस्वीर को बदल दिया है।
रिपोर्ट के अनुसार, 2015-16 में संस्थागत प्रसव का आंकड़ा 80 प्रतिशत था, जो अब 90 प्रतिशत के लक्ष्य को छूने के करीब है। हालांकि, इस मामले में प्रदेश अभी देश में 17वें स्थान पर आता है। सफलता के पीछे जननी सुरक्षा योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को अस्पताल में प्रसव पर मिलने वाली 1,400 रुपये की नकद राशि है।
वहीं, मुख्यमंत्री श्रमिक सेवा प्रसूति सहायता योजना भी गरीब और श्रमिक परिवारों के लिए वरदान साबित हुई। इसमें प्रसूता को पोषण और देखरेख के लिए 16,000 रुपये की बड़ी आर्थिक सहायता दी जाती है।
दुर्गम इलाकों से गर्भवती महिलाओं को समय पर अस्पताल पहुंचाने में जननी एक्सप्रेस (108/102) ने अहम भूमिका निभाई है। निश्शुल्क एंबुलेंस सेवा के कारण देरी की वजह से होने वाली घटनाएं काफी कम हो गई हैं।
प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ, अलीराजपुर और बड़वानी जिलो में भी महिलाएं प्रसव के लिए अस्पताल पहुंच रही हैं। पहले जीवित बच्चे के जन्म पर गर्भवती महिलाओं को तीन किस्तों में 5,000 रुपये की आर्थिक मदद दी जाती है।
आधुनिक सुविधाओं का हुआ विस्तार प्रदेश के सरकारी अस्पतालों के लेबर रूम को लक्ष्य कार्यक्रम के तहत हाईटेक बनाया गया है। नर्सिंग स्टाफ को विशेष प्रशिक्षण भी दिया गया है। परिणामस्वरूप, रतलाम और उज्जैन जिलों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) ने शत-प्रतिशत संस्थागत प्रसव के लक्ष्य को हासिल कर लिया।
वहीं इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर जैसे शहरी क्षेत्रों में संस्थागत प्रसव का दर 95% से अधिक रहा। जबकि झाबुआ, धार और बड़वानी जिलों में घर पर प्रसव की दर में 40% तक की कमी आई है।
- केरल - 99.8%
- तमिलनाडु - 99.7%
- गोवा - 99.5%
- तेलंगाना - 97.0%
- आंध्र प्रदेश - 96.3%
- इंदौर - 98.2%
- भोपाल - 97.6%
- ग्वालियर - 96.4%
- जबलपुर - 95.8%
- रतलाम - 94.5%
- कठिन भौगोलिक क्षेत्र - डिंडोरी, मंडला और झाबुआ जैसे आदिवासी अंचलों में सुदूर वनांचल होने के कारण एंबुलेंस का पहुंचना चुनौतीपूर्ण होता है।
- सामाजिक मान्यताएं - कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पारंपरिक दाइयों से घर पर प्रसव कराने का चलन पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है।
हालांकि, सरकार 16,000 रुपये तक की सहायता दे रही है, लेकिन शिक्षा की कमी के कारण अभी भी लगभग 11% प्रसव अस्पतालों से बाहर हो रहे हैं।
इनका कहना है कि जननी सुरक्षा और प्रसूति सहायता जैसी सरकारी योजनाओं ने महिलाओं में अस्पताल के प्रति विश्वास जगाया है। हम ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों में आशा कार्यकर्ताओं के माध्यम से निरंतर मानिटरिंग कर रहे हैं, ताकि कोई भी गर्भवती महिला स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित न रहे।
आधुनिक लेबर रूम और बेहतर एंबुलेंस सेवा के समन्वय से हम मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को न्यूनतम स्तर पर लाने के लिए संकल्पित हैं - डॉ. मनीष शर्मा, सीएमएचओ, भोपाल