अंदर की बात: किसी भी तंत्र में बगैर कृपा के कुछ संभव नहीं है। ऐसे ही एक कृपा पात्र कर्मचारी इन दिनों चर्चा में हैं। बंधु पर 'मामा' की कृपा है। ये वह मामा नहीं, जो आप समझ रहे हैं, पर पावर इनका भी कुछ कम नहीं है। करीब पांच साल से भांजे को साधे हुए हैं। मामला सड़क के निर्माण से जुड़े विभाग का है। भांजा मलाईदार कुर्सी पर बना रहे, इसलिए कभी मामा, तो कभी खुद भांजे को अपना परिचय देना पड़ता है। इस कार्यालय में जब भी कोई नया अधिकारी आता है, भांजा इशारों ही इशारों में बता देता है कि मामा नजर रख रहा है। फिर क्या मामा का नाम सामने आते ही अधिकारी खुद ही पूछ लेता है कि स्टोर देखोगे या कुछ और...। भांजा भी अपनी पसंद बताने में जरा देर नहीं करता। फिर क्या है, मामा की कृपा से सारे काम आसानी से चलते रहते हैं।
फीका पड़ गया जन्मदिन का केक
खनिज विभाग के एक अधिकारी के जन्मदिन की खुशियों को एक आगंतुक की ऐसी नजर लगी कि चर्चा मंत्रालय के गलियारों में सुनाई पड़ी। मामला दो-तीन दिन पुराना है। साहब के जन्मदिन पर कार्यालय की छत पर केक कटाई की रस्म रखी गई। यहां तक तो सब ठीक था, पर केक कटवाने की जल्दबाजी भारी पड़ गई। कार्यालयीन समय में पूरे अमले के साथ साहब छत पर पहुंच गए। अब आगंतुकों को भी यही समय मिला था, पहुंच गए अपनी फरियाद लेकर। ऊपर से वे नियमों के जानकार भी निकले। उन्हें जब कार्यालय में कोई दिखाई नहीं दिया, तो आगंतुक ने छत की ओर रुख किया और साहब के जन्मदिन के जश्न के फोटो खींच लिए। फिर क्या था, आगंतुक ने पूरे सुबूतों के साथ मुख्य सचिव को लिखित शिकायत कर दी। अब जन्मदिन के केक की मिठास बरकरार रहेगी या नहीं, यह तो मुख्य सचिव का मूड तय करेगा।
अब क्या दीवारों में बहेगा 'करंट'
सरकारी बंगलों में निर्माण और मरम्मत कार्य को लेकर तमाम नियम हैं, पर मानता कौन है। एक नियम यह भी है कि इन बंगलों में सिर्फ लोक निर्माण विभाग ही काम कराएगा और दूसरे विभाग से काम कराना है, तो इजाजत लेनी होगी, पर राजधानी में मौजूद बंगलों को लेकर कुछ और ही स्थिति है। यहां एक मंत्री का विभाग बुजुर्ग सरकारी बंगलों की दीवारों में 'करंट' पैदा करने की कोशिश कर रहा है। मंत्रीजी 15 लाख रुपये का काम करा रहे हैं। अब मंत्री काम कराएंगे, तो अधिकारी क्या पीछे रहने वाले हैं। विभाग की एक कंपनी के अधिकारी ने भी अपने बंगले में आठ लाख का काम खोल लिया। अब कोई ये सोचने को भी तैयार नहीं है कि दो साल में दूसरी बार बंगलों में काम कराने की आखिर क्या जरूरत पड़ गई। पिछली सरकार में बंगलों में आने से पहले मंत्रियों ने काम कराया ही था।
तो लोग क्या सीखेंगे...?
मंत्री ही नियमों की अनदेखी करें, तो लोग क्या सीखेंगे? बात वन विहार नेशनल पार्क में नाइट सफारी की हो रही है। सफारी का उद्घाटन वन मंत्री विजय शाह ने किया था। इसके बाद पार्क की सैर करने निकले, तो वन्यजीवों को देखने के लिए टॉर्च का इस्तेमाल कर लिया। कुछ जीवों के मुंह पर टॉर्च की रोशनी भी पड़ी। वन्यजीव प्रेमियों को यह नागवार गुजरा है और अब वे शिकवा-शिकायतों पर उतारू हैं। सरकार ने भले ही पार्क में नाइट सफारी शुरू करने का रास्ता निकाल लिया हो, पर वन्यजीवों को तकलीफ पहुंचाने की इजाजत किसी को नहीं है। इस मामले में मंत्री के फोटो कानूनी लड़ाई का आधार बन सकते हैं। हैरत तो इस बात की है कि कान्हा, पेंच और बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में नाइट सफारी के दौरान टॉर्च का इस्तेमाल पूरी तरह से प्रतिबंधित है, बाकायदा बोर्ड लगाए गए हैं, तो वन विहार क्या अलग है?